दूसरों को माफ कीजिए, अपने मन की सेहत के लिए

माफ़ कर पाना एक ऐसी प्रक्रिया है जो दूसरे को अपराधबोध से मुक्त करने के साथ-साथ स्वयं को भी हल्का करती है। जब तक हम आहत होते हैं, क्रोध और पीड़ा को अपने भीतर पालते-बढ़ाते रहते हैं, जो दुख के सिवाय कुछ नहीं देती। माफ़ कर देना आसान नहीं होता परंतु अपने मानसिक स्वास्‍थ्‍य को ठीक रखने का सबसे सहज और सरल उपाय है। माफ़ करने के लिए हिम्मत, दया, बड़ा दिल, संवेदना, स्वानुभूति (empathy) आदि का होना जरूरी है, ये कमज़ोरों का काम नहीं है। इसके लिए ज्‍यादा मानवीय होने की, उदार होने की जरूरत होती है।

कई बार हमारे दिल में सवाल आता है कि यदि कोई माफ़ी मांगे तो माफ़ भी किया जाए, अगर सामने वाला अपनी गलती पर शर्मिंदा ही नहीं तो क्यों माफ़ करें? हम जितनी बार किसी का कृत्य याद करते हैं, पीड़ित होते हैं, नकारात्मकता से घिरते हैं, उतना ही अपना समय और कीमती ऊर्जा नष्ट करते हैं। किए जा चुके कार्य को मिटाया नहीं जा सकता, लेकिन उसके दुष्प्रभाव को कम करने के लिए माफ़ जरूर किया जा सकता है। अगर कोई अपनी गलती महसूस करके माफ़ी माँगता है तो उसको पश्‍चाताप का मौका जरूर देना चाहिए, हो सकता है कि वो सुधर जाए। जो माफ़ी नहीं माँगता, फिर भी हमको उसे माफ़ कर देना चाहिए, हो सकता है हमारे किसी कर्म का हिसाब-किताब बाकी रहा हो। मन ही मन उसको माफ़ करते हुए, उससे माफ़ी मांग लेनी चाहिए और खुद को उस विचार से मुक्त कर लेना चाहिए। दुनिया में बहुत-कुछ है जो गलत है पर यदि हम हर चीज़ का विरोध ही करते रहेंगे तो अच्छी चीजों का रसास्‍वादन कब कर पाएंगे? इसलिए सकारात्मक दृष्टि रखी जाए।

ऐसा भी कई बार होता है कि हम माफ़ करते जाते हैं पर सामने वाला गलतियाँ करना नहीं छोड़ता, धीरे-धीरे आप उसके मोह से मुक्त हो जाते हैं। आप सिर्फ स्वयं से उम्मीद रखना और स्वयं के साथ खुश रहना सीख जाते हैं। यकीन मानिए हमारे साथ सही या गलत जो भी होता है, उसकी लगभग नब्बे प्रतिशत जिम्मेदारी हमारी ही होती है। अच्छा हुआ तो इसलिए कि हमने प्रयास किए, गलत हुआ तो इसलिए क्योंकि हम कहीं न कहीं कमजोर या ढीले पड़ गए। अपनी गलतियों के लिए दूसरों को दोष देना सबसे बड़ी मूर्खता है, किसी ने हमारा फायदा उठा लिया, इसका मतलब कि हमने उसको इस बात का मौका दिया, किसी पर भी आँख बंद कर भरोसा करना समझदारी भी तो नहीं है।

सीखिए खुद को माफ़ करना

जब हम अपनी मूर्खता को स्वीकार करते है तो स्वयं से नाराज भी होते हैं, खुद को माफ़ करना जरूरी होता है वरना हम अपना आत्मविश्वास खोने लगते हैं। कुछ ऐसी बातें या गलतियाँ होती हैं जिसको हम अपने अलावा किसी से शेयर नहीं कर पाते, ऐसे में वो हमको बार-बार कचोटती हैं। खुद की गलती स्वीकार करना या मानवीय भूल मानना सुधार की तरफ पहला कदम है और उस गलती को दोबारा न दोहराने का संकल्प लेना दूसरा कदम।

ज़िंदगी एक बार मिलती है, इसके हरेक क्षण का सदुपयोग करके हम जीवन को सुंदर और सार्थक बनाते हैं।

जो पल जी लिया, वही हासिल है, इस वजह से खुद को माफ़ करते हुए, अपनी गलतियों से सबक लेते हुए आगे बढ़ते रहना चाहिए। जितनी देर तक आप अतीत की गलतियाँ या मानवीय भूलें याद करते रहेंगे, वर्तमान में अपने सुख के पलों को कम करते रहेंगे। हमको खुद के साथ रहना है, चाहे दुनिया में कोई हमारा साथ दे न दे। ऐसे में सबसे पहले खुद का मित्र बनना होगा। खुद को आईना दिखाना आना चाहिए, हम अपनी खूबियों और कमियों को बखूबी जानते हैं, यह बात अलग है कि हम अपनी तारीफ पर फूल कर कुप्पा हो जाते हैं और कमियाँ सुनने पर चिढ़ जाते हैं। जब आप अपनी तारीफ या बुराई से प्रभावित होना छोड़ देते हैं तो ज्यादा संतुलित हो जाते हैं, दोनों स्थितियों में सहज रहना सीख लें, आपकी बुराई की तरफ अगर कोई शुभचिंतक इशारा कर रहा है, तो विचलित न हों, उसे सहजता से सुनें, अकेले में विचार करें। इससे आपको अपने आगे के जीवन को बेहतर बनाने में मदद मिलेगी।

आज के दौर में लोगों की सहनशीलता कम होती जा रही है, हम हर वक़्त झूठ और दिखावे से घिरे रहते हैं, छोटी-छोटी बातों का बतंगड़ बना लेते हैं, माफ़ करना जैसे भूल ही गए हैं। यकीन मानिए, माफ़ करके आप जिसको रिहा करते हैं, वो आप खुद होते हैं क्योंकि आप उस दुख को विदाई देते हैं, जिसने आपके दिल और दिमाग को आहत किया हुआ था। खुद को हील करने की शुरुआत भी माफ़ी मांगने से होती है।

जीवन में ऐसे कई रिश्ते होते हैं जो टॉक्सिक होते हैं, यकीन करना मुश्किल होता है पर कई लोग अपने पेरेंट्स से ही प्रताड़ित होते हैं और जीवन भर रिश्तों के प्रति सहज नहीं हो पाते हैं। लेकिन फिर भी विश्वास और प्रेम के अलावा प्रसन्न रहने का कोई और रास्ता नहीं है। हम किसी का स्वभाव बदल नहीं सकते, पर कौन हमारे साथ रह सकता है, यह तय करने का अधिकार हम एक उम्र के बाद हासिल कर लेते हैं। खुद को किसी भी तरह की toxicity से बचा कर रखना हमारी खुद के प्रति पहली जिम्मेदारी है।

कैसे आसान हो माफ़ करना और माफ़ी मांगना

*दूसरे की जगह खुद को रख कर सोचें।

*रोज 20 से 25 मिनट ध्यान करें, इससे अपने मन में चल रहे, कई सवालों को जवाब मिल जाएंगे और आप किसी भी फैसले को आसानी से ले पाएंगे।

*कोई भी ठहरा हुआ विचार मन को दूषित करता है, इसलिए विचारों का आवागमन बना रहना चाहिए।

*क्रोधित होने पर कुछ देर शांत रहने से आप बेहतर तरीके से बात को समझ पाते हैं।

*कुदरत के करीब जाकर मन को खाली कर देना, मानसिक स्वास्‍थ्‍य के लिए अच्छा रहता है।

*कोई भी कितना करीब हो पर उसको अपने आत्मसम्मान को ठेस पहुँचाने का कोई हक नहीं है। करीबियों के आत्‍मसम्‍मान को ठेस न पहुंचाने की बात भी दोतरफा है। याद रखिए कि जो व्‍यवहार करेंगे, वही हम पाते हैं या जो अपेक्षा करते हैं, वह व्‍यवहार करना सीख लेना चाहिए। अपना मानसिक स्वास्‍थ्‍य बचाए रखने का यह भी तरीका है।

*अगर आप गलत हैं तो माफ़ी मांगने में बिल्कुल भी संकोच न करें, इससे आप बड़े होंगे, छोटे नहीं। दूसरों यानी आसपास के करीबियों के मानसिक स्वास्‍थ्‍य का खयाल रखकर हम पूरा माहौल ठीक रख सकते हैं, यह पारस्‍परिकता जीवन को बेहतर बनाती है।

माफ़ करते हुए हम अपनी अपार ऊर्जा बचाते हैं, जीवन अफ़सोस में गँवाने को बहुत छोटा है। किसी के गलत व्यवहार के लिए हम दोषी नहीं हैं तो हम उस अपमान को भीतर ज़िंदा रख कर क्यों पीड़ित होते रहें, बेहतर होगा कि उस बात को भूल कर माफ़ करके आगे बढ़ जाएँ, फालतू के बोझ से हमारी ही रफ्तार कम होगी। हमने किसी के लिए बहुत-कुछ किया और उसने सिर्फ हमारा फायदा उठाया, ऐसे में खुद को या उसको दोष देने से बेहतर यह सोचा जाए कि हम किसी के लिए करने काबिल थे तो कर सके, उसका जितना हिस्सा था वो ले गया और हम मुक्त हुए।

“कौन निभाता है उम्र भर की कसमें

जो जितना साथ चल दे, उसका शुक्रिया”

अच्छे कर्म वापस लौटते हैं, प्रेम भी, केयर भी, उदारता भी, बस माध्यम अलग हो सकता है, इसलिए माफ़ करते रहिए, मुक्त रहिए, आनंदित रहिए क्योंकि प्रसन्न रहना ही जीवन का उद्देश्य है। दूसरों को माफ कीजिए, अपने मन की सेहत के लिए, क्‍योंकि आपका खुश रहना बहुत जरूरी है।