सात आध्यात्मिक सिद्धांतों में से दूसरा विनम्रता है। यह जीवन के बारे में आत्म-केंद्रित नजरिये के एकदम विपरीत, एक अहंकार-मुक्त परिप्रेक्ष्य है। We turn our back on pride and selfishness and begin to practice modesty and compassion. Humility is an ongoing process of surrendering the distorted need for self-importance.
The principle of humility implies having a clear and concise understanding of what we are, followed by a sincere desire to become what we can be so that it becomes our default position in everything we do. हम विनम्रतापूर्वक उच्च शक्तियों से अपनी कमियों को दूर करने के लिए कहते हैं। और यह भाव एक महान शक्ति के रूप में हमारा भाग्य बन कर उभरता है।
विनम्रता का मतलब अन्य लोगों की तुलना में खुद को कमतर समझना बिल्कुल नहीं है। न ही इसका मतलब अपने गुणों और नेहमतों को कम करके आँकना है।
Humility means freedom from thinking about yourself at all. Shri Krishna explains this when He says in the Bhagavad Gita, ‘It is better to do your own work, even if it is low, rather than imitating the work of others’.
The best way to learn humility is to start learning something new like music, a new language, or fine art. जैसे-जैसे हम दूसरों से सीखने में अपनी हिचकिचाहट को छोड़ते जाते हैं, हमें पता चलता है कि हर किसी के पास हमें सिखाने के लिए कुछ न कुछ है। Humility is what makes us teachable. Engage a poor and younger artist to teach you his or her art.
विनम्रता सीखने का दूसरा तरीका सामुदायिक सेवा करना है। At some places of worship, the shoe service, the kitchen service are done by the most powerful and affluent members of the community. The beggars are served in proper plates and disposable glasses and are fed until they are full.
The third way is to avoid loud and aggressive people. अपने अहं के नशे में धुत ऐसे लोग आत्मा के प्रति उदासीन होते हैं। If you compare yourself with others, you may become vain or bitter; for always there will be greater and lesser persons than yourself. They affect you consciously and reinforce your haughty and arrogant side.
शायर रुख़्सार नाज़िमाबादी ने कहा है, “आपको आजिज़ी जताएगी वो तकब्बुर में हार जाएँगे।“
अर्नेस्ट हेमिंग्वे ने लिखा है, ”अपने साथी से श्रेष्ठ होने में कोई बड़ी बात नहीं है; सच्चा बड़प्पन आपके आप से श्रेष्ठ बनने में है।” It is not for you to judge another man’s life. You must judge, choose or spurn purely for yourself and yourself alone.
लेकिन एक कुशल अनुशासन से भी ज्यादा, अपने आप के साथ कोमल रहना जरूरी है। हम सब ब्रह्मांड का एक हिस्सा हैं, और पेड़ों और सितारों से अलग नहीं हैं।
हर इन्सान को एक महान योजना के तहत बनाया और रखा गया है। और इसका आपको पता हो या नहीं, ब्रह्मांड जैसा है वैसा ही आपके सामने आता जाएगा। You can continue to walk on the wrong side of the road, facing oncoming traffic, accusing everyone for coming and hitting you; or, walk on the right side and move with the flow.
एक अनाम अखाड़े की प्रार्थना है : “Lord, you know better than myself that I am growing older and will soon be old. मुझे बहुत बातूनी होने से रोकें, और विशेष रूप से यह सोचने की दुर्भाग्यपूर्ण आदत से बचाऐं कि मुझे हर विषय और हर अवसर पर कुछ कहना चाहिए … Keep me from the recital of endless details; give me wings to get to the point.” यह विनम्रता है।