मध्य मार्ग क्या है? Not too much of anything, nothing in excess, moderation in all things? The Bhagavad Gita declared a sense-controlled man as a robot, and human action as the qualities of nature acting upon the body-mind: भ्रामयन्सर्वभूतानि यन्त्रारूढानि मायया (xiii. 61).
Nature’s commands are three – motivation, action, inertia – acting upon all living beings.
जैसे कार्यवाही के बिना प्रेरणा बेकार है। वैसे ही प्रत्येक कार्य को किसी बिंदु पर आकर रुक जाना चाहिए। लेकिन किसी को भी लंबे समय तक कार्यवाही के बिना नहीं रहना चाहिए; काम पर वापस जाने के लिए एक प्रेरणा का होना जरूरी है।
If you abandon strenuousness, you will fall into inertia; if you don’t relax, you will burn yourself out. If you indulge in bodily pleasures, your mind becomes dull. If you think too much, your health gets affected. रविवार के बिना एक सप्ताह अधूरा है। छुट्टी के बिना एक मौसम बेकार है? समझदार लोग हर हफ्ते नहीं, तो कम से कम पखवाड़े में एक बार जरूर उपवास करते हैं। You can never cook well without simmer settings in the gas burner.
There are many tools in the workshop of life, and he would be a poor craftsman who should use one tool for all purposes. आपको एक हथौड़ा के साथ कील भी चाहिए, सुई के साथ धागा भी चाहिए। जहां मोटर होती है, वहां चक्का भी होता है। An engine without any sort of governor runs amuck. A pressure cooker without a safety valve can burst like a bomb.
बहुत अधिक या बहुत कम कोई भी गुण अवगुण में बदल जाता है।
उदाहरण के लिए, जो अनुचित, या गलत है, उस पर प्रतिक्रिया की कमोबेशी व्यवहार का सार है। If you don’t react at all, people will ride over you, take you for granted and even harm you. But if you get angry about every little thing, no one likes you.
गुस्सा सिर्फ एक तीव्र भावना है जिस पर काबू रखना जरूरी है। बिना नियन्त्रण के वासनाऐं, भूख, ईर्ष्या, द्वेष, घृणा, आक्रोश, भय, अभिमान और इच्छाऐं मुसीबतें बन जाती हैं। Imagine what life would be like if people never restrained any of these emotions. We would constantly clash with others and society as we know it, would collapse.
Controlling strong emotions is a matter of training. जब हम छोटे होते हैं तो हमारे माता-पिता और शिक्षक हमें प्रशिक्षित करना शुरू करते हैं। As we get older, we continue the training process on our own. चलते-चलते, हमारी प्रतिक्रियाऐं आदतें बन कर हमारे चरित्र के लक्षण और निश्चित व्यक्तित्व बन जाते हैं।
In this way, we acquire our positive character traits that regulate emotions and urges.
साहस, संयम, न्याय, विवेक, उदारता और सच्चाई को सद्गुण कहा गया है। By contrast, in a similar way, we develop our negative character traits in response to the same emotions and urges. कायरता, असंवेदनशीलता, अन्याय और घमंड को अवगुण माना जाता है। A person is good if he or she has virtues and lacks vices, so goes the trend.
बहुत ज्यादा प्यार पागलपन है, प्यार का अभाव ज़ालिमाना है। बहुत अधिक आत्मविश्वास घमंड है, बहुत कम आत्मविश्वास बुज़दिली है। सैंस ऑफ ह्यूमर की अधिकता में व्यक्ति जोकर बन जाता है, या उसे खो कर मूर्ख कहलाता है। Life is simple, but the things in it are not. When a man does not understand it, he tends to inflate it. When he does, he tends to deflate it. In the end, neither images are fully accurate.