दूसरी शताब्दी में नागार्जुन ने बौद्ध दर्शन के मध्यमिका स्कूल की स्थापना – घटना और शून्यता के बीच मध्य मार्ग के रूप में की थी। यद्यपि मनुष्य अपने जीवन में जो कुछ भी अनुभव करता है वह अस्तित्वगत रूप से खाली हो सकता है, इसका मतलब यह नहीं है कि वे अनुभव ही नहीं हैं और अस्तित्वहीन हैं। नागार्जुन ने “सब कुछ मौजूद है” को एक चरम कहा; “कुछ भी मौजूद नहीं है” को दूसरा चरम कहा और धर्म को मध्य में रहने के रूप में समझाया।

प्राचीन यूनानी दार्शनिक प्लेटो ने अपनी पुस्तक फ़िलेबस में दुनिया के केंद्र माने जाने वाले डेल्फ़ी में मंदिर के सामने खुदी हुई कहावत “कुछ भी अधिक नहीं” का उल्लेख किया है। उनके उत्तराधिकारी, अरस्तू ने प्रत्येक गुण को दो विपरीत अवगुणों के रूप में वर्णित किया। कायरता और उतावलेपन के अवगुण दोनों ही साहस गुण की अधिकता और कमी में निहित  है। यह बहुत दिलचस्प विचार है। निम्नलिखित गुणों को देखिये और बूझिये कि कैसे उनकी अधिकता और अनुपस्थिति उन्हें अवगुणों में बदल देती है।

 

अवगुण
सद्गुण अधिकता न्यूनता
भव्यता अश्लीलता क्षुद्रता
उदारता घमंड कंजूसी
धैर्य हठ आक्रामकता
शील संकोच बेशर्मी
आक्रोश ईर्ष्या द्वेष
साक्षी विदूषक मूर्तिवत
उदारता फिजूलखर्ची कंजूसी

 

मध्यम मार्ग की उपयोगिता आये दिन देखी जा सकती है।

यदि हम दूसरों की संवेदनाओं की परवाह किए बिना, पूरी तरह से भोग-विलास के माध्यम से खुशी की तलाश कर रहे हैं या हम खुद के खिलाफ लड़ते हुए और परिस्थितियों के शिकार के रूप में दासता के साथ जी रहे हैं, तो दोनों में से किसी भी तरह से, हम गलत रास्ते पर ही चल रहे हैं और नई समस्याएं हमारे सामने आती ही रहेंगी।

मध्यम मार्ग से जीने के लिए जिंदगी में विश्वास की आवश्यकता होती है। यह तैरना सीखने जैसा है। आपको डूबने के डर पर काबू पाना होगा। या साइकिल चलाना सीखने में, गिरने के डर पर काबू पाते हुए पैडल मारते रहना होगा। मध्यम मार्ग एक भरोसा है कि हम कोशिश करके समस्याओं पर काबू पा सकते हैं। घटनाओं के निरंतर बदलते महासागर में तैर सकते हैं, और जीवन हमें कैसे भी हमेशा डूबने या गिरने से बचा ही लेगा।

मैं बीच का रास्ता कैसे खोजूं?

आपके आस-पास क्या हो रहा है, इसके प्रति सचेत रहने का प्रयास करें। कई ऐसी चीज़ें हैं जिन्हें आप बदल सकते हैं और ऐसी चीज़ें भी हैं जिनके बारे में आप शायद ही कुछ कर सकते हैं। मसलन, शेयर की घट-बढ़, पेट्रोल की कीमतें, टीवी पर क्या आता है, अखबार में क्या छपता है, सत्ता में कौन सी पार्टी है, इत्यादि… आप कुछ भी नहीं बदल सकते। तो, उनके बारे में चिंता काहे करें? चीजों को अपना स्वाभाविक मार्ग अपनाने दें। जो कुछ भी आपके पास है और जिनके साथ आप रहते हैं और काम करते हैं, “यहाँ और अभी” में जितना संभव हो सके जीना सीखें।

मध्यम मार्ग से जीने का मतलब ना तो खुद को दुनिया से दूर करना, और ना ही उसमें खो जाना है।

आप जो भी कर सकते हैं वह करें लेकिन बाकी चीजें जिस तरह से हो रही हैं उन पर छोड़ दें। आप जो भी करें उसमें अपना अनुभव प्राप्त करें और उसका उपयोग करें तथा अपने स्वयं के विचार और भावनाएँ वैसे रखें जैसे कि आप कोई नाटक या फिल्म देख रहे हों। बीच का रास्ता सोचना या महसूस करना बंद करना नहीं है, बल्कि विरोधाभासों को स्वीकार करना और अभिभूत हुए बिना बदलाव करना सीखना है। दूसरों को बदलकर और नियंत्रित करके समाधान खोजने के बजाय, बीच में खुद को खुला और संघर्ष में अपनी भूमिका समझ कर शामिल होना है। इसे सीखें और जानें कि दुनिया वास्तव में काम करने के लिये बनी है, काम करने वालों की है, और हमेशा वैसी ही रहेगी। बदलना आपको है।