If there is one thing that is inseparable from the human mind, it is desire. एक बच्चा दूध मांगता हुआ पैदा होता है और जैसे-जैसे बड़ा होता जाता है उसकी इच्छाएं बढ़ती जाती हैं। सुरक्षा की इच्छाएँ – भोजन, आश्रय, भौतिक सुख-सुविधाएँ, इत्यादि। आस की प्यास सार्वभौमिक है। As we grow up, mental desires – likes and dislikes – become more dominant. Driven by their mental desires, people spend their lives running in vain – either running towards what they like or away from what they dislike.
इससे प्यार करना, उससे डरना; इस पर फिदा, उससे खफा; एक उछाले हुए सिक्के की तरह, हम पहलू बदलते रहते हैं, कभी सुकून नहीं, कभी यह सुनिश्चित नहीं कि अगला पल क्या लेकर लाएगा – सिक्का अपने सिर के बल गिरेगा या अपनी दुम दबा लेगा। And there are people who get obsessed with the desire that whatever side they predict, the coin must show that side only. All gamblers live and die thus fixated and fascinated.
हमारी इच्छाएं ‘आशा’ को जन्म देती हैं।
Whatever be the desire – to receive or to escape, to arrive or to depart, to get entangled or become free – we hope to have a favourable outcome. एक व्यक्ति के लिए, जो पृथ्वी पर रहने वाले आठ अरब इंसानों में से बस एक है, अपने दिल की हर चाहत को पाने की आशा करना कितना गैरमुनासिब है! हर दिल की अपनी अनूठी इच्छाएं होती हैं। किस-किस की कौन कौन-सी पूरी होंगीं? Imagine how crowded the space is with contradictory hopes clashing with each other like a crowd of rats running around helter-skelter for a small bite of a loaf of bread.
कबीर इच्छाओं को इस दुनिया में रहने के लिए चुकाने जाने वाली कीमत के रूप में देखते हैं। हम जो कुछ भी कमाते हैं या खर्च करते हैं उस पर चुकाए गए टैक्स की तरह, हम इच्छाओं को गढ़ते रहते हैं और उनके पूरा होने की आशा में उम्र गुजर जाती है। Hope climbs like a creeper on to the attachments in the ever-happening world. Even if you don’t participate, you can’t escape from the contractual obligation of being born in this world.
लेकिन अव्यक्त इच्छाओं का होना या उन पर अमल न करना तो और भी हानिकारक है। It is as unbearable as not being able to excrete undigested food and as impossible as not exhaling after inhaling.
Desires are our response to life itself.
चाँद तारों को, छूने की आशा, आसमानों में, उड़ने की आशा। चाहना पर चाहतों के बारे में चुप रहना खुद को दी गई सबसे बड़ी सजा है।
भोजन, घर-परिवार-समाज की सुरक्षा मिलते ही, हम घमंड की इच्छाओं की ओर बढ़ने लगते हैं – दूसरों से बड़ा-बेहतर महसूस करने की कसक सालने लगती है। Having the things we need is no more enough, they must be better than those that others have – a residence in a certain locality, a bigger car, particular brands of clothes, shoes, watches… leading to an endless process of feeling dissatisfied.
लेकिन फजीहत तब होती है जब हम चाहते हैं कि हमारे आस-पास के लोग जैसा हम चाहते हैं वैसा ही चाहें। जिन्हें हम चाहते हैं वो भी हमे चाहें। हमारी बातों को मानें, और हमारे साथ रहें। Desiring another person is perhaps the riskiest enterprise of all. As soon as you want somebody—really want him—it is as though as you have taken a surgical needle and sutured your happiness to the skin of that person, so that any parting will now cause a tearing injury.
आयरिश नाटककार जॉर्ज बर्नार्ड शॉ (1856-1950) ने क्या खूब कहा है कि “जीवन में दो त्रासदी हैं। एक तो अपनी ख्वाहिशों को खो देना है और दूसरा उन्हें हासिल कर लेना है।”
English writer Virginia Woolf (1882-1941) compared desires with a stream of water that must always be flowing. She identified desire as the natural tendency of life to be something beyond daily life. So true! एकरसता से घबराकर लोग रेस्तराओं में भीड़ लगाते हैं, अस्वास्थ्यकर भोजन के लिए अत्यधिक कीमत चुकाते हैं, और एक-दूसरे से आगे निकलने की कोशिश में दूर-दराज के स्थानों की यात्राऐं करते हैं।
The tragedy is that those who are not satisfied with what they have, remain dissatisfied even after getting all that they have pursued. आप जो चाहते हैं उसके लिए इच्छा और आशा करना वास्तव में वन-प्लस-वन सौदा है, एक अभिशाप जो जीवन के वरदान के साथ मुफ्त आता है।