Last week, we left at the question, why are our minds so cluttered? इसका उत्तर यह है कि जिसे हम अपना ‘मन’ कहते हैं, वह वास्तव में हमारा ‘अहंकार’ है और रावण की तरह, इसके कई सिर हैं। And we really don’t know which head we are dealing with. Most of the time, multiple heads are operational simultaneously.
यह सत्य डरावना है। पर हमारे दिमाग में इन अनेकों विचार मशीनों के एक साथ चालू रहने के कारण ही जीवन में इतनी गड़बड़ है।
Swiss scientist Carl Jung described four archetypes living inside our mind. ये आद्यरूप लोगों, व्यवहारों, या व्यक्तित्व के मॉडल, और हमारे पूर्वजों के मौलिक, अचेतन, और जैविक पहलू हैं जो इस शरीर के साथ जन्मजात प्रवृतियों के रूप में पुनः पैदा हुए हैं। Jung named the four archetypes as 1) the Self, say our soul; 2) the Persona, what we present before the world; 3) the Shadow, what we hide from the world; and 4) the opposite gender living in us. पुरुष के जनाने व्यक्तित्व को एनिमा और महिला के मर्दाने व्यक्तित्व को अनिमुस कहा गया है।
As we grow up, depending upon situations and circumstances, we create a father figure, a mother figure, a guru, a hero, an ideal, and a troublemaker in our minds. ये सभी व्यक्तित्व एक साथ हमारे मन के भीतर रहते हैं, और वर्चस्व के लिए उनके बीच हमेशा कुश्ती चलती रहती है। Over the years, one type succeeds, and we become that in our lives. But in some unfortunate cases, multiple personalities remain active. डॉ. जेकेल और हाइड की प्रसिद्ध कहानी एक व्यक्ति में दो व्यक्तित्व सक्रिय होने का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है।
तो, अब हमें उस प्रश्न का उत्तर मिल गया है जिसके साथ हमने यह कॉलम मंगलवार, १२ मई, २०२० को शुरू किया था कि सिर में कई आवाजें क्यों सुनाई देती हैं? The purpose of life is to know ourselves as soul and carry out what the soul wants in this lifetime. लेकिन हममें से लगभग सभी लोग, अपने जीवन को अपने भीतर बसे विभिन्न आद्यरूपों की इस कश्मकश में बर्बाद कर लेते हैं। And worse still, living an unstable life and making people around us suffer in this process.
Why do we do that? हम आत्मा पर आद्यरूपों को क्यों तरजीह देते हैं?
All the consciousness trapped into the physicality is destined to expand and connect with the One universal consciousness.
यह कोई धार्मिक अवधारणा नहीं है। यह एक अस्तित्वगत सत्य है। Different religions have expressed it in their own way, based on the languages and the geographical conditions – रेगिस्तान, जंगल, पहाड़, द्वीप, इत्यादि। जहां इन धर्मों की उत्पत्ति हुई है। Narrative and style are different, but the story is same.
मिर्ज़ा ग़ालिब बता गये हैं, “न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता, डुबोया मुझको होने ने न होता मैं तो क्या होता.” So, be careful and ensure that you are expanding your consciousness and not contracting it into the narrow walls of ‘I’, ‘me’ and ‘mine.’
The ‘How to’ part of it, will be seen next week.