We have now reached the seventh spiritual principle – that of Expectation. There are many more principles formulated by various societies in different times, based on what was needed in those settings and situations. मैंने अपने समय और लोगों का अवलोकन करके जो सीखा और अपने शिक्षकों द्वारा जो समझाया गया उस पर आधारित सात सिद्धांतों को आपके साथ साझा किया है।
सकारात्मक मनोविज्ञान के विशेषज्ञ हमें बताते हैं कि जीवन में सफलता या विफलता जैसा कुछ है ही नहीं।
हम अपने खुद के बनाए प्रोग्राम के चलते जो मिलता है पाते हैं। Success and failure are verbal propositions—evaluations that the human mind attaches to experience. It is actually inappropriate to label experiences as “success” and “failure”, leave alone “good” and “bad.” असलियत में, आप जिन्दगी नहीं जी रहे, जिन्दगी आप को जी रही है।
If you decide you want “A,” and you end up getting “B,” why emotionalize the experience by saying, “I failed?” मिर्ज़ा ग़ालिब ने कहा है – बहुत निकले मेरे अरमान, लेकिन फिर भी कम निकले। Why not just say, “I wanted ‘A’ and I got ‘B.’” And if you still want to get “A,” then you will have to find a better strategy. शायर अली सरदार जाफ़री की तरह – शिकस्त-ए-शौक़ को तकमील-ए-आरज़ू कहिए।
We are constantly “programming” outcomes in our lives. The clarity of your intention and the strength of your expectations come together to focus your attention and your energy on results. जैसा कि कहा जाता है, “जिधर ध्यान जाता है, जिन्दगी उधर ही मुड़ जाती है।”
Energy flows where attention goes.
You have the right to succeed in life. When you doubt yourself, or when you lose your sense of purpose, you tend to telegraph that to others. And when you have your eye clearly on the ball, you tend to declare that to others as well. याद रखें, लोग विजेताओं से ताल्लुक रखना चाहते हैं और हारने वालों से कतराते हैं। लेकिन उम्मीद एक दुधारी तलवार है – खोने-पाने का खेल है। उम्मीद में लोग निराशा और अवसाद का जोखिम भी उठाते हैं।
It is very important to distinguish between the subjective world in your head and the outer, objective world. आप किसी व्यक्ति से प्यार कर सकते हैं, पर वह आपके दिल का मसला है। दूसरे व्यक्ति के दिल में क्या है, आप वास्तव में नहीं जानते। उस पर आपका कोई नियन्त्रण नहीं है। एक तरफा प्यार वस्तुतः एक व्यापक बीमारी है। It is imprudent to believe that your thoughts can directly cause things to happen and people to change.
यदि मुझे विश्वास है कि मेरी अपेक्षाएँ मेरे पास वही ले आऐंगी जो मैं चाहता हूँ, तो मैं दरअसल जादुई सोच में लिप्त हूँ और वास्तव में निराशा को न्यौता भेज रहा हूँ। If I am thinking about having coffee, I can’t make a cup of coffee just by thinking it into existence; I have to take the necessary steps to make it happen – order it, make it myself, or request someone to make it for me.
अनकही उम्मीदों का पूरा नहीं होना तो जैसे लाजिमी है। इसलिए अपनी चाहतों को व्यक्त करें।
Talking openly about what you expect from other people might improve your chances of fulfillment. At the same time, it is unrealistic to think that merely communicating your expectations clearly is going to get people to behave the way you want them to.
साहिर लुधियानवी ने १९६१ की फ़िल्म ‘हम दोनों’ के लिए अपने गीत में कितनी समझदारी से कहा है : जो मिल गया उसी को मुकद्दर समझ लिया; जो खो गया मैं उसको भुलाता चला गया। उम्मीदें करें, पर मकड़ी की तरह अपने बुने जाल में न फसें।