“क्रियां विना ज्ञानं भारः भवति” अर्थात कर्म के बिना ज्ञान बोझ होता है।

कई बार मनुष्य जानता बहुत कुछ है लेकिन उस ज्ञान को अपने जीवन में अपनाता नहीं और यही दुख-परेशानी, नकारात्मकता और अवसाद का मूल कारण है। आपने अक्सर देखा होगा जब आप किसी दुखी दोस्त या रिश्तेदार को समझाने के लिए कुछ अच्छी बातें बताते हैं जैसे सकारात्मक सोचो, मेडिटेशन करो, एक्सरसाइज करो, लोग क्या सोच रहे हैं ये मत सोचो, मन की सुनो आदि-आदि। तो वह कहता है कि हां मुझे पता है, मुझे ये सब आता है…

सोचिए जब उसे सब आता है तो वह क्यों दुखी है, क्योंकि वह जानते हुए भी अपना नहीं रहा है। उसने अपने दिमाग को खुला छोड़ा हुआ है, सुखी और शांतिपूर्ण जीवन के लिए दिमाग को अपने कण्ट्रोल में रखना बहुत ज़रूरी है। मेरा एक दोस्त कहा करता था कि मुझमें 98 गुण हैं, केवल 2 ही बुराइयाँ हैं। जब कोई उत्सुक होकर पूछता कि क्या बुराई है तब वो मुस्कराते हुए कहता था – “एक तो मैं कुछ जानता नहीं, दूसरे किसी की मानता नहीं।”

तो बात का मर्म ये है कि अक्सर हम कुछ न जानते हुए भी सब जानने का ढोंग करते रहते हैं। बिना अभ्यास के हर ज्ञान बेमानी है, अच्छे से अच्छा धावक भी रोज़ घंटों अभ्यास करता है, क्रिकेटर मैदान में घंटों पसीना बहाते हैं, एक परफॉर्मेंस देने के लिए एक डांसर महीनों-सालों प्रैक्टिस करता है, गायक किसी बड़े प्लेटफार्म पर गाने का मौका पाने के लिए कई सालों तपस्या करता है, एक राइटर फाइनल करने से पहले कितनी ही बार लिखता-मिटाता है।

यही बात पॉजिटिविटी पर भी लागू होती है, इसका हमें लगातार अभ्यास करना होता है ताकि हम अपने मन में और जीवन में चल रही नकारात्मकता से बाहर निकल कर अपने जीवन को आसान बना सकें, अपने ज्ञान और अनुभव को उपयोग में ला सकें।

जीवन में अगर हम किसी चीज पर कंट्रोल कर सकते हैं तो वह केवल हमारे विचार हैं। हमारी यहां तक कि हमारे शरीर पर भी कई बार हमारा नियंत्रण नहीं रहता, जब हम बीमार पड़ जाते हैं या फिर जब हमारा शरीर हमें छोड़कर मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। सिर्फ अपने विचारों पर ही हम नियंत्रण कर सकते हैं। प्रसिद्ध दार्शनिक मार्कस औरिलियस कहा था –

“अगर खीरा कड़वा है तो उसे फेंक दो। अगर रास्ते में कोई कंटीली झाड़ी है, तो उससे बचकर साइड से निकल जाओ। बस आपको इतना ही तो सीखना है। इससे ज्यादा कुछ नहीं।”

तात्पर्य ये है कि बुरी चीजों से बचना, अच्छाई को अपने जीवन में जगह देने का हुनर हम सबमें होना चाहिए क्योंकि जीवन एक बार मिलता है और हम इसको अपनी अक्लमंदी से खूबसूरत बना सकते हैं। अपने अलावा आपका किसी इंसान पर नियंत्रण नहीं हो सकता, यह बात आपको मालूम होनी चाहिए। अगर इस बात को आप स्वीकार भी कर लेते हैं तो आप जीवन में कई परेशानियों से बच जाएंगे। कई बार हम दूसरों को उनकी अच्छाई-बुराई तो गिनाते रहते हैं लेकिन हम खुद को आईना दिखाना भूल जाते हैं, जोकि सबसे पहला और जरूरी काम होना है क्योंकि हमारे बारे में हमसे बेहतर कोई और नहीं जान सकता।

ऐसे में ख़ुद को तोलने, परखने और निखारने की ज़रूरत हमेशा बनी रहती है क्योंकि हम अक्सर दूसरे की चालाकी से ज्यादा ख़ुद की मूर्खता की वजह से नुक्सान उठाते हैं।

जीवन में कुछ भी हमारे नियंत्रण में नहीं है, कई बार हम प्राकृतिक आपदाओं, महामारी, दुर्घटनाओं से दुखी होते हैं। उस वक्त को ईश्वर से शिकायतें करने में निकालते हैं, ये सोचते और बोलते रहते हैं कि न जाने ये सब खत्म होगा पर सच तो यह है कि हम कुदरत के फैसलों के सामने बहुत छोटे हैं। कुदरत का हर काम हमारी भलाई या फायदे के लिए नहीं होता है। कुदरत को और भी जरूरी कई काम हैं, ऐसे में सबसे बेहतर है कि हम कुदरत के फैसलों को स्वीकार करें और धैर्य रखते हुए अपने मन की शांति बनाए रखें। मन की शांति बनाये रखने का एक तरीका यह भी है कि हम कम बोलें, व्यर्थ न बोलें, बोलना तो दो-ढाई साल की उम्र से आ जाता है पर क्या और कितना बोलना है और कब चुप रहना है, इसका सलीका सीखना पड़ता है। कई बार हम दिशाहीन होकर ऐसे कामों में अपना कीमती वक़्त ज़ाया करते हैं, जो हमारे या किसी के भी फायदे के नहीं होते, ऐसे में गंभीरता से विचार करते हुए अपनी ऊर्जा को कहीं और लगाना चाहिए।

कई बार हम उन बातों से इतने दुखी नहीं होते, जितना उसके बारे में बार-बार सोच कर, व्यर्थ के कयास लगा कर दुखी होते रहते हैं। आप ये भी तो सोच सकते हैं कि वह बात इतनी बड़ी नहीं कि मेरी मानसिक शांति को भंग कर सके, क्योंकि अगर आप किसी की बात से दुखी हो जाते हैं तो इसका मतलब वो व्यक्ति आपको कण्ट्रोल कर रहा है, ऐसे में कमजोरी आपकी है और उसकी जीत है। इसलिए जो बातें आपके काम की हैं उनको सहेज लीजिये और जो व्यर्थ और कड़वी हैं, उनको आउट ऑफ़ सिलेबस मान लीजिये। जीवन एक परीक्षा है और उसमें भी हमें ध्यान रखना होता है कि क्या मेरा सिलेबस है और क्या नहीं ! अगर आपको किसी के साथ होने से आनंद और प्रेम की अनुभूति नहीं हो रही तो इसका मतलब कि उसका और आपका साथ होना व्यर्थ है, ऐसे में उस रिश्ते से ख़ुद को आज़ाद कर लेने में ही भलाई है।

जो आया उसे प्रेम से स्वीकार करना और जो गया उसको सम्मान से विदा करना आना चाहिए।

अगर आप इस तरह से जीना सीख जाते हैं, तो आपकी बहुत सारी समस्याएं कम हो जाएंगी। कई बार हम ऐसे लोगों के बीच फंस जाते हैं जो हमारी क़द्र नहीं करते और वो सम्मान नहीं देते जिसके हम हकदार हैं तो ऐसे लोगों से दूर हो जाना चाहिए क्योंकि अगर आप लोहार को हीरा दिखा कर उसकी पहचान करने को कहते हैं तो दोष बेचारे लोहार का नहीं आपका है। इसलिए ये अपेक्षा आपको दुख ही देगी। ख़ुद को प्रेम करते हुए, खुद को रोकते-टोकते हुए, ख़ुद का सम्मान बनाये रखना आपके हाथ में ही है। जब हम बाहर की आवाजों से विचलित होना बंद कर देते हैं, तभी अपने भीतर की आवाजों को सुन पाते हैं और अपने जीवन के उद्देश्य को समझ पाते हैं !

जल्दी-जल्दी में छूटता है, हाथ से बहुत-कुछ
रुको ज़रा इत्मिनान से मुस्करा लो !