लॉक डाउन का एक ऐसा समय था जब हम सब घर में बंद, तरह-तरह के विचारों में मगन होकर आपस में विचार-विमर्श करते रहते थे. इसी दौरान हम लोग अपने दोस्तों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग भी कर लिया करते थे और अक्सर तमाम तरह के विषयों पर वाद-विवाद होता रहता था.

तभी एक दोस्त ने भ्रष्टाचार के ऊपर कुछ बोलना शुरू किया और वह काफी देर तक बोलता चला गया और अंत में बोला कि ऐसे लोगों को जो समाज के लिए नासूर बन गए हैं और भ्रष्टाचार में लिप्त हैं, उनको तो गोली मार देनी चाहिए और समाज को एक सीख मिलनी चाहिए कि इस तरह से भ्रष्टाचार में लिप्त लोगों का क्या अंजाम होता है.

हम सब लोग सुनते रहे हैं और इस पर ध्यान देते रहे कि आखिर इस समस्या का हल कैसे निकल सकता है, जोकि पूरी तरह से व्यवस्था को दीमक की तरह चाट रही है. तभी एक साहब ने उस सज्जन को, जो बहुत बोल रहे थे, तंज कसा कि आपका तो हाल वही है जैसे ‘अधजल गगरी छलकत जाए ‘अर्थात आपके पास वह पूरा ज्ञान ना होने के कारण आप जो भी मन में आ रहा है बोलते जा रहे हैं. यह विषय इतनी आसानी से समझ में आने वाला नहीं है क्योंकि यह बहुत पुरानी समस्या है और उसके जड़ तक जाने की आवश्यकता है और हम सब लोगों को मिलकर इसका कारण और निदान समझना पड़ेगा. बातचीत का सिलसिला जब थमा तो मेरे मन में इस समस्या को समझने और इसका विश्लेषण करने का मन हुआ और हम सोचते रहे कि कैसे समस्या के बारे में कुछ लिखा जाए.

मैं अपने अतीत में खो गया जब आज से 60 साल पहले मुझे सेल्स टैक्स और इनकम टैक्स विभाग में जाने का मौका मिला और मैंने देखा कि ये दोनों डिपार्टमेंट बहुत ईमानदार समझे जाते थे. वहां पर जब काम हो जाता था तो वहां के चपरासी को कुछ इनाम या बख्शीश दी जाती थी जिसे वह धन्यवाद के साथ स्वीकार कर लेता था. वहां चपरासी इतने सभ्य होते थे कि आपको पानी पिलाते थे और आप की किताबें यानी बुक्स आफ अकाउंट्स को रिक्शा तक भी पहुंचा देते थे. यह वह समय था जब भ्रष्टाचार या रिश्वतखोरी को बहुत बुरी निगाह से देखा जाता था और अगर कोई रिश्वतखोरी में लिप्त रहता था तो उसके खिलाफ अक्सर कार्रवाई होती थी.

समय बदलता गया और यह जो ईनाम या बख्शीश का सिलसिला था वह रिश्वत मैं बदल गया. रिश्वत एक दबाव डालकर काम ना करके काम को उलझा कर पैसा वसूलने का तरीका बन गया, खासकर सरकारी विभागों में. आज भी जब भी हम किसी काम से सरकारी विभागों में जाते हैं तो ऐसा भय लेकर जाते हैं कि काम होगा कि नहीं और इसमें कितनी अड़चन आएंगी और ऊपर से कितना पैसा खर्च करना पड़ेगा.

पूरा तंत्र जो व्यवस्था का है वह किसी बीमारी से ग्रस्त है जिससे बचकर निकलना बहुत मुश्किल है. लेकिन जब हम बात करते हैं – गैर सरकारी विभागों की यानी कि प्राइवेट सेक्टर की तो हम देखते हैं कि इन विभागों में भ्रष्टाचार ना के बराबर होता है. यह भी सोचने और समझने की बात है कि जिस सरकारी विभागों में आज के तारीख में सैलरी काफी अच्छी हो चुकी है और कभी-कभी देखने को मिलता है कि प्राइवेट सेक्टर में इतनी सैलरी नहीं मिलती फिर भी प्राइवेट सेक्टर में ईमानदारी ज्यादा है और काम करने का तरीका बेहतर है तो फिर क्या कारण है कि इतनी अच्छी तनख्वाह मिलने के बावजूद सरकारी विभागों में भ्रष्टाचार अपने चरम सीमा पर है और यह इतना बढ़ गया है कि सरकार अब बहुत ज्यादा प्राइवेट सेक्टर में अपने कामों को देने की बात कर रही है, ताकि कम से कम भ्रष्टाचार में अधिक से अधिक काम में गुणवत्ता लाई जा सके.

हम सब जानते हैं कि प्राइवेट सेक्टर हो या सरकारी नौकरी हर कोई अपना जीवन यापन कर रहा है लेकिन सरकारी नौकरी में काम करने वाले लोग पैसे की लालसा के कारण अधिक से अधिक भ्रष्टाचार में लिप्त दिखाई देते हैं. कारण चाहे कितना भी कोई बता दे लेकिन इस भ्रष्टाचार का तो अंत होना ही चाहिए चाहे उसके लिए हमें कितनी भी लड़ाई अपनेआप से लड़नी पड़े. लड़ाई से मेरा तात्पर्य सिर्फ इतना है कि हमें अच्छी तरह इस बात को समझ लेना चाहिए कि ईमानदारी से कमाए हुए धन अगर हम अपने ऊपर या अपने बच्चों के ऊपर खर्च करते हैं तो उसके बदले में जो शांति हमें प्राप्त होती है वह अमूल्य है और आने वाले समय में जब हमारे बच्चे बड़े होंगे तो उन्हें इस तरह की स्थिति को समझने में देर नहीं लगेगी कि ईमानदारी का कोई दूसरा विकल्प नहीं है.

धन्यवाद.