मैं कौन हूँ? इस प्रश्न पर अवश्य विचार करना चाहिए। जाहिर है, हम में से प्रत्येक एक शरीर है। फिर शरीर के अंदर प्राण है। और एक मन है, जो अधिकतर समय शरीर के बाहर भटकता रहता है। यहां तक कि जब हम सोते हैं और हमारी इन्द्रियों का कारोबार बंद हो जाता है, तब भी मन सपने बनाता रहता है। हालांकि, हर रात, स्वप्नहीन नींद का समय भी होता है जिसमें कोई मानसिक गतिविधि या जागरुकता नहीं होती है और हम सिर्फ जीवित होते हैं। इस दौरान चेतना हमारे शरीर और मन की मरम्मत करती है। नींद पूरी होने के बाद, चेतना फिर से जाग्रत अवस्था में लौट आती है, पानी के बर्फ और भाप में बदलने की तरह।
चेतना की अलग-अलग व्याख्याएँ हैं।
वैज्ञानिक कहते हैं कि मन केवल एक जैविक उत्पाद है। लेकिन चेतना के बारे में उनमें सहमति नहीं है कि यह गर्भधारण के समय कैसे आती है और मृत्यु के समय कैसे चली जाती है। पूर्वी धर्मों में, विशेष रूप से हिंदू धर्म और बौद्ध धर्म में, पुनर्जन्म की अवधारणा है। चेतना अमर है – नए-नए शरीर धारण करती रहती है। हिंदू धर्म में, चेतना स्वयं भगवान का एक हिस्सा है। बौद्ध धर्म में, चेतना शुद्ध मन का एक पहलू है, जैसे प्रिज्म में विभिन्न रंग दिखते हैं। आत्मा का विचार, ईश्वर के एक अंश रूप में, ईसाई धर्म में भी माना जाता है। इस्लाम में, माटी के पुतले में “सांस” अल्लाह की फूंकी हुई है।
इसलिए, विभिन्न परंपराओं में यह माना जाता है कि एक अमर चेतना है जो मानव शरीर में जीवन भर मौजूद रहती है
अब बात आती है कि क्या इसे अनुभव किया जा सकता है? संत-कवि कबीर, जो 15वीं शताब्दी में आधुनिक उत्तर-पूर्वी उत्तर प्रदेश में रहते थे, “हाँ” कहते हैं। शायद नाथ सम्प्रदाय की हठयोग परंपरा से प्रेरित होकर, जो उस क्षेत्र में सक्रिय थी जहाँ वे रहते थे, कबीर ने कहा कि ब्रह्मांडीय चेतना हमारे भीतर अंतर्निहित है, और उसे महसूस किया जा सकता है। ईश्वर प्रत्येक शरीर में विद्यमान है।
कस्तूरी कुंडलि बसै, म्रिग ढूंढै बन मांहिं।
अैसै घटि घटि रांम है, दुनियां देखै नांहि॥
हम अपने भीतर मौजूद ब्रह्मांडीय चेतना तक कैसे पहुंचें? इस तकनीक का सबसे सामान्य नाम “ध्यान” है। सीधे बैठें, अपनी आंखें बंद करें, अपनी सांस को महसूस करते रहकर अपने मन को स्थिर करें। इसका अभ्यास करके आप ब्रह्मांडीय चेतना से जुड़ सकते हैं। सीधे शब्दों में कहें, तो आप बिना सोए ही गहरी नींद की स्थिति में आ सकते हैं। इन क्षणों के दौरान, आप परमेश्वर के साथ “एक” होते हैं।
इस बात को उपनिषदों और बुद्ध के समय से जाना जाता रहा है, और फिर भी हम में से बहुत कम लोग इसका अभ्यास करते हैं। क्या कोई और आसान तरीका है? अच्छी खबर है कि हाँ जी है – अपने वर्तमान क्षण के प्रति जागरुक रहकर आप ब्रह्मांडीय चेतना का अनुभव कर सकते हैं।
इस विचार को मानते हुए कि “साँस” भगवान की है, अपनी साँस के आने-जाने के प्रति संजीदा रहें।
बिना किसी जोड़-तोड़ के बस हवा को अपने शरीर में जाते हुए और बाहर आते हुए महसूस करें। कैसे भी ऐसा, एक मिनट में 15 से 20 बार होता रहता है। यह आपके जीवन का चिह्न है, या कहें, आपके शरीर में अमर चेतना की उपस्थिति है। फिर भी सांस पर मन ठहराना आपको यह बहुत कठिन लगेगा। कुछ सांसों के बाद, आपका दिमाग अतीत या भविष्य में किसी चीज पर आपकी जागरुकता को ठेल देगा। क्या आप इस अपहरण को रोक सकते हैं?
आत्मबोध करने के लिए आपको इस दिमागी जबरदस्ती को रोकना ही होगा। वर्तमान क्षण में जीने का अभ्यास करें। जब आप चल रहे हों तो अपने हर कदम पर ध्यान दें। भोजन करते समय हर निवाले को चबाकर खाने का आनंद लें। पीते समय अपने गले से नीचे बहते पानी को महसूस करें। जितना हो सके अपने मन के शरीर में मौजूद रखने के लिए अभ्यास करें। जो भी है, बस यही एक पल है। जितनी देर तक वर्तमान में रहेंगे उतना ही आप ईमानदारी से, शालीनता से, इरादे के साथ जी सकेंगे। और जीवन की सभी प्रतिबद्धताओं को पूरा कर सकेंगे, जिम्मेदारियां निभा सकेंगे।