अब तक, ब्रह्मांड में, पृथ्वी के अलावा, कहीं और जीवन का कोई प्रमाण नहीं मिला है। बेशक, इस बात की संभावना हमेशा बनी रहती है कि हमारी जैसी कोई और दुनिया भी विशाल ब्रह्मांड में मौजूद है, जिस तक अभी हमारी पहुंच नहीं है। लेकिन अंतरिक्ष में जो कुछ भी जाना गया है – सौर मंडल में, हमारी आकाशगंगा मंदाकिनी (मिल्की वे) में, और अगली-नजदीकी आकाशगंगा एंड्रोमेडा में, उनमें जीवन के कोई निशान नहीं हैं। पर एक कयास के मुताबिक हमारे ब्रह्मांड में 170 अरब आकाशगंगाएँ हैं, जो एक खरब या इससे अधिक भी हो सकती हैं। तो क्या पता, हमारे जैसा भी कहीं कोई और हो?

एक अनुमान के अनुसार, हमारा ग्रह पृथ्वी 4.54 अरब वर्ष पुराना है।

इसमें लगभग 50 मिलियन वर्ष इधर-उधर हो सकते हैं। जिसे हम अपनी पृथ्वी कहते है, वह ग्रह बुध और शुक्र के बाद सूर्य में विस्फोट से निकलकर फैलते गैस और धूल के गुरुत्वाकर्षण बल द्वारा एक गोलाकार द्रव्यमान में खींचे जाने के बाद बना था। बाद में, उड़ने वाले कण पृथ्वी से दूर अन्य ग्रहों – क्रमशः मंगल, बृहस्पति, शनि, यूरेनस और नेप्च्यून में परिवर्तित हो गए। पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत, उसके पर्याप्त रूप से ठंडा होने के बाद, 3.7 अरब साल पहले, सूक्ष्म जीवों के रूप में हुई थी।

कोई 2.4 अरब साल पहले, कुछ सूक्ष्मजीवों ने पानी और सूर्य की ऊर्जा का उपयोग करके भोजन बनाना शुरू किया और इसके परिणामस्वरूप ऑक्सीजन का बनना चालू हुआ। इससे बहुकोशिकीय प्राणी वजूद में आए और लगभग 60 करोड़ वर्ष पहले, जानवर विकसित हुए, जो पहले पानी में ऑक्सीजन के चयापचय पर जीवित रहे और फिर बाहर निकल कर जमीन पर रेंगने लगे। स्तनधारी जीव 250 मिलियन वर्ष पहले विकसित हुए, और आधुनिक मनुष्य केवल 300,000 वर्ष पहले भोजन के लिए शिकार करते हुए दो पैरों पर चलने वाले वानर के रूप में घूमते हुआ प्रकट हुआ। खेती-बाड़ी केवल 10,000 साल पहले शुरू हुई।

हम केवल 3,000 साल के इतिहास को जानते हैं जो 10वीं शताब्दी ईसवी पूर्व (आम युग से पहले) के बराबर है।

हमारे शरीर में जो डीएनए है, वह नर और नारी के पहले जोड़े से क्रमिक पीढ़ियों के माध्यम से स्थानांतरित होता हुआ हम तक पहुंचा है। आज पृथ्वी ग्रह पर मौजूद 8 बिलियन लोग 400 पीढ़ियों के माध्यम से पैदा हुए हैं। चालीस पीढ़ियां 1000 वर्षों में होती हैं और इस प्रकार डीएनए नये-नये शरीरों में गुजरता रहता है। पता रहे कि आपके शरीर में आपके सभी पूर्वज मौजूद हैं। डीएनए की – एक पिता से और दूसरी माता से मिली – दो कड़ियों ने आपको बनाया है, और आपने इसे अपने जीवन साथी के साथ बच्चे पैदा करके आगे बढ़ाया है। आप अपनी हड्डियों में अपने पुरखों को महसूस कर सकते हैं, और आपको उन बच्चों की जिम्मेदारी के प्रति सजग होना चाहिए जो आपकी वजह से इस दुनिया में आए हैं।

गौतम बुद्ध, जो 6वीं शताब्दी ईसवी पूर्व में रहते थे, ने आश्रित उत्पत्ति के सिद्धांत – प्रतीत्यसमुत्पाद – की स्थापना की। जो कुछ भी मौजूद है, वह मरने और बनने के बीच की बारह कड़ियों में से होकर निकलता है। बिना किसी कारण के, बिलावजह, कुछ भी मौजूद नहीं है।

 

जब यह है, तब वह होगा।

यह बना, तो वह बनेगा।

जब यह नहीं है, तब वह नहीं होगा।

इसके रुकने से, यह बंद हो जाएगा।

 

किसी भी नई चीज के पीछे, इच्छाओं और कार्यों का पूरा खेल होता है, जो घटनाओं के मध्यवर्ती चरणों का निर्माण करता है। अंततः जो शुरू हुआ है उसे खत्म होना है, जो उठा है उसे गिरना है, और जो पैदा हुआ है उसे मरना है। यही काल का चक्र है। इसके नीचे आकर कुचले न जाओ, इसके साथ चलो।

अपनी इच्छाओं के बारे में चौकस रहो। अपने शरीर में उत्पन्न हो रही चूलों को महसूस करो – भूख, प्यास, पसंद और नापसंदी। समझो कि आप कैसे हर पल, या तो लोगों-चीजों की तरफ बढ़ रहे हैं, या उनसे से दूर भाग रहे हैं। अपनी इच्छाओं द्वारा संचालित रोबोट की तरह जीना बंद करें। एक विराम लें और रुकें और हर वक्त अपनी मरजी चलाए बिना, जिंदगी को होने दें। अपनी इच्छाओं के भँवर में से निकल कर जो हो रहा है उसके साथ बहना सीखें।