मूर्खों पर गुस्‍सा करना हमारी मूर्खता है!

“To ease the pain, erase the anger.” यानी अपने दर्द को कम करने के लिए मन में रोका हुआ गुस्सा मिटा दीजिये. जितनी बार गुस्से के वो पल, उस दौरान कही हुई बातें याद आती हैं, उतनी बार मुंह का स्वाद कसैला हो जाता है, मन कड़वाहट से भर जाता है.

तो इस भाव से हमेशा के लिए मुक्त होना ज़रूरी है क्योंकि वो अनावशक रूप से आपकी बहुमूल्य ऊर्जा खाता रहता है. पर गुस्से पर नियंत्रण इतना आसान नहीं, ये डेली प्रैक्टिस मांगता है. हो सकता है कि दो बार आपने अपने गुस्से पर नियंत्रण कर लिया, लेकिन तीसरी बार आप ज्वालामुखी की तरह फट पड़ें. तो दो बार नियंत्रण करने में लगा प्रयास स्वाहा हो जाता है. क्रोध एक ऐसी आग है जो दूसरे से ज्यादा ख़ुद को जलाती है. गुस्से में मुंह दिमाग से ज्यादा तेज काम करता है, ऐसे में मुंह से वो बातें भी निकल जाती हैं जो होश में आप कभी नहीं बोलते हैं. गुस्से में अक्सर मनुष्य अपने अन्दर दबी हुई कुंठा और ईर्ष्या को उगल देता है इसलिए वो अक्सर वो सच बोल जाता है जिसे वो अपने विवेक से दबा कर रखता है. गुस्‍से में सबक सिखाने को उपलब्धि मत मानिए, सबक कोई सीखेगा या नहीं, यह निश्चित तौर पर नहीं कह सकते, सामने वाला मूर्ख है तो संभावना न के बराबर है. तो गुस्‍से का हासिल या फायदा आपको कुछ होना नहीं है, उल्‍टे आपका कीमती समय, बेशकीमती ऊर्जा और अनमोल सकरात्‍मकता का नुक्‍सान होने की गांरटी है. यह बोध हमारे आधे से ज्‍यादा गुस्‍सों को करने की, उनको जस्‍टीफाई करने की मूर्खता से हमें बचा लेगा.

गुस्से के कई कारण हो सकते हैं. कई बार हम अपने आसपास की अपूर्णता को देख क्रोधित होते हैं तो कई बार अपने साथ हो रहे अन्याय को लेकर. किसी की धूर्तता के बारे में जान कर भी हमारे मन में क्रोध की तरंगें उठने लगती हैं. गुस्सा करना आसान है पर उचित समय, उचित मात्रा में, वाणी पर नियंत्रण रखते हुए अपने रोष को प्रकट करना आसान नहीं. चीखने-चिल्लाने से कई बार आपकी कही हुई बातें सामने वाले तक पहुँच ही नहीं पातीं और कई बार तार्किक बात बोलना उस आवेश में ध्यान नहीं रहता.

फिर बार- बार आप उस क्रोध को जीते हैं. “अरे ये बोलना तो रह गया, उसने ये बोला तो मुझे ये जवाब देना चाहिए था.. दो थप्पड़ भी लगा देता तो उसको अक्ल आ जाती आदि-आदि।” ऐसी बातें दिमाग में लगातार उठ कर मन की शांत झील में कंकड़ डालने का काम करती हैं, जिससे बीत चुका समय आपके भीतर जीवित रहते हुए आपको धीरे- धीरे मारता रहता है.

क्रोध उच्च रक्तचाप, हृदयाघात, अनिद्रा, अवसाद, अशांति, एंग्जायटी, टेंशन, नकारात्मक विचार, सिरदर्द, स्वास्थ्य सम्बन्धी अनेक समस्याओं का कारण बनता है.

ये सारी बातें मालूम होते हुए भी कई बार हम विषम परिस्तिथियों में अपना आपा खो देते हैं. कई बार सहना मुश्किल हो जाता है और ऐसे में विरोध करना भी ज़रूरी हो जाता है. क्योंकि जुल्म करने वाले से ज्यादा सहने वाला बड़ा दोषी होता है. पर हम विरोध भी तभी कर पायेंगे जब हमारा दिमाग हमारे नियंत्रण में हो.

अपने क्रोध को अपनी ताकत बनाओ, अपने अन्दर धीमी पड़ती संघर्ष की आग को जलाये रखने में उसका इस्तेमाल करो. अगर आप क्रोध को नियंत्रित करने में सफल हो जाते हैं तो वो तेज आपके चेहरे पर नज़र आएगा.

गुस्से से बचने का सबसे सरल उपाय है जिस चीज़ से आपको समस्या है, उसको बदल दें और अगर बदल पाने का साहस या परिस्थिति नहीं तो उसको सहज स्वीकार कर लें. उसके लिए खीजते, कुढ़ते रहना क्रोध से भी धीमा, खतरनाक जहर है.

अगर आपके आसपास नकारात्मक लोग हैं तो उनसे दूर रहने का प्रयास करें. भले ही कितनी ही बड़ी हानि हो जाए पर आप अपनी मानसिक शांति उस नुक्सान से खरीद सकते हैं. टॉक्सिक लोग blotting paper (स्याही सोख्ता) की तरह मानसिक शांति सोख लेते हैं क्योंकि उनको उसमें आनंद मिलता है. जीवन में किसी का कुटिल स्वभाव जान लेने के बाद उसको दूसरा मौका देना मूर्खता है. अगर आप ये सीख लेंगे तो एक ही व्यक्ति से बार-बार छले जाने और फिर बाद के क्रोध, पश्‍चाताप से बच जायेंगे.

अगर कोई अपनी जली-कटी बातों, तानों से आपको क्रोध दिलाता है तो उसकी मूर्खता और कमजोरी पर हँसना सीखिए. एक कमज़ोर और अहंकारी व्यक्ति ही दूसरे को छोटा महसूस करवा कर खुश होता है. जो बड़ा होगा वो हमेशा आपको बराबरी का महसूस करवाएगा. ऐसे में उस मूर्ख से दूरी बना लेने में ही समझदारी है, वो बेचारा अपनी कुंठाओं के बोझ तले वैसे ही दबा हुआ है. उस पर दया करके मुस्करा कर आगे बढ़ जाओ, कभी न पीछे लौटने के लिए.

कई बार अतीत के अँधेरे, बचपन में हुआ शारीरिक या मानसिक शोषण, दुर्व्यवहार याद करते हुए हम उसको क्रोध की शक्ल में पाल लेते हैं. खुद को गुनाहगार मानते हुए, खुद को माफ़ नहीं करते हुए, खुद पर क्रोध करते रहते हैं. ”क्यों उस समय विरोध नहीं किया, क्या आज उस व्यक्ति के प्रति आवाज़ उठानी चाहिये?”

अतीत में जाकर उसकी मरम्मत कभी नहीं की जा सकती. उससे सबक लेकर आगे बढ़ा जा सकता है.

ऐसे में उन सब बातों को भूल कर खुद को माफ़ कर देना चाहिए क्योंकि उसमें आप दोषी नहीं थे. उस भावना पर विजय प्राप्त करके ही उस अंधकार से बाहर निकला जा सकता है, वर्ना आपके जीवन के उज्‍ज्‍वल पक्षों पर भी उन अंधेरों की छाया मंडराती रहेगी. इंसानी दिमाग बहुत काम्प्लेक्स है, कौन सी कोठरी में उसने कौन सी भावना को छुपा रखा है, कई बार हम खुद नहीं समझ पाते. ऐसे में आत्मविश्लेषण करते हुए, किसी गहरे मित्र या काउंसलर से बात करते हुए समय- समय पर दिमाग की formatting ज़रूरी है.

बोलने से पहले सोच लें, भड़कने से पहले खुद को नियंत्रित करें, कुछ गहरी साँसें लेकर दिमाग को ऑक्सीजन से भर लें और उसके बाद सधे लेकिन कड़े शब्दों में सामने वाले को अपना रोष व्यक्त करें. दिलो-दिमाग में दबे हुए दर्द, गुस्सा, कुंठाएं हमेशा कमज़ोर करने का काम करते हैं. इसलिए उनसे सबक लेते हुए उनको कहीं दूर निकाल फेंकना चाहिए.

अगर कोई बिना किसी कारण हानि पहुंचा रहा हो तो सोचिये कोई पिछला हिसाब-किताब बकाया होगा जो अब चुकता हो रहा. ये तो निमित्त मात्र है. कर्मों का लेख कई बार समझ पाना बड़ा मुश्किल होता है. ऐसे में उसे माफ़ करते हुए मन में उससे माफ़ी मांग कर उस हिसाब को चुकता कर देना चाहिए. जब इस तरह सोचने लगेंगे तो अपने आप ही क्रोध काफी हद तक नियंत्रित हो जाएगा.

और हमें यह कड़वा, हार्श सच मान लेना चाहिए कि हमारा गुस्‍सा लोगों की मूर्खता को नहीं अपनी ही मूर्खता को जस्‍टीफाई करता है कि हम विवेक से काम नहीं ले पा रहे, और अपने समय, ऊर्जा, सकारात्‍मकता और कुल मिलाकर अपने ही जीवन के दुश्‍मन हैं. इसलिए, यदि आप गुस्से के एक पल को कण्ट्रोल करने में सफल हो जाते हैं तो दुःख के सौ दिनों से बच सकते हैं.

 

Image source: Era Tak and Viraj Tak