डिज्नी हॉटस्टार पर आई सिरीज ‘क्रिमिनल जस्टिस’ का अब दूसरा सीजन आ चुका है। दूसरे सीजन की पहली खास बात यह है कि इसे रोहन सिप्पी ने डायरेक्ट किया है। उन्हें हम ‘कुछ न कहो’, ‘ब्लफमास्टर’, ‘दम मारो दम’, ‘नौटंकी साला’ जैसी फिल्मों से जानते हैं, पुरानी पीढ़ी के लोग उन्हें ‘शोले’ के निर्देशक रमेश सिप्पी के होनहार बेटे के रूप में जान सकते हैं।
‘क्रिमिनल जस्टिस’ का पहला सीजन आए काफी वक्त हो चला है, जब यह मुझे देखने को मिला, उसके बाद बात करने में देर हो चुकी थी। डिज्नी हॉटस्टार पर आई इस सिरीज का अब दूसरा सीजन आ चुका है, इस पर बात करने के अर्थ और संदर्भ को गंवाना नहीं चाहिए। दूसरे सीजन की पहली खास बात यह है कि इसे रोहन सिप्पी ने डायरेक्ट किया है। उन्हें हम ‘कुछ न कहो’, ‘ब्लफमास्टर’, ‘दम मारो दम’, ‘नौटंकी साला’ जैसी फिल्मों से जानते हैं, पुरानी पीढ़ी के लोग उन्हें ‘शोले’ के निर्देशक रमेश सिप्पी के होनहार बेटे के रूप में जान सकते हैं। कराची के ‘सिपाहीमालानी’ गोत्र के सिंधी खानदान के इस चश्मेचिराग रोहन के दादा मरहूम गोपालदास परमानंद सिपाहीमालानी यानी जीपी सिप्पी आज़ादी के बाद मुम्बई आकर बसे और सिनेमा निर्माण की लगभग 50 साल लंबी पारी खेली। तीन पीढ़ियों की यह चर्चा करते हुए मैक्सिम गोर्की के उपन्यास का शीर्षक ‘तीन पीढ़ी’ याद आ रहा है।
बहरहाल, रोहन सिप्पी का नया शाहकार ‘क्रिमिनल जस्टिस: बिहाइंड क्लोस्ड बार्स’ है। इसे एक तरह से सीजन 2 की तरह नहीं भी देखा जा सकता है। इसे अपूर्व असरानी ने लिखा है। पंकज त्रिपाठी, कीर्ति कुलहरी, दीप्ति नवल, जिशु सेन गुप्ता, अनुप्रिया गोयनका, मीता वशिष्ठ, खुशबू आत्रे, आशीष विद्यार्थी ने मुख्य भूमिकाएं निभाई हैं। इसमें 8 एपिसोड हैं, जिन्हें एक सांस में देखा जा सकता है।
क्रिमिनल जस्टिस का यह सीजन जेलों की भीतरी दुनिया के सच को बेनकाब करता है। कहा जाता है कि जितने मनुष्य, उतनी कहानियां, उतनी संवदेनाएं, उतने अनुभव। एक वकील की हत्या का आरोप उसकी पत्नी पर है जो पति द्वारा सेक्सुअल वायलेंस का शिकार है, वह जब महिला जेल पहुंचती है, कई किरदार जुड़ते चले जाते हैं और आगे बढ़ते हुए कहानी बहुआयामी, मल्टी लेयर्ड होती जाती है। सलोखों के भीतर की यह दुनिया बाहर की दुनिया का बोनसाई रूप होकर जाहिर होती जाती है।
कला या खास तौर पर टीवी, वैब और सिनेमा की दुनिया में जेलों की दुनिया को लेकर पिछले कुछ सालों में काफी कुछ आया है, और वह आसानी से सबको उपलब्ध भी है, ऐसे में भारतीय दर्शकों के लिए मनोरंजक, नयापन लिए कुछ बनाना बेशक़ चुनौतीपूर्ण रहा होगा। पर रोहन सिप्पी ने क्राइम की दुनिया में संवेदना, असलियत और कथासुख का मणिकांचन संयोग पैदा कर ही दिया है।
कानून, मनोविज्ञान और कलाएं सब ये मानते हैं कि अगर आप आदतन अपराधी नहीं हैं तो आपके सामान्य होने और अपराधी होने में सूत भर का ही फ़र्क़ होता है। उस सूत की पहचान, बुनावट की समझ विरलों को हो पाती है। इस सीजन को देखते हुए अहसास होता है कि रोहन उस सूत से बहुत सेंसेटिव तानाबाना बुनते हैं। मानवीयता की डोर को क्राइम की कहानी कहते हुए ज्यादा मजबूती से थामे रखना कहानी कहने वाले के लिए जरूरी भी होता है और बेहद चैलेंजिंग भी, क्योंकि गैरआदतन अपराधी अपराध से पहले और बाद में पूरा मुकम्मल इनसान होता है, किन्हीं खास मनस्थिति वाले और केवल कुछ क्षणों की उसकी वारदात उसके मानवीयपन को पूरी तरह भुला दिए जाने का हथियार कानून और न्याय व्यवस्था के लिए तो बन सकती है, पर कला सर्जक के लिए नहीं बनने चाहिए।
बंगाली सिनेमा के लोकप्रिय अभिनेता जिशू सेनगुप्ता इस सिरीज में जितना आते हैं, ठहर जाते हैं। कीर्ति कुलहरी लगातार इंडस्ट्री में अपने होने को सार्थक बना रही हैं, यहां भी मुकम्मल हैं। पंकज त्रिपाठी के तो क्या ही कहने। छोटे बड़े हर रोल में वे अपने आपको जता ही देते हैं।
इनके अलावा इस सिरिज की कास्ट में अजीत सिंह पालावत और कल्याणी मुले को खास तौर पर याद रखा जाना, उनकी बात करना बनता है। दोनों थिएटर की दुनिया से आए हैं। अजीत जयपुर रंगमंच के होनहार, बेहद काबिल अभिनेता हैं जिन्होंने एनएसडी से भी पढ़ाई की है। उनके काम में संजीदगी और आत्मविश्वास से भरे निखार को लगातार महसूस किया है। कल्याणी भी एनएसडियन हैं, उनके उन्हीं एनएसडी के दिनों उनके काम से परिचय हुआ था। उनकी एक मराठी फिल्म ‘न्यूड’ ( रवि जाधव निर्देशित, 2018) न भूलने वाली फिल्म है। जो पेंटिंग दुनिया की न्यूड मॉडल की ज़िंदगी पर आधारित है। कल्याणी निःसंदेह बड़ी रेंज की अभिनेत्री हैं। इसलिए मुझे बेहिचक यहां कहना चाहिए कि उनका आगे आने वाले दिनों का काम उम्मीद से देखना वाजिब और लाज़िम दोनों है।
इस सिरीज की बात करते हुए फ्योदोर दोस्तोयवस्की के भीमकाय उपन्यास ‘क्राइम एंड पनिशमेंट’ की याद न आए, ऐसा होना स्वाभाविक नहीं होगा। जैसे यह उपन्यास प्रोटेगनिस्ट रास्कोलनिकोव के जेहनी आक्रोश और नैतिक डिलेमा का कोलाज है। रोहन सिप्पी का यह शाहकार कई पात्रों के जेहनों का एक्स रे करता है। और वहां तक जाने की कामयाब चेष्टा करता है, जहां तक हमारा समाज, राजनीतिक सिस्टम और कानून व्यवस्था शायद ही पहुंचते हों, और बाइनरी के साथ दुनिया को देखने समझने की आदत बना चुके हम लोग या तो उन्हें देख ही नहीं पाते और भूले से अनजाने से देख भी लें तो देखकर अनदेखा करते हैं। एक खराब रचना कभी किसी अच्छी रचना की याद नहीं दिलाती, एक अच्छी रचना कई अच्छी रचनाओं की याद दिलाती है, एक बहुत अच्छी रचना कालजयी रचना को याद दिलाती है, उसके कला दायित्व और सरोकार को आगे बढ़ाती है, इस लिहाज से यकीनन ‘क्रिमिनल जस्टिस’ का यह सीजन दोस्तोयवस्की के ‘क्राइम एंड पनिशमेंट’ की याद दिलाता है। आप देखेंगे तो पांएगे कि रोहन ने इस सीजन के जरिए अपने निर्देशकीय रूप के लिए भी आगे के लिए बैंचमार्क बड़ा कर लिया है।
कई जगह क्राइम के उत्तरकांड यानी जेलजीवन की कथा कहते हुए यह सिरीज हमें सआदत हसन मंटो की भी याद दिलाती है कि यह अपराध, यह धूसर संसार अपराधियों जितना ही हम सभ्य सामाजिक नागरिकों की भी देन है। और इस दुनिया का अपराधमुक्त होना हमारी सामूहिक कोशिशों से ही मुमकिन होगा।