बचपन में मुझे एक बार सिनेमा की फिल्म की रील का कुछ एक मीटर लम्बा टुकड़ा मिला। इसमें दसियों फ्रेम ऐसे थे जो लगभग एक जैसे थे। जब मैंने अपने पिताजी से पूछा कि इसमें इतने सारे समान चित्र क्यों हैं, तो उन्होंने उनमें से प्रत्येक में सूक्ष्म अंतरों की ओर इशारा किया और बताया कि जब वे एक निश्चित गति से बदलते हैं तो गति में दिखते हैं। उन्होंने इस विचार को और समझाने के लिए मुझे सीलिंग फैन दिखाया। चलते समय, मुझे तीन ब्लेड दिखाई नहीं दे रहे थे, बल्कि एक डिस्क की तरह दिख रहे थे।

जीवन हर पल बदलता है।

जबसे मैंने इस ब्लॉग को लिखना शुरू किया है,  एक पैराग्राफ के बाद इस वाक्य तक आते-आते, सूर्य आगे बढ़ गया है, पृथ्वी भी घूम गई है, घड़ी की सुइयाँ सरक गई हैं, और प्रत्येक शब्द जब मैं टाइप कर रहा हूँ, मेरे कम्प्यूटर में एक अलग समय में दर्ज हो रहा है। कई मोबाइल कैमरों में, एक तस्वीर क्लिक करने का समय भी रिकॉर्ड किया जाता है, और आप एक के बाद एक क्लिक की गई दो तस्वीरों के बीच भी एक सेकंड के अंश का अंतर आप देख सकते हैं।

तो, हर पल सब कुछ बदल रहा है। कोई भी दो क्षण एक जैसे नहीं हैं। अगला क्षण पहले वाले क्षण से हजार प्रकार से भिन्न है। कुछ बदलाव हम नोटिस कर पाते हैं, लेकिन अधिकांश पर हमारा ध्यान भी नहीं जाता। लेकिन जो चीज सबसे ज्यादा और तेजी से बदलती है, वह है हमारा मन। हर क्षण एक नया विचार उत्पन्न होता है और दूसरा विचार उत्पन्न करता है। हमारा मन बिना रुके भटकता रहता है – या तो अतीत की यादों में घूमता है या भविष्य की कल्पना करता है। जब तक आप इसे वर्तमान क्षण पर केंद्रित करने की कोशिश नहीं करेंगे, तब तक आपको इस बात का एहसास भी नहीं होगा। अपनी सांस पर ध्यान देने की कोशिश करें और आप महसूस करेंगे कि किसी न किसी विचार से बाधित हुए बिना दस सांसों को गिनना भी कितना मुश्किल है।

गौतम बुद्ध ने अस्थिरता, पीड़ा और “मैं” के भ्रम को अस्तित्व के तीन निशानों के रूप में बताया। जो कुछ भी है, वह सदैव परिवर्तनशील है। हम जो हवा भीतर लेते हैं वह पहले वाली सांस से अलग होती है, रसोई में जलते चूल्हे की लौ में गैस उससे अलग होती है जो एक पल पहले जल रही थी। टीवी स्क्रीन पर शब्द और चित्र हर पल बदलते हैं। यहां तक कि हमारा शरीर भी लगातार बदल रहा है – पेट में पड़ा भोजन पच रहा है; बाल और नाखून बढ़ रहे हैं, त्वचा झड़ रही है; यहां तक कि रक्त कोशिकाएं मरकर हर 120 दिनों में नए सिरे से पैदा हो रही हैं, और इसी तरह हड्डियां भी बदल रही हैं।

हम आठ रस्सियों से बुने जाल में फंसे हुए हैं – मुझे यह पसंद है और यह पसंद नहीं है, मुझे जो पसंद है उससे मैं जुड़ा हुआ हूं, और जो मुझे पसंद नहीं है उससे छुटकारा चाहता हूँ, मुझे जो पसंद है उसे अपनाना चाहता हूं और जो मुझे पसंद नहीं है उससे निजात की दरकार है। लोगों को मेरी तारीफ करनी चाहिए, उन्हें मेरी आलोचना नहीं करनी चाहिए, मुझसे प्यार करना चाहिए, नफरत नहीं करनी चाहिए। अपने जीवन के किसी भी क्षण की जांच करें – ध्यान दें कि आप या तो सुख, प्रसिद्धि और लाभ के पीछे भाग रहे हैं, या दर्द, महत्वहीनता, हानि या दोषारोपण से बचने की कवायद रहे हैं।

अब विचार करें कि यह “मैं” कौन है। वह बच्चा कहाँ है जो आप कभी थे? और वह किशोर! वह नवविवाहित जोड़ीदार! जब वह सब बदल गया है, तो आपकी पसंद-नापसंद क्यों नहीं बदल रही हैं? एक बच्चे के रूप में आपका डर अभी भी आपको क्यों डराता है? आपके पुराने लगाव अब भी आपको क्यों रुलाते रहते हैं? एक कहानी, जिसमें आप नायक हैं, क्यों हमेशा आपके दिमाग में चलती है? और यह कहानी हमेशा उदासी भरी, गमजदा क्यों है? क्यों आप अपने आस-पास की गलत और बुरी चीज़ों – जिसमें इंसान और हालात दोनों शामिल हैं – के शिकार हैं?

वर्तमान क्षण में जिएँ।

जो बीत गया वो कभी वापस नहीं आएगा। भविष्य में जो कुछ है वह आपकी कल्पना है जोकि ज्यादातर बुरे और अतिरंजित ख्यालों के अलावा और कुछ नहीं है। हर सांस के साथ निराशा को बाहर फेंक दें और हर नई सांस के साथ आशा और आशावाद को भीतर खींचें। जीवन “इस क्षण” में जैसा है, उसके अलावा और कैसा भी नहीं हो सकता था और जो कुछ भी होगा, वह “इस क्षण” जो है उसी में से ही जन्म लेगा। चारों ओर ध्यान से देखें – आपको जो कुछ भी चाहिए वह पहले से ही यहां है। दुनिया फानी है। पानी से लिखी-लिखाई है। संकेतों को पढ़ना सीखें, ईशारों को समझें, मुस्कुराएँ और आगे बढ़ें।