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Da Ni की कलम से - आज के संदर्भ में – सीता और द्रोपदी

by Da Ni
May 14, 2020September 2, 2020167

टेलीविजन पर आजकल रामायण और महाभारत का प्रसारण हो रहा है। प्रसारण देखते-देखते दिमाग में विचार आने लगा कि
नारी सदैव असुरक्षित और असहाय क्यों है? सदैव समाज और पुरुषों के द्वारा छली जाती है। क्यों? क्योंकि वो नारी है। सतयुग, त्रेता, द्वापर या कलयुग कोई भी युग हो, कोई भी काल हो, एक स्त्री ही बलि वेदी पर चढ़ती है। बृंदा, अहिल्या और अंजना श्राप की भागीदार बनीं।  इनका क्या दोष था, ये स्त्रियाँ थीं बस।

त्रेता युग में श्री राम चन्द्र अयोध्या के राजा थे। उनका शासन काल रामराज्य कहा जाता था। सीता जी, उनकी पत्नी जो मिथिला की राजकुमारी थीं, उनको क्या सुख मिला? जब राम जी वनवास गए, वे उनके साथ वन में गईं। उनके साथ वन में रहकर सारे कष्ट झेले।

दुर्भाग्यवश, लंका का राजा रावण उनका हरण करके ले गया। राम-रावण युद्ध हुआ, रावण का वध करके सीता जी को छुड़ाया गया। सीता जी को अपनी पवित्रता सिद्ध करने के लिए अग्नि परीक्षा देनी पड़ी। अयोध्या में आने के बाद भी राज्य में उन पर आरोप लगा। जो जनता उनके वन जाने पर दुखी थी वही उन पर आरोप लगा रही थी। यह कैसी विडम्बना थी!

राम ने उनका त्याग कर दिया। वे फिर वन में चली गईं। वहीं पर अपना जीवन बिता दिया।

अंत में धरती में समा गईं। इतने बड़े सम्राज्य की महारानी होते हुए भी उनको क्या सुख मिला। इसलिए कि वे स्त्री थीं; सारी परीक्षा
एक नारी को ही देनी है।


द्वापर युग में कौरव और पांडवों का राज्य हस्तिनापुर में था। द्रोपदी पांडवों की पत्नी थी।  राजा द्रुपद की पुत्री थी। उन्होंने शर्त रखी थी कि जो मछली की आँख बेधेगा उसी से अपनी पुत्री का विवाह करेंगे। अर्जुन ने स्वयंवर में आँख बीध कर द्रोपदी से विवाह कर लिया।
‌विवाह करके माँ के पास आये। उन्होंने बिना देखे कह दिया कि आपस में बाँट लो। माँ की बात रखने के लिए पाँचों भाइयों ने द्रोपदी से विवाह कर लिया। बाद में पाँचों भाइयों ने अपने सुख के लिए अलग-अलग कन्याओं से विवाह किया। पर द्रोपदी को कौन सा सुख मिला। ‌

पाँच पतियों में बंट कर रह गयी। इसमें उसका क्या दोष था। एक पति को जुआँ खेलने की आदत थी। वे राजपाट हार गये तो द्रोपदी को भी दाँव पर लगा दिया और उसे भी हार गए। कौरवों ने बाल खींचते हुए भरी सभा में बुलाया और उसकी साड़ी उतारने लगे। वह सबसे गुहार लगाती रही, उसकी इज्जत बचाने कोई भी नहीं आया। पाँचों पति और सारा पुरुष वर्ग सिर झुकाये देखता रहा। इसमें द्रोपदी का क्या दोष था? दोष यह था कि वह एक स्त्री थी।

आज के परिवेश में भी नारी की वही स्थिति है। आज वह कहीं भी सुरक्षित नहीं है। पुरुष वर्ग सदैव स्त्री पर अत्याचार और अनाचार करता आ रहा है और कर रहा है। आज समय बदल गया है। लड़कियां पढ़-लिख कर बड़े-बड़े पद पर कार्य कर रही हैं। आत्मनिर्भर हैं। स्वतंत्र हैं। पर फिर भी, वे अपने को असुरक्षित महसूस करती हैं। प्राचीन काल से लेकर आज तक नारी दबती आ रही है। समयानुसार परिस्थितियां बदल गई हों पर लगभग स्थिति वैसी ही है। कारण कुछ भी हो, बहाना कोई भी हो, शोषित नारी ही होती है।

राम एक पत्नीव्रता थे लेकिन प्रजा के कहने पर उन्होंने अपनी निर्दोष पत्नी को छोड़ दिया। वे विरोध न कर सके। पाँच पतियों के होते हुए भी द्रोपदी असहाय सभा में रोती रही पर एक हाथ भी उसको बचाने के लिए आगे नहीं बढ़ा। आज भी समाज में ‌नारी अपनी अस्मिता बचाने के लिए लड़ रही है। प्राचीन काल से लेकर आज तक नारी संघर्ष ही कर रही है।

जाने कब नारी असुरक्षा के घेरे से बाहर आयेगी? लगता है शायद कभी नहीं, पर फिर भी आशा है कि वह युग कभी तो आयेगा या आज की नारी लेकर आयेगी, अपनी सक्षमता से।

 

Painting by : Era Tak

Poem written by : Abha Dubey

Kavita Poster Created by : Anil Karmele

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