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एक डर है
भुला दिए जाने का
इस डर को जीत लेना
मोक्ष है !

यह दिखावे का समय है सोशल मीडिया ने इसको और हवा दी है। हर कोई फेमस होना चाहता है, बढ़-चढ़कर खुद को दिखाना चाहता है,वो हमेशा बैचैन है कि किस तरह दूसरों से ज़्यादा प्रसिद्ध हो पाए, ज़्यादा से ज़्यादा लोग उसे जाने। बड़ा दिखने की चाहत में कई बार उनकी हरकतें बचकानी होती जाती हैं।

वो चाहे कितना भी दुखी हो पर हमेशा खुश दिखाना चाहता है, लेकिन खुश दिखने का यह दबाव बेहद खतरनाक होता है; अंदर ही अंदर मानसिक रूप से खोखला कर देता है। हम अपने सच नहीं बताना चाहते इस डर से कि लोग हमें जज करेंगे और बताना भी क्यों है… ज्ञान देने वाले और सहानुभूति जताने वाले हजारों मिल जाएंगे, लेकिन सच्चे दिल से आपका हाथ थामने वाले दो-चार ही मिलेंगे।

हम क्या खाते हैं, क्या पकाया, क्या नए कपड़े खरीदे, कौन सा नया पौधा लगाया, घर में किसका जन्मदिन है, आज उदासी वाली सेल्फी, आज आंखों में काजल लगाया, आज नया लैपटॉप, मोबाइल, टीवी, गाड़ी आदि खरीदी तरह-तरह की पोस्ट आपको सोशल मीडिया पर नजर आ जाएंगी। हम क्यों हर चीज सबको दिखाना चाहते हैं, किस बात का डर है – हमें शायद भुला दिए जाने का, शायद लोगों की भीड़ में खोकर हाशिए पर चले जाने का और यह डर हमें एक पल भी चैन से नहीं जीने देता। बिना दिमाग लगाए हम एक अंधी दौड़ में बेतहाशा दौड़ने लगने हैं। हम धोखे देते हैं और धोखे खाते हैं, पर ईमानदारी का सबक नहीं सीखना चाहते।

हल्का उड़ जाता है और भारी जमा रहता है, इसलिए वजन लाइए अपने स्वभाव में।

ख़ुद को महान और दूसरे को छोटा दिखाने की बीमारी आत्मा के स्तर को गिराती जाती है।

यकीन मानिए, झूठी हंसी कभी खुशी नहीं देती वो एक भ्रम देती है। खुद को एक सच्ची मुस्कराहट दे सको वही आत्मसंतुष्टि है, हम ज़माने से कितना भी झूठ कह लें, पर अपना सच हम सब जानते हैं और उसे स्वीकार करने का साहस असली प्रसन्नता की ओर पहला कदम है। झूठों की भीड़ में घिरे हुए रहकर मिथ्या जीवन जीने से कहीं बेहतर सच्चा एकांत है !

जब कोई कुछ छोड़ता है तो कई बार सामाजिक दबाव से ज़्यादा उस पर मानसिक और अपनी आत्मा का प्रेशर होता। कई बार चीजें इतनी अच्छी नहीं होती जितनी बाहर या दूर से चमकदार नजर आती हैं। बहुत बार हमारी आत्मा हमें रोकती और हम उसकी आवाज़ दबा देते। पर हर किसी के लिए आत्मा की आवाज़ को दबा पाना संभव नहीं होता।

अक्सर हर हंसी के पीछे बहुत दर्द और अंधेरा होता है और दबाव ऐसा होता है कि हर कोई प्रसिद्ध, सुंदर, सफल, खुश, पैसेवाला दिखना चाहता और ये खोखलापन अंदर से खत्म करता जाता। कई बार इस दिखावे में लोग अवसाद का शिकार हो जाते हैं, जो नहीं झेल पाते वो आत्महत्या जैसा आत्मघाती कदम उठा लेते हैं।

भीड़ की याददाश्त ज्यादा नहीं होती और भीड़ कभी अपनी नहीं होती।

जरूरी है खुद को याद रखना, अपने से जुड़े करीबी शुभचिंतकों की खबर लेते रहना और दिखावे को छोड़ जो वक्त बचा है उसमें अपने भीतर की यात्रा करना। जो मिला है, अर्जित किया है वो कभी छूट भी सकता इसलिए उसका इतना मोह भी न हो कि उसके जाने पर हम टूट जाएं। अकेलेपन का इलाज भीड़ में खोना नहीं बल्कि ख़ुद की तलाश होता है। शोर कभी मन के सन्नाटे को नहीं भर सकता, उसके लिए प्रेम का मधुर संगीत ही चाहिए।

हथेली खुली रखो फिर आनंद देखो।
उम्र का गुजरना जैसे उड़ जाना जलते कपूर का बिना कोई निशान छोड़े

और

हजारों खरोचें हैं ज़मीर पर न भुला दे कोई इस गरज से !

 

Image sources: Kummy Meenu Ghildiyal (Kummy), Era Tak

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