दानी (दा यानी दादी, नी यानी नानी)
आज का परिवेश भयावह है। सबलोग दहशत में जी रहे हैं।। लगता है कि अगली सांस स्वस्थ आयेगी कि बीमारी वाली होगी। यही सोचते हुए सत्तर-अस्सी साल पहले के पुराने वर्षों में पहुँच गई —
कितनी शुद्ध और स्वच्छ हवा थी,सारा वातावरण प्राकृतिक था, चारों तरफ पेड़ ????पौधे। सुंदर फूलों और फलों के बगीचे थे। चारों तरफ खुशनुमा माहौल था, सुंदर पक्षी चहचहाते रहते थे, झरने, नदियाँ तालाब सब शुद्ध जल के बहते थे। क्या नयनाभिराम दृश्य था। बड़े-बड़े घर ? थे और जगह की कोई कमी नहीं थी। संगीत की स्वर लहरी सुनाई देती थी।
धीरे-धीरे समय में परिवर्तन आया; चारों तरफ तेजी से विकास होने लगा, फैक्ट्रीज-मिलें लगने लगीं। जो काम हाथ से करते थे वे मशीनों से होने लगे। मिल तथा मशीनें लगाने के लिए जमीन की जरूरत पड़ी तो जंगल काटे जाने लगे फिर बाग-बगीचे भी समाप्त होने लगे, सब तरफ मशीनीकरण हो गया।
लोग रोजीरोटी के लिए शहरों की तरफ आने लगे। फिर उनके रहने के लिए मकान बनाये गये। शहरों के आसपास की जमीन को भी मकानों और उद्योगों के लिए ले लिया गया। धीरे-धीरे चारों तरफ मशीनीकरण और शहरीकरण हो गया। रोजगार के लिए लोग शहरों की ओर आने लगे। अब रहने के लिए स्थान कम पड़ने लगे तो बहुमंजिली इमारतों का निर्माण शुरू हुआ, गाँवों का शहरों में विलय होने लगा।
इस प्रकार हवा की शुद्धता में कमी होने लगी। धीरे-धीरे सारा पर्यावरण अशुद्ध हो गया। पक्षी कम हो गये; पशु कम हो गये। जहां चारों तरफ पक्षियों की मधुर आवाज़ से वातावरण गुंजायमान रहता था वहां मशीनों के कलपुर्जों की घरघराहट के कान फोडू शोर ने सारा परिवेश दूषित कर दिया। सड़कों पर वाहन बढ़ गए, डीजल-पेट्रोल का धुंआ बढ़ा तो प्रदूषण भी बढ़ गया। पहले वाला वातावरण सपना हो गया।
तरह-तरह की बीमारी होने लगीं।
मलेरिया आया फिर इन्फ्लुएंजा आया। उसके बाद डेंगू आया, चिकनगुनिया, स्वाइन फ्लू जैसी बीमारियां हुईं, जिनकी दवाइयाँ और इलाज नहीं था। इन पर शोध हुआ, दवाई-इलाज निकला। एक का निदान होता तो दूसरी बीमारी आ जाती है। सब एक से बढ़कर एक विकराल हैं। अभी इन बिमारियों से निजात भी नहीं मिला था कि एक नई बिमारी कोविड-१९ ने जन्म ले लिया। यह कोरोना वायरस से फैल रहा है और सुरसा की तरह इसका मुँह खुलता ही जा रहा है।
मलेरिया में जाड़ा लग कर बुखार आता था, यह मच्छर के काटने से फैलता था। फिर इन्फ्लुएंजा में बुखार के साथ शरीर में दर्द भी होता था। डेंगू में यही बुखार कुछ नये लक्षण के साथ आया। फिर चिकनगुनिया और स्वाइन फ्लू नये-नये लक्षणों के साथ आए। ये बिमारियाँ जानलेवा हो गईं।
अब कोरोना जो छूने और साँस लेने से फैल रहा है। इसका कोई इलाज नहीं निकला है। पूरी दुनिया में हजारों-लाखों लोग मर रहे हैं। सारे संसार में इस पर शोध हो रहा है। ना कोई दवा है, न इंजेक्शन है। अपने-अपने तरीके से सुरक्षा के उपाय बताए जा रहे हैं।
एक-दूसरे से दूरी बनाने की सलाह दी जा रही है। पूरा विश्व घर में बंद हो गया है, रात-दिन चलने वाली दुनिया थम गई है। सब तरफ मन में अंधकार और निराशा है। कोई भी नहीं जानता है कि कल क्या होने को है। यह विज्ञान और प्रदूषण का परिणाम है कि संसार मृत्यु की कगार पर खड़ा है। हम लोगों ने प्रकृति से छेड़छाड़ की तो उसने भी पलट वार कर दिया है। अब सावधान रहने और अपने साथ दूसरों को सुरक्षित रखने के लिए प्रयास करने की आवश्यकता है।
घर पर रुक कर सुरक्षित रहें।
प्रकृति के शुद्ध रूप का आस्वादन करें और उसकी निर्मलता को बनाये रखने की दिशा में सोचें।