2020 में कोरोना ने दुनिया का रुख बदल दिया. किसी का कम, किसी का ज्यादा पर सभी का जीवन इससे प्रभावित हुआ. लाखों लोग बीमारी का शिकार हो गये और हजारों लोग अवसाद और बेरोजगारी या भुखमरी से मर गये. न जाने कितनी जिंदगियां अतीत बन गयीं. कुछ दर्ज हुईं और कुछ हवा हो गयीं. ये तो कुदरत का कहर था पर सामान्य दिनों में भी ऐसा कई बार होता है, हम जैसा सोचते हैं, वैसा हो नहीं पाता. सब कुछ रेडी होता है और अचानक कोई बीमारी, हादसा हमारे जीवन का रुख बदल देता है. हम ऊंचाई से, उजालों से, अँधेरे कुएं में जा गिरते हैं. जीरो से दोबारा शुरू करने की हिम्मत जुटानी पड़ती है. ऐसे में अक्सर लोग अवसाद का शिकार हो जाते हैं. वो दोबारा हिम्मत जुटाने की बजाय किस्मत को कोसते रहते हैं, कुदरत के फैसलों पर उंगली उठाते हैं. अपने हालातों से समझौता करके वहीँ ठहर जाते हैं. ज़िन्दगी खूबसूरत है पर कई बार इसका वीभत्स चेहरा भी दिखाई देता है. उसे अस्थायी मानिए, जिंदगी की किताब का चैप्टर है, पूरी किताब नहीं है, पूरी किताब के पन्नों पर यही रंग नहीं है, मनचाहे रंग भरके, मनचाही इबारत लिखने का भी अवसर ज़िन्दगी देती है, यह अवसर आसानी से नहीं मिलता, मेहनत-धीरज-संयम से मिलता है, कई बार इसके लिए कीमत भी चुकानी पड़ती है। पर वो सब अपनी मनचाही या खूबसूरत किताब के लिए की हुई साधना, तपस्या है। ऐसी साधना जिसका हासिल या उपलब्धि या ख़ूबसूरतियाँ हम देख पाते हैं, आनंद महसूस कर पाते हैं, यह हमारे निर्णयों, चॉइसेज और मेहनत-धीरज के मिश्रण से बनने वाला रसायन है।
कुछ दिन ख़ामोशी के बादल, शाम होते-होते गहराने लगते हैं, रात भीग जाती है और सुबह धुली-धुली सी लगती है. कई दिन ऐसे ही सुबह से शाम होते हैं… ऐसे में ज्यादा चिंता करने की बजाय उस मौन का सुख लेना सीखना होगा… इतिहास बताता है कि बड़े से बड़े यौद्धा लगातार नहीं लड़ते, विश्व विजेता भी. सब दो युद्धों के बीच तैयारी और आराम का वक़्त लेते हैं. तन-मन और आत्मा को फिर से ताज़गी देते हैं.
बड़े सृजन से पहले प्रकृति भी अक्सर शांत होती है. खुद को धारा में बहने को छोड़ देना चाहिए. कई बार थोड़ा रुक जाने में भी कोई हित छुपा होता है. लगातार लड़ते हुए कमजोर लड़ाई लड़ने, हारने से बेहतर है, ब्रेक लेना और दुगुनी ताक़त से मैदान में फिर आना और फतेह करना.
ये भी महत्वपूर्ण है कि नए मौसमों के स्वागत की तैयारी भी अलग से करनी होती है, सोचिए ज़रा कि पिछले सीजन की उदासियों के भार के साथ नए मौसम क्या खुल के आपसे गले मिल पाएंगे?
उदासियों का कोई मौसम नहीं होता है पर वो जिस मौसम में आती हैं, उसे उदास कर देती हैं. पर इन उदासियों में भी रंग होते हैं – हल्के, शुष्क, फीके से जो चटक रंगों के साथ तालमेल में मददगार साबित होते हैं. इनको सहेज लेना चाहिए. अपने अन्दर तब तक भरते जाना जब तक भीतर का खालीपन भर न जाए और फिर दोबारा खाली होने की प्रक्रिया… यही जीवन है जैसे पृथ्वी का सूर्य के चारों तरफ परिक्रमा करना. मौसमों का आना-जाना, नए सृजन और विनाश होते रहना. कुछ भी अजर-अमर-अविनाशी नहीं, सिवाय कुदरत के कुछ तत्वों के, तो फिर किस बात की चिंता हमको पीड़ित करती है? जिन चीज़ों को हम मुट्ठी में बांध कर रखना चाहते हैं, जिन चीज़ों रिश्तों के लिए हम चिंतित रहते हैं वो किसी भी क्षण हमारी पहुँच से बाहर जा सकती है. इसलिए जो मिला है, उसमें खुश रहते हुए. बस पल को उन्नत बनाने के लिए प्रयास करना चाहिए. सच तो यह है कि मेहनत करना हमारे हाथ में है पर कुदरत के फैसले हमारी पहुँच से बाहर हैं. उन फैसलों को बदला या चैलेंज नहीं किया जा सकता, उनको स्वीकार करते हुए उसके साथ खुद को अभ्यस्त करना ही हमारे हाथ में होता है. फिर ये हमारी बुद्धि के स्तर पर निर्भर करता है कि हम उसको सहज लेते हैं या शिकायतें करते हुए, कुढ़ते हुए. विषम से विषम परिस्थिति में भी अपना साहस न खोना और हजारों कड़वाहटों के बावजूद अपनी मिठास बचाए रख पाना ही जीवन को नए आयाम और सार्थकता प्रदान करता है. पिछले सीजन के खराब अनुभव सबक की तरह लीजिए, उदासी या बदकिस्मती की तरह नहीं, ब्रेक लीजिए, अपनी कमियां सुधारिए, ताकतें बढ़ाइए, अपने दिल को ईर्ष्या रहित बनाइए, उसे सकारात्मकता के फूलों की बगिया बनाइए कि आसपास कोई नेगेटिविटी भी फटके तो सकारात्मक होकर लौटे। आपकी सकारात्मकता और भीतरी सुंदरता से आपके दुश्मनों, आपसे ईर्ष्या रखने वालों के मन की कलुषता भी धुल जाए।
भूलिए मत कि अल्पविराम, पूर्णविराम से बेहतर होते हैं…
जीवन, करियर, रिश्तों और भावनाओं में अल्पविरामों की अवधि को अपने तन-मन की सकारात्मकता को बढ़ाने की इंटर्नशिप के रूप में लेना सीखना चाहिए। अल्पविरामों की यह अहमियत हमारे स्कूली पाठ्यक्रमों में पढ़ाई जानी चाहिए। अगर ऐसा हो जाए तो हम बेहतर, सुकून वाला जीवन जी सकते हैं। बेहतर दुनिया भी रच सकते हैं।
याद रखना चाहिए कि कुछ अच्छा बहुत धीरे-धीरे पकता है, रोशनी की मंज़िल मीलों अंधेरे के बाद मिलती है, हथेली भर सुख गठरी भर दुख के बाद मिलता है… इसलिए मुस्कराते हुए सब्र रखना आना चाहिए. खुद को बहाव में छोड़ देना ही सबसे अच्छा विकल्प होता है जो अक्सर नए किनारों से मिलवाता है. जब आप अपनी यात्रा प्रारंभ करते हैं तो सब आपका विश्वास नहीं करते, कुछ लोग आपकी प्रतिभा को पहचानते हुए आपको मौका देते हैं और जब आप खुद को साबित करते हैं तब धीरे-धीरे बाकी लोग भी आप पर विश्वास जताने लगते हैं. ये दुनिया सदियों से ऐसे ही काम करती है. कुछ मौके ऐसे भी आते हैं जब कोई आपका विश्वास नहीं करता ऐसे में खुद पर विश्वास होना बहुत ज़रूरी है. आपका खुद पर अटूट भरोसा ही जीवन की असली पूँजी है, जिसके भरोसे कुछ भी हासिल किया जा सकता है.
अपने भीतर की यात्राएं बाहर की यात्राओं के लिए रसद बनती है. खुद पर भरोसे से दुनिया जीत सकते हैं. बीच के, ठहराव के वक़्त भीतर के द्वीप की यात्राओं और आनंद के लिए होते हैं. उनकी अहमियत को ख़ारिज करने का मतलब है, आगे की लड़ाई का कमजोर होना, कमजोर होना यानी हार का सुनिश्चित होना.
Image source: Era Tak