पुरानी शराब का नशा सिर चढ़कर बोलता है

आगामी 25 फरवरी को मारियो पूजो के बेस्टसेलर उपन्यास पर फ्रांसिस फोर्ड कोपोला की कल्ट क्लासिक मानी जाने वाली फ़िल्म ‘द गॉडफादर’ अमेरिका में फिर से सीमित थिएटर्स में रिलीज की जा रही है। इस उपन्यास की अब तक 3 करोड़ प्रतियां बिक चुकी हैं, पाइरेटेड का तो हिसाब ही नहीं है, अगर उन्हें गिनने का कोई तरीका मिल जाए तो संभव है कि मानव इतिहास में सर्वाधिक बिकने वाला उपन्यास मान लिया जाए!

मारियो पूजो

मारियो पूजो ने अपने उपन्यास ‘द गॉडफादर’ की शुरुआत बाल्ज़ाक के इस कथन से की है कि हरेक महान खुशकिस्मती के पीछे एक अपराध होता है। बाल्ज़ाक का पूरा वक्तव्य यह है कि हर महान सफलता के पीछे पकड़ में नहीं आया हुआ अपराध है जिसे कायदे से किया गया था।

किताब और फ़िल्म की ऐसी सफलता एक ख्वाब सी है जिसे कोई लेखक या निर्देशक देख सकता है। उपन्यास 1969 में छपा, फ़िल्म 1972 में रिलीज हुई। फ़िल्म को कई सूचियों में दुनिया की सफलतम फिल्मों में भी गिना गया और महानतम फिल्मों में भी। फ़िल्म की पटकथा मारियो पूजो और कोपोला ने मिलकर लिखी थी।

किताब को मशहूर अमेरिकन प्रकाशक G. P. Putnam’s Sons ने छापा था। बता दें कि अब इस प्रकाशन को पेंगुइन ने खरीद लिया है। यानी ‘द गॉडफादर’ अब ‘पेंगुइन रैंडम हाउस’ की किताब है। मेरी जानकारी में इस उपन्यास का हिंदी में कोई आधिकारिक अनुवाद नहीं आया है, पेंगुइन को कोशिश करनी चाहिए।

द्वितीय विश्व युद्ध में अमेरिकी सेना में पीआरओ रह चुके मारियो पूजो का पहला उपन्यास 1955 में छपा था – द डार्क अरेना। इसके दस साल बाद दूसरा ‘द फोर्च्युनेट पिलग्रिम’।

उन दिनों के बारे में मशहूर किस्सा है कि न्यूयॉर्क के अपने घर के बेसमेंट वाले कमरे में 1965 मॉडल के ओलम्पिया टाइपराइटर पर कहानियों के प्लॉट्स लिखा करते थे, बच्चों का शोर उठता तो यह कहकर चुप करवाते कि शांत रहो, बेस्टसेलर लिख रहा हूँ। एक इंटरव्यू में यह भी कहा कि अगर गॉडफादर भी सफल नही होता तो मुझे लगता है कि शायद इसके बाद कुछ भी नहीं लिखता।

8 प्रकाशकों से अस्वीकार झेलने के बाद इसे लेकर वे G. P. Putnam’s Sons के पास पहुंचे थे। संपादकों ने एक घण्टे सुना और कहा – ‘Go ahead!’ और उन्हें 5 हज़ार डॉलर का एडवांस दिया गया। जबकि मारियो अपने उपन्यास जो कलात्मक मानकों पर अपने पिछले उपन्यासों से कमतर आंकते रहे थे। इस उपन्यास की अब तक 3 करोड़ प्रतियां बिक चुकी हैं, पाइरेटेड का तो हिसाब ही नहीं है, अगर उन्हें गिनने का कोई तरीका मिल जाए तो संभव है कि मानव इतिहास में सर्वाधिक बिकने वाला उपन्यास मान लिया जाए!

और 1945 से 55 के बीच न्यूयॉर्क शहर के एक माफिया के परिवार की दिलचस्प दास्तान सुनाती इस किताब के प्रसिद्ध होने से पहले ही पैरामाउंट पिक्चर्स ने इस पर 50 हज़ार डॉलर में फ़िल्म बनाने के अधिकार ले लिए थे, जिसमें से 10 हज़ार डॉलर एडवांस मिलने थे, मारियो ने 15 हज़ार मांगे, साढ़े 12 हज़ार पर बात फाइनल हुई। 52 साल के मारियो पूजो के उपन्यास के लिए केवल 32 साल के कोपोला को निर्देशन के लिए हायर किया गया। दोनों ने मिलकर पटकथा लिखी और इनाम पाए जिनमें बेस्ट पिक्चर और बेस्ट एडाप्टेड स्क्रीनप्ले के अकादमी अवार्ड्स यानी ऑस्कर शामिल हैं। यह असाधारण घटना ही कही जाएगी कि किसी लेखक के पहले ही स्क्रीनप्ले को ऑस्कर अवार्ड मिल जाए। कहा जाता है कि मारियो के बेटे ने एक इंटरव्यू में कहा कि पिता इस फ़िल्म के बनने के बाद पटकथा लेखन पर किताब खरीद कर लाए, जिसके पहले पन्ने पर लिखा था – ‘अब तक लिखी सर्वश्रेष्ठ पटकथा है – द गॉडफादर ‘ यह वाक्य पढ़कर मारियो ने किताब फेंक दी।

मारियो ने इस उपन्यास से इतनी बड़ी लकीर खिंची कि वे ख़ुद भी शायद फिर उसे छू नहीं पाए। यही बात कमोबेश स्क्रीनप्ले के हवाले से ‘द गॉडफादर’ के पहले पार्ट के लिए कही जा सकती है। यह भी दुर्लभ घटना है कि उपन्यास और फिल्म के सफलतम पचास साल के अवसर पर मारियो जीवित हैं। लेखक के रूप में ऐसा सौभाग्य भी कम लोगों को नसीब होता है।

कहा और माना यह भी जाता है कि मारियो पूजो और कोपोला के माफिया डॉन कारलियोन के रूप में दरअसल अमेरिका ही है। एक पूंजीवादी देश की बदमाशियां, मक्कारियाँ ही इस कहानी में मेटाफर के रूप में हैं। पूंजीवाद के अमेरिकी संस्करण को दुनिया एक अनिवार्य बुराई की तरह तो देखती ही रही है, इसके दिनोंदिन भयावह अवश्यम्भावी होते जाने पर चिंतित लोग भी कम नहीं है। इस रोशनी में फ़िल्म का फिर से रिलीज होने का गहरा, सुखद अर्थ बनता है।

वहीं, परिवार और सत्ता का भाव संसार में सनातन भाव में है, यही इस कथानक को ‘ऑलमोस्ट’ सर्वकालिक प्रासंगिक बनाता है। ‘फेमिली फर्स्ट’ को जिस तरह यह फिल्म स्थापित करती है, वह भी अन्यत्र दुर्लभ है!

उपन्यास से रूपांतरित यह फ़िल्म जैसे-जैसे पुरानी होती है, सिनेमा के इतिहास की ‘कल्ट फ़िल्म’ बन जाती है, रेफरेंस रचती है, जो बाद में कला माध्यमों में काम आते हैं। भारत में रामगोपाल वर्मा जब ‘सरकार’ बनाते हैं तो उनकी घोषित प्रेरणा ‘द गॉडफादर’ ही है, जीवन के अंतिम दिनों में खुद मारियो पूजो कहने लगे कि फ़िल्म उपन्यास से ज़्यादा अच्छी है। ऐसा कम होता है कि लेखक यह कहे।

मार्क सील ने एक किताब – ‘लीव द गन, टेक द कैनोली’ लिखी है जो इस उपन्यास के लिखे जाने और फ़िल्म के बनने को लेकर दिलचस्प नैरेटिव है।

‘द गॉडफादर’ फ़िल्म दुनिया को मारियो पूजो और फ्रांसिस फोर्ड कोपोला का दिया ऐसा

फ्रांसिस फोर्ड कोपोला

ऑफर था जिसे दुनिया को स्वीकार करना ही था। यह भी इस फ़िल्म का मशहूर उद्धरण है जो बाल्ज़ाक से प्रेरित है। फ़िल्म से मेरी पसंद का संवाद है – ‘अपने दुश्मनों से कभी घृणा मत करो, इससे तुम्हारे निर्णय प्रभावित होंगे।’ अर्थ यही है कि उस स्थिति में निर्णय विवेकसम्मत नहीं होंगे।

पश्चिम में कहा जाता है कि अब हमारी दुनिया में ‘गॉडफादर’ का वही स्थान है जो परीकथाओं और बाइबिल की कहानियों का है। मुझे इसकी सबसे यादगार महीन बुनावट वाली उपकथा प्रवासन लगती है, जो पिछली सदी का सबसे कड़वा यथार्थ है, प्रवासन के संघर्ष, दुख, विरोधाभासों की सूक्ष्म ध्वनियां इस कथानक के गहनपाठ में गूंजती हुई सुनाई देंगी।

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