कविता जटिल विचारों को व्यक्त करने की विधा है। कवि रूपकों का उपयोग करके, चीजों की तुलना करते हुए, अनोखी उपमाएं देकर, वैचारिक प्रभाव उत्पन्न कर देते हैं। Examples are galore – laughter is the best medicine; he is a black sheep in the family, heart of stone, tears of crocodile, smelling success, buried in a sea of paperwork, weight on the shoulder, and time is money.
महान विचारक सरल शब्दों के साथ गहन तथ्यों को व्यक्त करके जादू पैदा कर देते हैं।
जैसे शेक्सपियर जीवन को ‘चलती हुई छाया’ कहते हैं, अल्बर्ट आइंस्टीन धर्मों, कलाओं और विज्ञानों को एक ही पेड़ की शाखाएं बताते हैं, खलील जिब्रान शब्दों की तुलना उन निवालों से करते हैं जो दिमागी दावत के दौरान छिटक कर नीचे गिर जाते हैं। ग्रौचो मार्क्स एक अस्पताल के बिस्तर को चालू मीटर के साथ खड़ी टैक्सी के रूप में देखते हैं, विन्सेंट वैन गॉग ने विवेक को एक आदमी के कम्पास के रूप में वर्णित किया है, आदि, इत्यादि।
But Kabir surpasses all by using five, twenty-five and three in his verse to describe the situation of a human life. पांच, पच्चीस और तीन आपके ध्यान के वे मुख़बिरे हैं जो आपकी चेतना को दुनिया के शोर-शराबे में फैला रहे हैं। Awake out of this situation before you are sapped of your remaining energy and become incapable of even rising from this slumber.
Following Samkhya Darshan principle to an extent, Kabir describe a human being as made of five physical elements – earth, water, air, fire, and space) and 25 mental natures – five different ways of each of the five senses, touch, sight, hearing, taste, and smell, and three qualities of nature – Sattva, Rajas, and Tamas. इस गूढ़ पद्य में ये पच्चीस, पाँच और तीन हैं, जो आत्मा की चेतना को ढक कर अपना नाटक चला रहे हैं।
अब कबीर के आह्वान में एक आपदा की अत्यावश्यकता का भाव है
– अब जब आपको यह अंतर्दृष्टि मिल गई है, तो फिर और देरी नहीं होनी चाहिए। कबीर फटकार लगा रहे हैं कि, आप जवानी गुजर जाने के बाद ज्यादा कुछ करने के काबिल नहीं रह पायेंगे। American social activist Benjamin E. Mays said, “The tragedy of life is not found in failure but complacency. Not in you doing too much but doing too little. Not in you living above your means, but below your capacity. असफलता नहीं बल्कि छोटे लक्ष्य लेकर मामूली तरह से जीना, यही जीवन की सबसे बड़ी त्रासदी है।”
आदि शंकराचार्य ने मानव जन्म को दुर्लभ घटना घोषित करते हुए विवेकचूड़ामणि (श्लोक 2) की शुरुआत की है – जन्तूनां नरजन्म दुर्लभमतः, क्योंकि यह कल्पना और बोध की वह सौगात साथ लाती है जो सृष्टि में किसी अन्य जीवन रूप के लिए उपलब्ध नहीं है – शतजन्मकोटिसुकृतैः पुण्यैर्विना लभ्यते। Goswami Tulsidas, towards end of Ramcharitmanas (7.121.12), used a striking metaphor for wasting the perceptive faculty in seeking sensory pleasures with the foolishness of throwing away a parasmani to grab a piece of shining glass – काँच किरिच बदलें ते लेही। कर ते डारि परस मनि देहीं।
The secrete lies in allowing life to happen rather than fearing it.
Right from our birth to most of what happens to us is not in our control. Even the richest and powerful people must die when their time is up. ‘अपना रास्ता खुद बनाने’ का यह पूरा विचार वास्तव में मूर्खतापूर्ण है। रास्ता पहले से ही निर्धारित हुआ हुआ है, जैसे हर एक बीज के लिए पहले से ही एक पेड़ बनने के लिए तैयार होता है। रास्ता ‘बनाने’ की नहीं ‘ढूंढने’ की जरूरत है। English writer Virginia Wolf said is best, “You cannot find peace by avoiding life.” कबीर के आत्मनिरीक्षण के आह्वान को सुनें और संज्ञानात्मक शोर को तनिक शांत करें – काहे प्राणी भटक रहा है जीवन है अनमोल।