कोरोना की दूसरी लहर अपने चरम पर है, देखते ही देखते अप्रैल-मई में लाखों घर बर्बाद हो गए। किसी का जवान बेटा/ बेटी असमय चले गए तो किसी का छोटा बच्चा, किसी ने वक़्त से पहले अपने बुजुर्ग माता/ पिता को खो दिया,  कई अपने जीवन साथी को खोकर तन्हा हो गए। किसी-किसी घर में तो एक नहीं बल्कि दो से चार मौतें भी हुई हैं। कितने भी सकारात्मक हों, फिर भी महामारी के कारण लगातार हो रहीं अकाल मौतों से दिल टूटता है, भले ही उनसे कोई मोह न हो, तब ये दुख उनके परिवार के लिए कितना असहनीय होता होगा, इसकी कल्पना मेरी बुद्धि से परे है। चाह कर भी हम उनका दुख कम करने के लिए कुछ नहीं कर पा रहे हैं। सब जूझ रहे हैं जिंदा रहने को और सब तिल-तिल मर रहे हैं ! हममें से ज्यादातर चिंता से घिर जाते हैं कहीं अगला नंबर हमारा तो नहीं? कहीं हमारे परिवार का कोई सदस्य, करीबी मित्र इस बीमारी का शिकार तो नहीं हो जाएगा?

मन की गति दुर्गति

थोड़ी-बहुत चिंता हम सभी करते हैं पर अगर चिंता करना एक आदत ही हो जाए तो ये जिस मस्तिष्क में रहती है, उसे ही खाने लगती है। जरूरत से ज्यादा चिंता मेनिया, फोबिया, मानसिक उन्माद, स्थाई अवसाद का रूप ले सकती है। डॉक्‍टर्स और मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि ज्यादा चिंता करने से स्ट्रेस हार्मोनस रिलीज होते हैं जो दिल की धड़कनों, साँसों की गति, ब्लड में शुगर लेवल बढ़ा देते हैं। जिस वजह से चिंतित व्यक्ति तनाव और बेचैनी महसूस करता है। तनाव की वजह से सिरदर्द और बदन दर्द भी हो सकता है जिस वजह से हम बिना किसी ठोस वजह के ही बीमार महसूस करने लगते हैं। और आजकल इस-इस तरह के पैनिक अटैक आम होते जा रहे हैं। किसी काम में मन न लगना, नींद न आना, अचानक घबराहट होने लगना, सेक्स में अरुचि होना, गुस्सा आना, मरने का भय होना, बार-बार बुखार या ऑक्‍सीजन लेवल चेक करना आदि लक्षण आम बात हैं। दिन भर टीवी और सोशल मीडिया पर चल रही खबरों को देख कर हम नकारात्मक होते हैं तो एक के बाद दूसरा और दूसरे के बाद तीसरा विचार chain reaction करते हुए हमको घेर लेता है। और हम ऐसे डर के शिकार हो जाते हैं जो शायद हकीकत में हमारी ज़िंदगी में आए भी न।

आपबीती से जगबीती तक

कुछ दिनों पहले मैंने अपनी एक करीबी संबंधी को अस्पताल में भर्ती करवाया था। सोचा था वो corona को हरा कर वापस घर आएंगी पर प्रारब्ध कुछ और था। 6 दिन कोविड से जंग लड़ते हुए आखिर वो हार गईं। उनको अस्पताल में एडमिट कराने से लेकर अग्नि के सुपुर्द करने तक जैसे एक युग बीत गया हो। उनके ठीक होने की उम्मीद एकाएक ब्लैकहोल में खो गई। उनको आईसीयू में ventilator पर करीब से देखा था। मशीनों वो आवाज़ें मेरी कानों में गूँजती है, डॉक्टर से की बातचीत सुनाई देती है – कल से कन्डिशन बैटर है। उनकी बॉडी को एक सफेद बैग में पैक करना, जलती चिता, ऑक्‍सीजन के सिलिन्डर, मरीजों और उनके तीमारदारों की भीड़ हर रात मेरी नज़रों के सामने आती है। जब परिवार में कोई मृत्यु इस तरह से हो जाए कि ठीक से विदाई भी न दे सकें, गले लग कर रो भी न सकें तो हृदय मौन हो जाता है और दिमाग सुन्न।

पर फिर भी दिमाग को काबू में रखना जरूरी है क्यूंकि इस पर डर हावी होते ही ये हमको आधा मार देता है।

कुछ अपने लिए, कुछ अपनों के लिए, कुछ दूसरों के लिए

– अगर घर में सुरक्षित बैठ कर आप अवसाद का शिकार हो रहे हैं तो एक बार किसी अस्पताल का चक्कर लगा आइए। वहां भर्ती मरीज़, उनके परिजन, उनके इलाज में लगे डॉक्टर्स, स्वास्थ्यकर्मी किस तरह भयंकर मानसिक और शारीरिक थकान से गुज़र रहे हैं। हम ज़्यादा न कर सकें तब भी सावधानी रखते हुए आसपड़ोस में बीमार / हाउस हेल्प/ जरूरतमंद लोगों के लिए मदद का हाथ बढ़ा सकते हैं।

रोग और मृत्यु को करीब से देखते हुए जीवन से काफ़ी कुछ व्यर्थ निकल जाता है। शायद ये बेहतर मनुष्य होने का अभ्यास भी है। जब हर तरफ़ क्रंदन हो, तब उत्सव मनाना राक्षसी कृत्य मालूम होता है। लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि आप हर वक़्त फिक्र में डूबे रहें, रोते रहें। बस शांत हो कर कुदरत के फैसलों को समझना है और हिम्मत बनाए रखनी है।

– आप अतीत के दुखों का कुछ नहीं कर सकते, उनको कुरेद या याद करके वर्तमान ज़रूर कड़वा कर सकते हैं। ये जीवन बहुत कुछ सिखाता है, जो हमारे अनुभव में शामिल हो हमको wise बनाता है। वर्तमान में पूरी चेतना और साहस से जीवित रहिए और भविष्य की व्यर्थ चिंता न करते हुए आज के पलों को प्रेम से खूबसूरत बनाते हुए क्योंकि इससे ज़्यादा हमारे हाथ में कुछ नहीं। जो हैं जैसे हैं उसमें सहज रहते हुए, मिथ्या आडंबर से बचते हुए अपने होने का कुछ अर्थ खोज पाएं।

– यह एक दूसरे के काम आने का वक्‍त है, किसने क्या किया, उसका हिसाब मत कीजिए, अगर आप किसी की मदद कर सकते हैं तो कर दीजिए ! इससे आप अपना होना भी सार्थक महसूस करेंगे। खुद की हीलिंग भी होगी।

– खुद को लगातार समझाते रहें कि डर से कोई हल नहीं निकलता।

– रोज एक्सर्साइज़, योग को अपने जीवन का हिस्सा बनाए। कुछ देर प्राणायाम और मेडिटेशन जरूर करें।

– जरूरत से ज्यादा टीवी, मोबाइल, लैपटॉप से बचि‍ए। कोशिश कीजिए कि अच्छी और सकारात्मक चीजें ही देखी जाए।

 

जीवन के सत्य का करें सामना

जीवन का पहला सत्‍य जीवन है, जो जीवन भर साथ रहता है, चाहे मृत्यु जीवन का अंतिम सत्य है, एक ऐसा सत्य जिसका नाम लेने से भी सब घबराते हैं। किसी के असमय और अचानक चले जाने का दुख असहनीय होता है पर ये भी सच है कि जीवन किसी के जाने नहीं रुकता, हाँ अवस्थित जरूर हो जाता है।  जिसकी किस्मत में जो सुख-दुख लिखे हैं उनको हम चिंता कर के नहीं बदल सकते। हाँ अपने जीते जी कुछ बचत करके आने वाले जीवन को सरल जरूर बना सकते हैं।

तो चिंता से इस बीमारी से नहीं बचा जा सकता और अगर खुदा न खास्ता इसकी चपेट में आ भी गए तो सही समय पर इलाज और मजबूत आत्मशक्ति ही कुछ बचाव कर सकती है तो फिर किस बात की फिक्र। मरने तक जिंदा रहना सीख लें, ये वैश्विक महामारी का दौर है और हम और आप सिर्फ़ लोगों की मदद कर सकते हैं जितनी संभव हो पर रोज चिंता से मरना सही नहीं है। ये बुरा दौर भी बीतेगा किस्मत और साहस हुआ तो हम जरूर बचेंगे। अगर कुदरत को हमसे कुछ काम करवाने होंगे तो जरूर बचा लेगी।

सकारात्मक सोच के साथ ख़ुश रहने के लिए दिमाग की बंद खिड़कियां खोलनी होती हैं। बंद दिमाग ठीक उसी तरह है, जैसे बंद कमरों में सिर्फ़ घुटन होती है। जो ऐसा नहीं कर पाते वो डरे हुए दुखी रहने की जायज़ वजहें गिनते-गिनाते रहते हैं। अपने डर को जीत कर खुशी का दरवाज़ा खोल सकते हैं पर अफ़सोस, कि ज़्यादातर लोग उस दरवाज़े को छू भी नहीं पाते !

समय की नदी में भंवर है अभी

ये समय डरावना जरूर है पर अभी भी पूर्ण अंधेरा नहीं है उजाले की उम्मीद ही रोशनी तक पहुंचाएगी। जीवन के हर युद्ध में आप अकेले हैं ऐसा सोच के लड़ने से साहस बना रहता है, अगर आप सेना की प्रतीक्षा करेंगे तो खुद को कमज़ोर कर लेंगे। और अगर आप साहसी हैं तो कई साहसी लोग आपके साथ खड़े हुए नजर आएंगे। जो मिला है उसके लिए कुदरत का आभार मानते हुए, बचा लीजिए, जितने भी लोगों को बचा सकें। ये corona काल सारे स्वार्थ भूल कर बेहतर इंसान होने का समय है।

 

Image Source: Era Tak

 

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