मृगनयनी को यार नवल रसिया… मृगनयनी …
और
उड़त गुलाल, लाल भये बादर…
इसी रंग और रस में डूबने वाला है यह महीना और कहीं-कहीं जगह तो बसंत पंचमी से ही रंगों का खेल शुरू हो गया है| भारत में बहुत सारे त्यौहार मनाए जाते हैं| हर त्यौहार हमें जीवन के अलग-अलग भावों का आनंद लेना सिखाता है| जब बात होली की आती है तो सबकी excitement अलग ही होती है|
वैसे इस त्यौहार की तैयारी बाकी त्यौहारों से होती भी अलग है| बाकी त्यौहारों में हम नए कपड़ों की शॉपिंग करते हैं और सबसे बेस्ट कपड़े पहनते हैं| लेकिन होली में तो हम अपने पुराने कपड़े ढूंढकर पहनते हैं, ताकि जब वो रंगों में खराब हो भी जाएँ तो हमें ग़म न हो| बाकी त्यौहारों में हम matching एयरिंग्स हों, मेकअप हो, पर्फेक्ट लुक हो, इन सब चीजों पर बहुत ध्यान देते हैं| पर होली के त्यौहार में क्या मेकअप, क्या लुक्स, इन चीजों की परवाह किए बिना हम रंगों से खुद को पोत देते हैं| थोड़ा अल्हड़पन और थोड़ी मस्ती से भरा ये त्यौहार मनाया क्यूँ जाता है? आपको पता है? चलिये ये तो आपको पता होगा पर, ये रंगों से क्यूँ मनाई जाती है, ये पता है? जानने के लिए पढ़िये आगे|
हिन्दू पंचांग के अनुसार होली फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है| ये हर प्रांत में अलग नाम से पहचानी जाती है, जैसे फाल्गुनी, फगुआ, धुलेंडी, छारंडी, दोल उत्सव| बसंत पंचमी के दिन जब सरसों के फूल उगने लगते हैं, गेहूं की बाली खिलने लगती है, उस दिन ही पहला गुलाल खेला जाता है| उस दिन से लेकर होली तक रोज़ रंगों से खेला जाता है| इतना लंबा चलता है यह त्यौहार|
होली क्यूँ मनाई जाती है?
इसके बहुत सारे कारण मिलते हैं| सबसे प्रचलित है भक्त प्रह्लाद की कथा| पौराणिक कथाओं के अनुसार भक्त प्रह्लाद का पिता राजा हिरण्यकश्यप राक्षस प्रवृत्ति वाला था| वो चाहता था कि लोग उसे ही भगवान माने और उसी की ही पूजा करें| लेकिन प्रह्लाद भगवान विष्णु की पूजा करता था| वो अपने पुत्र प्रह्लाद की भगवान के प्रति भक्ति को देखकर बहुत परेशान था। उसने प्रह्लाद का ध्यान ईश्वर से हटाने की बहुत कोशिश की लेकिन असफल रहा|
उसने अपनी बहन होलिका, जिसको वरदान मिला था कि अग्नि उसे भस्म नहीं कर सकती, से प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में जाने को कहा| होलिका ने वैसा ही किया| पर क्यूंकी होलिका ने अधर्म के लिए अपने वरदान का गलत उपयोग किया इसलिए वो आग में जलने लगी और प्रह्लाद सकुशल अग्नि से निकल गया| इसी बुराई पर अच्छाई की जीत को मानते हुए लोगों ने मिठाइयाँ बांटी और होली का त्यौहार मनाया|
प्रह्लाद की कथा के अलावा यह पर्व राधा कृष्ण के रास से जुड़ा हुआ है|
यह पर्व कामदेव के पुनर्जन्म से भी जुड़ा हुआ है| इसी वजह से इसे काम महोत्सव भी कहा जाता है|
इसी दिन श्री कृष्ण ने पूतना नामक राक्षसी का वध किया था इसलिए भी उस दिन उल्लास में गोपियों और ग्वालों ने रंग से यह त्यौहार मनाया|
इस पर्व के बाद चैत्र का पहला दिन आता है| चैत्र महीने का पहला दिन हिन्दू पंचांग के अनुसार नया साल अर्थात नया संवत्सर होता है|
होली वसंत का त्यौहार है और इसके आने पर सर्दियां खत्म होती हैं। कुछ हिस्सों में इस त्यौहार का संबंध वसंत की फसल पकने से भी है। किसान अच्छी फसल पैदा होने की खुशी में होली मनाते हैं। होली को वसंत महोत्सव भी कहते हैं|
अलग-अलग हिस्सों में होली कैसे मनाई जाती है?
रंगों से इस त्यौहार का जुड़ाव श्री कृष्ण की वजह से है| तो सबसे ज़्यादा मतवाली होली ब्रज और बरसाने में मनाई जाती है| ब्रिज की होली तो दुनिया भर में मशहूर है| दूर-दूर से लोग यहाँ होली मनाने आते हैं| बरसाने में लठमार होली मनाई जाती है| इसमें पुरुष स्त्रियों पर रंग फेंकते हैं और स्त्रियाँ उन्हें लठ मारती हैं|
मथुरा और वृन्दावन में बहुत दिनों तक इस पर्व को मनाया जाता है| वसंत पंचमी से रंग खेल शुरू होता है| जिसमें वसंत के कीर्तन होते हैं फिर पूर्णिमा को होली-डांडा रोपण होता है, पूजन होता है और तबसे धमार के कीर्तन शुरू होते हैं और ग्यारस से रसिया शुरू हो जाते है| ये दोल उत्सव मतलब फागुन की पूर्णिमा तक चलता है| मतलब इतने दिनों तक रंग, कीर्तन, ढोल, मंजीरा, पखावज, मावे की मिठाइयों का भोग और आनंद ही आनंद| बंगाल में भी इसे बड़े ही धूम-धाम से मनाया जाता है क्यूंकी इसी दिन बंगाल में जन्मे चैतन्य महाप्रभु जी का जन्म उत्सव भी होता है|
होली मनाने का तरीका
पहले दिन होलिका दहन होता है और दूसरे दिन रंगों से होली खेली जाती है| होलिका दहन में उपले और लकड़ियों को एकत्र कर उनकी पूजा की जाती है और उन्हें जलाया जाता है| फिर इसकी परिक्रमा की जाती है| अगले दिन रंगों से खेला जाता है| बच्चे अपनी पिचकारियों के साथ तैयार होते हैं| घर के बड़ों के रंगों से पाँव छूकर आशीर्वाद लिया जाता है| सब आपस में मिलजुलकर खुशी से होली खेलते हैं| इस दिन गुझिया, मावा, पेड़ा, जलेबी-इमरती, खीर और भी बहुत सी मिठाइयों के साथ इस त्यौहार को मनाया जाता है|
पंचांग के अनुसार होलिका दहन का शुभ मुहूर्त (Holi dahan ka samay)
होलिका दहन सोमवार, 28 मार्च को मनाया जाएगा|
होलिका दहन की पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 06 बजकर 37 मिनट से 08 बजकर 56 मिनट तक रहेगा|
रंग वाली होली का समय (Rang wali Holi ka time)
धुलंडी यानि रंग वाली होली 29 मार्च को मनाई जाएगी |
भद्रा पूंछ- 10:13 से 11:16
भद्रा मुख- 11:16 से 13:00
होली मनाते वक़्त इन कुछ बातों का रखें ध्यान
इस वक़्त कोविड-19 की महामारी में तो सावधानियाँ और भी बढ़ जाती हैं| जैसे-
- किसी बड़े स्तर पर कोई पार्टी ना करें| ज़्यादा लोग एक जगह पर इकट्ठे न रहे| कुछ ही खास लोगों के साथ ये त्यौहार मनाए|
- खुले मैदान में होली मनायें, किसी कंजस्टेड जगह पर नहीं|
- मास्क पहने रखे जब भी आप घर से बाहर निकलें|
- अपने हाथ और मुंह को अच्छे से sanitize करें|
- हमें पक्के रंगों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, केमिकल से बने रंग भी नहीं खरीदने चाहिए|
- ऑरगेनिक या नैचुरल रंगों का ही प्रयोग करना चाहिए|
- ज़्यादा पानी बर्बाद नहीं करना चाहिए|
- जोश में होश खोये बिना, इस त्यौहार की कथा, उसके कीर्तन, उसका महात्मय ध्यान में रख इस त्यौहार को मनाना चाहिए|
- सद्भावना के साथ इसका आनंद लेना चाहिए|
- किसी को अस्थमा हो या एलर्जी हो, या कोई रंग लगाने से मना करे तो उसका आदर करते हुए उसकी बातों को मानना चाहिए|
- अगर आपको खांसी, बुखार हो तो आपको किसी पार्टी में जाकर होली खेलनी ही नहीं चाहिए| उस समय आप सबसे जितनी दूरी बनाए रखें उतना अच्छा|
खाकर तुम मावा-मिठाई,
पहनकर तुम मास्क,
कर sanitize अपने कर कमलों को,
रंग लगाने से पहले आस्क,
“कहीं तुम्हें खांसी तो नहीं?”