श्रीमद् भगवद् गीता में प्रकृति की तीन ऊर्जाओं के बारे में बताया गया है – सत्व, रजस, तमस – the three modes of change in material – order, motion, and inertia – working upon all around existence. The human beings are always under the control of these three energies. यहाँ तक कि श्री कृष्ण, मनुष्य की तुलना इन तीन ऊर्जाओं द्वारा संचालित मशीन के साथ करते हैं।
This leads us to the question of the free will of a human being. Does been driven by these three energies mean that humans have no free will? No. Free will is the supreme Creator’s unique benediction upon human beings that none of the other species enjoy. गीता का समापन करते समय, भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं – मैंने तुम्हें अपने तक पहुंचने के लिए तीन रास्ते बताए हैं। अब जो तुम्हें सही लगे उस पर चलो। Any other religion does not give such a freedom in the world.
Free will is the power to wish, to choose. जब प्रकृति की तीन शक्तियां आप पर कार्यवाही कर रही हों, तो उनके प्रति सचेत रहें और उनके द्वारा बह जाने के बजाय, तैरने की तरह निर्णायक रूप से कार्य करें। How can one do this?
The Gita gives us a practical method. It tells us to first establish control over the five senses, which are compared to horses for their power. इन्द्रियों पर नियंत्रण स्थापित करने के बाद, उन्हें अंदर की तरफ ऐसे खींचें जैसे कछुआ अपने अंगों को भीतर कर लेता है। अब इन इंद्रियों को अपने भीतर की दुनिया पर निर्देशित करें और अपने भीतर रह रहे सभी राक्षसों और देवताओं को देखें और समझें, काबू में करें। In this state of steady consciousness, like a flame that is not flickering, you will know God’s will.
इस मानसिक अवस्था में, जिसे स्थितप्रज्ञा कहा गया है, मनुष्य ईश्वर के हाथ का औजार बन जाता है। Your will becomes God’s will. To be in this state is the purpose of human life. It is not given; it has to be sought and achieved with effort and technique.
So, accessing the Prajna boils down to the practicality of establishing control over the five senses. यही कारण है कि हमें स्वेच्छा से व्रत करते रहना चाहिए, भोजन छोड़ने का, मौन रहने का, और टीवी और सोशल मीडिया जैसे निरंतर विकर्षणों से बचना चाहिए। Beyond that, become skillful at listening only to what is good to hear, seeing only what is good to see, and talking only when it serves a good purpose.
फिर मन, जो हमारी छठी इंद्री है, पहले के जीवन में लग गए दोषों से साफ हो जाता है। Using the fire of discrimination between what is good over what is dear, burn all the bad seeds in your mind so that they can no more sprout even if there are favourable conditions.
After this state is achieved, your soul tells you the purpose of your life, your role, your lines, in the drama of this world. Perform the scene giving your best, take a bow and walk down the stage graciously into oblivion.
शेख़ मुहम्मद इब्राहिम ‘ज़ौक़‘ कह गये हैं – लायी हयात, आये, क़ज़ा ले चली, चले; अपनी ख़ुशी न आये न अपनी ख़ुशी चले।