आत्म-विनाशकारी व्यवहार बड़ा आम है। लोग बेधड़क ऐसे काम करते रहते हैं जिससे उन्हें शारीरिक या मानसिक रूप से नुकसान पहुंचना तय है। In most cases, this behaviour is unintentional. Some of them know that what they are doing is harmful, like being unfaithful in relationships, flouting laws and rules, or having addictions like smoking, drinking, or eating sweets, but their urge is too strong to control.
The Shrimad Bhagavad Gita declares (Chapter 16, Verse 21) lust (काम), anger (क्रोध) and greed (लोभ) as the triple doors to hell.
त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मन: |
काम: क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत् ||
आत्म-विनाश के नरक की ओर ले जाने वाले – काम, क्रोध और लोभ – ये तीन द्वार हैं। इसलिए तीनों को ही त्याग देना चाहिए।
Lust of any kind, whether for food, sex, power, or money, creates a veil such that one cannot see reality. इच्छा से अंधा, इंसान असत्य का पीछा करता है, और इससे पहले कि वह महसूस करे, उसके अपने रिश्ते, करियर और यहां तक कि जीवन भी गड़बड़ हो चुका होता है। Examples of the same are galore and yet, people turn a blind eye to the obvious.
क्रोध मनुष्य के सोचने और रचनात्मक रूप से कार्य करने की क्षमता को छीन लेता है। निस्संदेह, क्रोध मानव पीड़ा का प्रमुख कारण है। Angry people end up doing things which they repent later. इस तरह का तर्कहीन व्यवहार न केवल संबंधित व्यक्ति के लिए बल्कि उसके आसपास के अन्य लोगों के लिए भी समस्याएँ पैदा कर देता है।
Greed has always been the ghost spirit of capitalism. It possesses honest people doing their jobs and makes them deviate from the right path. Instead of doing what is right, people start seeking profit. डॉक्टर ऐसे इलाज बताते हैं जिससे उनकी आमदनी बढ़े, व्यवसायी धंधे में हेराफेरी से पैसा बनाते हैं, और व्यापारी फायदे के लिए कम तोल और मिलावट का सहारा लेते हैं।
कबीर ने आत्म-विनाशकारी व्यवहारों की सूची में “अभिमान” भी जोड़ दिया है।
Lust breeds anger. When one doesn’t get what one wants, naturally, one gets angry. And, greed multiplies in the process. लोभ को ठुकराने पर भी अभिमान बना रहता है। अच्छा दिखने की ललक, मान-सम्मान, स्तुति और आडम्बर के लिए उकसाती रहती है।
अभिमान मानव मन का एक मूल भाव है। मनुष्य होने का अर्थ है, अपनी उपलब्धियों पर गर्व करना। However, none of our accomplishments is a solo affair. There are many people who have helped us succeed — our parents, teachers, colleagues, as well as favourable circumstances. So, pride is a false feeling.
Then comes vanity — the bogus pride. “अच्छे दिखने” के लिए हम महंगे सौंदर्य उत्पाद, आभूषण और बढ़िया कपड़े खरीदते हैं। We invest a fortune on the car that we drive and the address at which we live. We are told to purchase certain products because we “deserve it.” ऐसे इसरार के पीछे दो गलत धारणाऐं काम करती हैं। एक कि महंगे “ब्रांड” पहनने से हम “बेहतर” बन जाते हैं। और दूसरी कि हमारी “समृद्धि” के कारण लोग हमारे साथ “सम्मान” का व्यवहार करते हैं।
और, एक “खेल” की तरह, जिस क्षण हम एक इच्छा पूरी करते हैं, दूसरी इच्छा आ पहुंचती है, और हमारी सारी ऊर्जा और जीवन शक्ति “बेहतरीन महसूस करने” की ओर ही लगी रहती है। The moment we see anyone in possession of something that is better than what we have, we start feeling low and do whatever possible to get “more.” People borrow tons of money in credit to buy things they do not need, just to impress people whom they do not even know.
कबीर “अभिमान” को सभी मुसीबतों की जड़ कहते हैं।
Everyone makes mistakes. However, a good man yields when he knows his course is wrong and repairs the wrongdoing. But pride never allows this correction. Through pride, we are ever deceiving ourselves. कबीर की सीख है कि हम अपने भीतर की शांत, धीमी आवाज को सुनें जोकि जब भी हमारा व्यवहार गलत होता है तो हमें आगाह करती है और आत्म-विनाश से बचाती हैं।