The fifth spiritual principle is ‘Forgiveness’. क्षमा करने की क्षमता वाले लोग श्रेष्ठ माने जाते थे। छमा बड़न को चाहिये, छोटन को उतपात। लेकिन अब ऐसा नहीं है। To forgive is considered weird these days. “How can I forgive them, after what they did to me?” has become the default response of people.
क्षमा करना अनुमोदन करने या किसी के किये को स्वीकार करने के बारे में नहीं है बल्कि जो हुआ – उसे जाने देने के बारे में है। When we get caught up in vengeance, we attach ourselves to the source of our misery. We allow the tormentor to victimize us again. क्रोध, आक्रोश, बदला, और प्रतिशोध में अपनी बहुमूल्य जीवन ऊर्जा को निष्क्रिय करके, असल में हम अपने आप का नुकसान कर रहे होते हैं।
माफी को जिम्मेदारी के और बिना द्वेष के साथ काम करने की तरह सोचें। Forgiveness lets us reclaim our creative energy, channel it to healthier purposes, get on with life, and continue with our own growth. “To err is human, to forgive divine,” sums up and perpetuates this attitude. शायर इब्न-ए-मुफ़्ती ने कहा है – दिल में सज्दे किया करो ‘मुफ़्ती’, इस में पर्वरदिगार रहता है।
क्षमा कर देना अपने आप को दर्दनाक अतीत से मुक्त करने का एक शक्तिशाली तरीका है। Seeking vengeance means reliving the pain over and over again, deepening the wound each time the incident is remembered, and scarring our souls just like rivers carve canyons.
स्वयं को क्षमा करना सबसे बड़ी व पहली क्षमा है।
Without forgiveness, the pain and resentment of old indignities will continue to own us, crippling our capacity to love and be loved, and poisoning all our relationships with others, and ourselves. मुक्त होने का एकमात्र तरीका क्षमा करने के माध्यम से है। माफी से माफ करने वाला भी हलका होता है।
When we forgive others — for wrongs real or imagined — that doesn’t mean we approve of what they did (or what we think they did). What it means is that we have chosen to no longer hold ourselves hostage to the past. हमने समझ लिया कि क्या हुआ, उसे स्वीकार कर लिया, उसके बारे में अपनी भावनाओं का अनुभव किया और अब उसे जाने दे रहे हैं; 1972 की फिल्म अमर प्रेम के गीत की तरह – हम क्यूँ, शिकवा करें झूठा, क्या हुआ जो दिल टूटा; शीशे का खिलौना था, कुछ ना कुछ तो होना था, हुआ।
As long as we are unwilling to forgive, we condemn ourselves to the condition of a prisoner chained to a stake in the desert. On the horizon, is a lush, green oasis that promises cool shade, fresh water, and the joyful companionship of fellow travelers. The shackle gets tighter every time we feel jealous of people who are able to cross the desert.
भले ही हम यहां कैसे पहुंचे हों, पर इस स्थिति में बने रहना अब हमारे हाथ में है। हमारे पास किसी भी समय हमने जिस कैद को चुना है, उससे आजाद होने की चाबी है। और इस चाबी का नाम है क्षमा। हम ही हैं जो इस चाबी को रखते हैं।
हमारे अलावा कोई और हमें मुक्त नहीं कर सकता।
It is much easier to forgive when the hurt happens. But that doesn’t occur very often and certainly not as often as we would like. And it never happens when the other doesn’t even know he has wronged us. यदि हम तब तक दूसरों को माफ करने से इनकार करते हैं जब तक कि वे हमारे खुद हमारे पास आकर अपनी गलती नहीं मानते, तो दरअसल हम उन्हें यह निर्णय लेने की शक्ति दे रहे होते हैं कि वे हमें कब मुक्त करेंगे।
Forgiveness is an essential step in healing yourself from the bondage of old incidents and pain that cripples us from going in search of a peaceful future for ourselves and others. क्षमा कर तनाव मुक्त होएं।