थके होने पर भी जो कदम दौड़ने का हौसला रखते हैं, वही जीतते हैं.
निरंतर चलना है जरूरी… पर अक्सर रुक जाते हैं हम, बता कर कोई मजबूरी! जब आप रुक जाते हैं, वहीं से वापस शून्य तक पहुंचने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है. हमने जो हासिल किया, उसे बनाये रखने के लिए लगातार क्रियाशीलता आवश्यक है. पहले के काम से और बेहतर काम ही उस मुकाम को बनाये रख सकता है. और कई बार किसी हादसे से बना-बनाया सब बिखर जाता है तो भी दोबारा जीरो से शुरू करने का हौसला ज़रूरी है. जैसे एक-एक ईंट से घर बनता, बूंद-बूंद से सागर भरता, इसी तरह लगातार प्रयास से सफलता मिलती है.
जिंदगी में हम सभी सपने देखते हैं और फिर उन सपनों को पूरा करने के लिए यात्रा शुरू करते हैं, शुरुआत में हम बड़े जोश में होते हैं और कई बार आसानी से अपने सपनों को पूरा भी कर लेते हैं लेकिन उसके बाद अक्सर कई लोग सुस्त पड़ जाते हैं. वे नए सपने देखना बंद कर देते हैं और अपने एक सपने के पूरा हो जाने से संतुष्ट हो जाते हैं, परंतु जीवन में कोई भी सपना, मुकाम नहीं है बल्कि एक पड़ाव है. उस पड़ाव तक पहुंच कर कुछ देर आनंद लेना और दोबारा नए सपने के लिए यात्रा शुरू करना ही जीवन का असली लक्ष्य है और इसी में जीवन की सार्थकता है.
हौसले के साथ अनुशासन ज़रूरी –
एक बार रुक जाने पर दोबारा शुरू कर पाना मुश्किल हो जाता है, इसके कई कारण हो सकते हैं – शारीरिक या मानसिक बीमारी, पारिवारिक समस्या, आर्थिक मजबूरी, आलस, जुनून की कमी, प्राथमिकताओं का बदल जाना आदि-आदि, हर कोई अपना कारण बेहतर जानता है. यह याद रखना जरूरी है कि अगर हम एक मुकाम पर आकर संतुष्ट हो गए तो हम धीरे-धीरे पिछड़ जाएंगे. जीवन में आप खुद के जो भी काम करते हैं उससे आपका परिवार और समाज प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होता है. सांस चलने तक आपको निरंतर कार्यशील रहना चाहिए क्योंकि जैसे ही आप निष्क्रिय होते हैं, आप खुद पर, दूसरों पर और समाज पर एक बोझ बन जाते हैं, किसी भी इंसान की सार्थकता उसके क्रियाशील होने में है. और निरंतर क्रियाशील बने रहने के लिए हौसले के साथ अनुशासन बेहद ज़रूरी है. कई बार आप अपनी सफलता के मद में आगे देखना ही भूल जाते हैं पर याद रखिये कि कोई भी सफलता स्थाई नहीं होती है, इसलिए ज़मीन पर बने रहते हुए निरंतर प्रयास ज़रूरी हैं. याद रखिए कि गतिशीलता ही जीवन है अपने आप को आलसी मत बनाइए, दिमाग जानता है कि क्या सही है, क्या गलत ! दिमाग से अपने आप को नियंत्रित करना सीखें, सपने देखे जाने चाहिए और उनको पूरा करने के लिए निरंतर बिना थके, बिना रुके मेहनत करनी चाहिए. एक सपने के बाद दूसरा सपना और दूसरे के बाद तीसरा – यह यात्रा रुकनी नहीं चाहिए. छोटे-छोटे कदमों से ही बड़े फासले तय होते हैं. तो ज़रूरी है कि हम बिना थके, बिना साहस खोये चलते रहें. एक फ़िल्मी गीत भी है –
रुक जाना नहीं तू कहीं हार के ..
कांटों पर चल के मिलेंगे साए बाहर के..
ओ राही, ओ राही !
एकला चलो रे –
ऊंचाई तक की यात्रा में पुराने लोगों के छूटने और नए लोगों के मिलने का क्रम चलता रहता है पर आपको खुद के साथ बने रहना आना चाहिए. एक ऊंचाई पर सभी अकेले हैं इसीलिए खुद का सच्चा साथी बनना सीखना चाहिए. रवीन्द्रनाथ ठाकुर का एक प्रसिद्ध गीत है –
जोदी तोर डाक शुने
केउ ना आसे
तोबे एकला चलो रे…
मतलब यदि तुम्हारी आवाज़ पे कोई ना आये तो फिर चल अकेला रे..
फिर चल अकेला, चल अकेला, चल अकेला, चल अकेला रे
अकेलेपन को कमजोरी नहीं बल्कि ताकत समझिये. एकान्त बहुत वक़्त देता है, आप खुद को और आसपास के लोगों को बेहतर तरीके समझ सकते हैं. किसी भी परिस्थिति में आपका काम नहीं रुकना चाहिए, यदि काम की गति कम हो रही है तो खुद को चेताने की आवश्कता है. कुंद पड़ते उत्साह पर धार देने की ज़रूरत है.. क्योंकि जीता वही… जो थका नहीं.
जो काम जोश और उम्मीद से भर कर शुरू किया, उसको पूरा करके ही दम लेना चाहिए और उसके बाद एक नया काम ! सुखी और खुशहाल जीवन के लिए लगातार सपने देखना और पूरे करते रहना ज़रूरी है. व्यर्थ की चिंता में बहुत वक़्त बर्बाद होता है, इससे बेहतर है कि लगातार खुद को व्यस्त रखें, कुछ नया सीखने में या जो भी काम ख़ुशी देता हो उसमें, यदि आप खुद को बिजी रखेंगे तो चिंता करने को वक़्त ही नहीं बचेगा. जाने-माने गणितज्ञ अल्बर्ट आइंस्टीन का कहना था –
Life is like riding a bicycle, to keep balance.You must keep moving.
ख़ुद से सवाल कीजिये –
रोज सुबह खुद को बताइए कि क्या करना है और रोज़ रात खुद से पूछिये कि क्या आज अपने सपनों की दिशा में काम किया? खुद के प्रति जवाबदेही ज़रूरी है और यही आपकी सफलता को निर्धारित करती है.
हर कोई एक विशेष प्रयोजन से जन्मा है और वह प्रयोजन उसे खुद ढूँढ़ना होता है, खुद के लिए उपयोगी, समाज के लिए उपयोगी बन सके.
अपनी खूबियों और कमियों को हर इंसान अच्छे से जानता है लेकिन जरूरी है कि वह इन्हें मानना भी सीखे और वह तभी संभव है जब वह निष्पक्ष भाव से खुद के साथ बैठे, मनन-चिंतन करे, खुद से सवाल-जवाब करे, अपनी खूबियों की सराहना करते हुए उनको बढ़ाने का प्रयास करे और अपने कमियों पर तवज्जो देते हुए उनको दूर करने की कोशिश करे. जो खुद को motivate करना जानता है, उसे दुनिया में कोई नहीं रोक सकता.
अपने पुरुषार्थ से ही जीवन की स्लेट पर हम खूबसूरत इबारत लिख सकते हैं, इबारत कामयाबी की, संतुष्टि की और इबारत दुनिया में अपने होने को सार्थक करने की।
दिल-दिमाग में मानकर चलिए कि हम जीवन में सफल होने आयें हैं, इसीलिए हारिए मत, अपनी निष्क्रियता के लिए बहाने मत ढ़ूंढ़िए क्योंकि सफलता उन्हीं को मिलती है जो हजारों मुश्किल होते हुए भी सिर्फ लक्ष्य पर नजर रखते हैं और उसको प्राप्त करने की प्रसन्नता में जीते हैं, जिनकी आंखों में सपने भरे रहते हैं. निष्क्रिय बैठ कर सही वक़्त का इंतज़ार करने से बेहतर गलतियाँ करते हुए सीखना है. वक़्त कभी सही नहीं होता, हमको अपने कर्मों से उसे सही बनाना आना चाहिए. तो जुट जाइए आज से, अभी से क्योंकि कुछ करने का सही वक़्त यही है… क्योंकि रुकना मना है !
साफ़ करो धूल थकते हौसलों की, उड़ने को अभी आसमान बाकी है।