सबसे पहले तो यह लगता है कि मई 2018 में रिलीज हुई इस फिल्म को शायद ही उस समय भारतीय दर्शकों ने नोट किया हो I जब फिल्म बाजार में एक के बाद एक बॉक्स ऑफिस पर चमत्कार दिखाने वाली मसाला फिल्में आ रही हों और दूसरी तरफ अच्छी कहानी वाली ठीक-ठाक बजट में बनने वाली फिल्में भी लगातार लोगों को आकर्षित कर रही हों तो शायद ऐसी स्थिति में किसी फिल्म के लिए अपने आप को नोटिस कराना भी कोई आसान काम नहीं है I
इस फिल्म की सबसे खास मजबूती देखने में नसीरुद्दीन शाह की उपस्थिति लगेगी परंतु शायद इस फिल्म के सबसे आकर्षक करैक्टर के रूप में कबीर साजिद दिखाई देंगे जिसने क्रिकेट के लिए एकदम पागल हो गए जैसे एक बच्चे अनुराग का किरदार निभाया है I अपने घर में हो रही हर बात को वह कमेंट्री के रूप में बोलता रहता है और इससे हम समझ जाते हैं कि यह बच्चा क्रिकेट के लिए समर्पित है I नानी के घर जाने पर अनुराग वहां भी क्रिकेट के दोस्त ढूंढ लेता है I नसीरुद्दीन शाह तो इतने वर्षों के लगातार अभिनय के बाद इस कदर पारंगत हो चुके हैं कि उन्हें दुनिया का कोई भी रोल दिया जा सकता है और वे किसी भी भूमिका में सहजता से घुस सकते हैं I फिल्म की शुरुआत से ही और बाद में भी फिल्म में कहीं ना कहीं एक पुरानी फोटो स्टेट मशीन हमेशा सेंटर-स्टेज लिए रहती है और शायद इस फिल्म की सबसे यूनिक बात यही कही जा सकती है कि इसमें एक पुरानी फोटो स्टेट मशीन को भी मानवीय किरदार की तरह बड़े असरदार तरीके से दिखाया हैI
बहुत कम फिल्में ऐसी होती हैं जिनमें किसी निर्जीव वस्तु को किसी किरदार के रूप में इतना अधिक अच्छे से उभार कर दिखाया गया हो और दर्शक अंत में इस बात को मान भी जाए I निश्चित रूप से फिल्म में काम कर रहे कलाकारों तथा फिल्म के निर्देशक के ऊपर बहुत कुछ निर्भर करता है कि वह किस प्रकार इस चीज को हासिल करने में कामयाब हो जाते हैं I नसीरुद्दीन शाह और अन्य सदस्यों का उस मशीन के प्रति जो रवैया होता है, उसमें वे पूरी तरह से यह दिखाने में कामयाब रहते हैं कि एक मशीन से भी परिवार के किसी सदस्य का आत्मीय लगाव या दुश्मन जैसा बैर हो सकता है I घर की बहू अपनी बेटी के लिए स्पेस चाहती है ताकि वह अच्छे से पढ़ाई कर सके तो उसके लिए वह मशीन एक मुसीबत की तरह है I घर का बेटा अपने पिता का उस मशीन से रिश्ता अच्छे से जानता है और अपनी पत्नी के बार बार कहने के बाद भी अपने पिता को इस संबंध में कुछ कहकर उनका दिल नहीं दुखाना चाहता है I छोटा बेटा दुबई से लौटता है तो एक नई फोटो स्टेट मशीन लेकर अपने पिता को उपहार देता है और यह सोचता है कि पुरानी मशीन को धीरे-धीरे इस नई मशीन की वजह से उसके पिता भूल जाएंगे I पोता अपने दादा को उस मशीन के साथ देखता है तो उसे खुशी होती है और उस मशीन के उस घर से विदा होते समय दादा से ज्यादा पोते को दुख होता है I पोती पूरा मन लगाकर अपने दादा की पुरानी विंटेज फोटोस्टेट मशीन को उसका खोया हुआ पार्ट दिलाने के लिए लगातार लगी रहती है और जब कामयाबी होती है तो तब तक मशीन जा चुकी होती हैI
फिल्म में पुरानी वस्तुओं को अलग-अलग फ्रेम में इस्तेमाल किया गया है और कहीं ना कहीं हर वस्तु को फिल्म में दिखाने के पीछे निर्देशक का कोई ना कोई मकसद भी समझा जा सकता है I सिनेमैटोग्राफी के माध्यम से अनुराग की नानी की हवेली के सौंदर्य को इस प्रकार से कैप्चर किया गया है कि यह बताया जा सके कि पुरानी चीजों में भी एक कशिश होती है I रेलवे स्टेशन से नानी के घर का रास्ता एक पुरानी विंटेज कार में तय किया जाता है और रास्ते में उसके खराब होने और फिर से ठीक होने के पीछे भी पुरानी चीजों और घर के बुजुर्गों के बीच की समानता को दर्शकों के सामने उतारने का भी प्रयास काफी हद तक सफल नजर आता है I
फिल्म में कई प्रकार के संदेश भी हैं और आम आदमी की जिंदगी में आमतौर पर होने वाली घटनाओं का जिक्र भी है I फिल्म के कुछ कैरेक्टर्स और उनके जीवन की घटनाओं के माध्यम से फिल्म में थोड़ी विविधता लाने के लिए छोटे बेटे के फोन गुम होने तथा एक लड़की के माध्यम से उसे वापिस पाने के दृश्यों के होते हुए भी फिल्म की मुख्य विषय वस्तु से भटकाव बिल्कुल नजर नहीं आता है I
फिल्म की सबसे मजबूत बात यह है कि इसमें जिन कलाकारों को मुख्य पात्रों के रूप में उपयोग में लिया गया है वह सब फिल्म से एकदम संबंधित नजर आते हैं और कहानी के अनुसार ही अपने पात्र को जीवंत करते हैं जिससे फिल्म काफी रुचिकर बनी रहती है I
फिल्म के सबसे छोटे परंतु सबसे मजबूत पात्र के रूप में अनुराग का रोल निभाने वाले कबीर साजिद जहां कहीं भी नजर आते हैं वह बहुत अच्छे प्रकार से अपने अभिनय से दृश्यों को मजबूती प्रदान करते हैं और आने वाले समय में हम इनसे और अधिक उम्मीद रख सकते हैं I फिल्म में दूसरी पहले से पॉपुलर मराठी एक्ट्रेस सोनाली कुलकर्णी भी है जिन्हें हम “दिल चाहता है” फिल्म से बहुत अच्छे से जानते हैं I उनके लिए फिल्म में केवल एक संतुष्ट हाउसवाइफ की भूमिका दी गई है जिसको उन्होंने अच्छे से निभा दिया है I
फिल्म का एक मजबूत सीन नसीरुद्दीन शाह और उनके बड़े बेटे के बीच में फिल्माया गया है जहां पर मशीन के घर से चले जाने के बाद साथ बैठ कर शराब पीते हुए बेटा उस मशीन की उनकी जिंदगी में रही वैल्यू के बारे में सकारात्मक तरीके से बात करता है तो पिता को काफी शांति मिलती है I उसके द्वारा इस बात को याद रखना कि जब उसके पिता के पास उसे नई किताब दिलाने के पैसे नहीं होते थे और इस फोटोस्टेट मशीन की वजह से उसने अपने दोस्त की एक किताब को नए जैसा फोटो स्टेट के माध्यम से बना लिया था, यह सुनकर इस करैक्टर की मजबूती के बारे में एहसास होता है I अपने फेवरेट हीरो की पोस्टर का फोटो स्टेट मिलने की बात भी उसे अभी तक याद होती है जिसे सुनकर नसीरुद्दीन शाह जैसे बाप को कहीं ना कहीं मन ही मन खुशी होती है जिसे वे इस दृश्य में संवाद के माध्यम से जताते भी हैं I इस संवाद के माध्यम से निर्देशक दर्शकों के सामने इस बात को रखने में कामयाब रहा है कि कई बार हम किसी बुजुर्ग व्यक्ति के किसी मशीन के साथ संबंध को दुनियादारी के चलते हुए जिस संजीदगी के साथ नहीं देख पाते हैं, किंतु किसी परिवार के जीवन में उस मशीन द्वारा सृजित किए गए इमोशनल पलों के माध्यम से उस अनोखे संबंध के पीछे के कारणों का खुलासा करने से हम इंसान और मशीन के बीच के जज्बाती रिश्तो को और अच्छे से समझ पाते हैं I बड़े बेटे का रोल आमिर बशीर द्वारा किया गया है जो “ए वेडनेसडे” फिल्म के माध्यम से अपने अभिनय के जौहर हम सबको दिखा चुके हैं I अनुराग की नानी का रोल लंबे समय से फिल्म इंडस्ट्री में काम कर रही बीना के द्वारा निभाया गया है और उनके लिए इस प्रकार की भूमिका निभाना कोई बहुत बड़ी चुनौती नहीं रही होगी I
एक दृश्य में फिल्म में अनुराग हवेली के किसी कोने में कुछ असाधारण सा होता देख लेता है और इसकी वजह से अचानक उसके जीवन में परिवर्तन आने लगता है और दशकों में भी एक उत्सुकता पैदा होने लगती है कि आखिर इस प्रकार के दृश्य में जो दिखाया गया है उसके पीछे अंत में क्या नई बात सामने आने वाली है I अंत में इसका खुलासा इतने सिंपल तरीके से किया गया है कि दिमाग पर कोई बोझ ही नहीं आता है और यही फिल्म का अंतिम क्लाइमेक्स का दृश्य आ जाता है और अपने मन के भ्रम को दूर करने के बाद खुशी से उतरता हुआ अनुराग वापिस अपने जुनून क्रिकेट की तरफ मुड़ता हुआ नजर आता है I फिल्म में एक करैक्टर अनुराग की बहन तनु का भी है जो नवोदित कलाकार वृत्ति द्वारा अच्छे तरीके से निभाया गया है और वह अपने सभी दृश्यों में अपने कैरेक्टर की मांग को पूरी करते हुए नजर आती है I जिस उम्र के पड़ाव पर तनु को दिखाया गया है, उससे संबंधित सभी प्रकार की चीजों को बेहतरीन तरीके से प्रकट करने में वृत्ति ने काफी अच्छा काम किया है I हाल ही में डिजनी हॉटस्टार पर रिलीज हुई वेब सीरीज आर्य में वृत्ति ने सुष्मिता सेन की बेटी के रूप में बहुत अच्छा किरदार अदा किया है और हम भविष्य में इस प्रकार के कलाकारों से बहुत अधिक उम्मीद रख सकते हैं I
2018 में इस फिल्म के रिलीज होने के बाद अनेक फिल्म समीक्षकों ने इसे बहुत मजबूत या बहुत मनोरंजक फिल्म के रूप में मान्यता नहीं दी थी और इसके संबंध में मिश्रित प्रतिक्रियाएं सामने आई थी I इस फिल्म को देखने के बाद मेरा यह मानना है कि यदि आप धीरे-धीरे कहानी के कैरेक्टर्स को बिल्ड करते हुए अपने मैसेज को बहुत अच्छे तरीके से समझाते हुए बनाई गई किसी आम कहानी को देखना चाहते हैं तो यह फिल्म आपके लिए है I यह जानकर बहुत ही अच्छा लगता है कि इस फिल्म के निर्देशक सुदीप बंधोपाध्याय की यह पहली कोशिश थी और फिल्म का निर्माण भी शायद उन्हीं के परिवार से किया गया है I इस प्रकार की बातों से कहीं ना कहीं है आशा जगने लगती है कि बॉलीवुड भी अच्छी कहानियों पर या साधारण कहानियों पर अच्छे कलाकारों के माध्यम से बढ़िया चलचित्र का निर्माण करने के लिए सजग है I फिल्म में संगीत के नाम पर 3 गाने हैं जो फिल्म को आगे बढ़ाने में मददगार भी होते हैं और उस समय के हिसाब से दृश्यों की मांग को भी पूरा करते हुए नजर आते हैं I फिल्म के गानों को आवाज सोनू निगम और शान जैसे प्रख्यात गायकों ने दी है और वही टीवी के सिंगिंग कंपटीशन की विजेता भूमि त्रिवेदी की आवाज भी सुनने को मिलती है I