आजकल ‘पलायन’ शब्द ने सबको चौंका दिया है। हम लोगों ने इस शब्द को जब सुना था, वह समय हिंदुस्तान-पाकिस्तान के पार्टीशन का था। आज के बच्चे इस बारे में ज्यादा कुछ नहीं जानते। लेकिन इधर कुछ दिनों से पलायन शब्द आम आदमियों की ज़ुबां पर आ गया है और हर आदमी चौंक कर पूछ रहा है कि इसकी क्या वजह है और यह कैसी विभीषिका है कि लोग एकाएक अपने घरों के लिए 400-500 किलोमीटर पैदल चलकर जाने को मजबूर हो गए हैं।
सोचने की बात तो है। इस देश में जो बड़े-बड़े शहर हैं वहां पर कामगार की बहुत आवश्यकता है। उन शहरों में छोटे शहरों-गांवों-कस्बों से लोग रोज़ी-रोटी की तलाश में कामगार की तरह पहुंचते हैं और उन बड़े-छोटे उत्पादन केंद्रों में जाकर अपना योगदान देते हैं और चार पैसे कमाते हैं। परंतु यह नहीं भूलना चाहिए कि चार पैसे कमाने वाला आदमी दो वक्त की रोटी खाने के साथ अपने परिवार के लिए भी कुछ पैसे इकट्ठा करके भेजता है ताकि उसके परिवार का भी पालन-पोषण कर सकें। और यह भी नहीं भूलना चाहिए कि यही वह कामगार है जो देश के उत्पादन में बहुत बड़ा योगदान देते हैं। इनके ही बलबूते आज बहुत बड़ी-बड़ी यूनिट्स अपना उत्पादन कर रही हैं और उत्पादन का लाभ सारे देश को मिल रहा है।
उत्पादन और उपभोक्ता का सीधा संबंध है और इसीलिए कहा गया है कि उत्पादन बिना उपभोक्ता चल नहीं सकता और उसी तरह उपभोक्ता को अगर उत्पादन नहीं मिलेगा तो उसका भी जीवन दूभर हो जाएगा। इन सबके बीच में एक कड़ी उन लोगों की है जो इस उत्पादन क्षेत्र में लगे हुए हैं, जिन्हें हम पूंजीपति कहते हैं और जिनकी पूंजी के बलबूते बड़े-बड़े कारखाने चल रहे हैं। इसलिए कामगार काम करते हैं और इन्हीं जगहों पर बैठकर बड़े-बड़े पूंजीपति अपना पैसा लगाते हैं और ऐशो आराम की जिंदगी जी पाते हैं।
आज की इस समस्या को देखते हुए कारखाने बंद हो गए और लोगों को अपना जीवनयापन करने की दिक्कत महसूस हो रही है। कामगार के पास काम नहीं है और उसे रोजी-रोटी कमाने का कोई साधन भी नहीं दिख रहा है। जिसके लिए वो अपना घर-बार छोड़कर बड़े शहरों में आया था। इन पूंजीपतियों ने भी अपना हाथ खींच लिया और उनसे जुड़े हुए ठेकेदार, जिनके पास ये मजदूर काम करते हैं, उन्होंने भी साथ नहीं दिया तो मजदूर बेसहारा हो गए और शुरू हुआ पलायन जिसके लिए कोई भी तैयार नहीं था।
परंतु रोजी-रोटी के लिए सुरक्षा न मिलने के कारण वे वतन वापस जाने के लिए बेकरार हुए और इस हद तक बेकरार हुए कि वे अपने घरों को पैदल लौटने को मजबूर हो गए। यह सब होता रहा और हम देखते रहे। हम कुछ ना कर सके और सब कुछ उनके भाग पर छोड़ दिया गया। अब क्या होगा? क्या ये कामगार वापस लौट कर आएंगे ?अगर सुरक्षा नहीं, रोजी-रोटी नहीं, किसी तरह की सहूलियत नहीं तो ये क्यों वापस आएंगे, आना भी नहीं चाहिए!
अगर उनकी मेहनत से कमाए पैसे, जो आज अमीरों के पास हैं, उसमें से कुछ भी हिस्सा उन्हें इस मुसीबत से बाहर निकलने के लिए नहीं दे सकते तो फिर उन्हें क्यों कल इस रोजी-रोटी के लिए वापस आना चाहिए?
मेरा यह मानना है कि यह ऐसा वक्त है जब हर किसी को अपने बारे में, अपनी सुरक्षा के बारे में सोचने का पूरा अधिकार है। उसे पूरा अधिकार है कि वह अपनी रोजी-रोटी का जुगाड़ करे। जहां पर है वहीं पर रह कर कुछ भी करने के लिए सक्षम है ऐसा उसका मत होना चाहिए। अगर आप ध्यान से देखें तो आज जो कामगार बड़े शहरों में काम कर रहे हैं उनके पास बहुत तरह के तजुर्बे हो चुके हैं। उनको बहुत तरह की ट्रेनिंग मिल चुकी है। वे बहुत तरह के काम करना जानते हैं जिसके सहारे भी जहां है वहीं रह कर कुछ कर सकते हैं। इन ट्रेंड लोगों को अगर इकट्ठा करके उन्हीं के शहरों में कोई कोआपरेटिव संस्थाएं या गांव के लोग मिलकर थोड़ी पूंजी इकट्ठा करके उनकी योग्यता के अनुसार कुछ करने का प्रयास करें तो मेरा मानना है कि सब कुछ संभव है और इन मजदूरों को अपने घर में रहते हुए उतने पैसे की आवश्यकता भी नहीं पड़ेगी जो इतनी मेहनत से मुश्किलों से जूझते हुए घर से दूर बड़े शहरों में कमाते हैं। जो कमाते हैं उसका बहुत बड़ा हिस्सा वहीं पर खर्च कर देते हैं और जो बचता है उसी को भेज पाते हैं, अपने गांव, अपने घर में बच्चों के लिए ।
अगर उसका कोई हिसाब लगाया जाए, कोई गणित बिठाई जाए तो जो पैसा वहां कमाते हैं अगर उसका आधा या एक तिहाई पैसा भी उनको अपने गांव में, अपने शहर में रहते हुए अपने घर में मिल जाए तो शायद वे इस समस्या का, रोजी-रोटी कमाने का हल ढूँढ़ पाएंगे और परिवार के साथ रहकर भी खुशी से अपना जीवन व्यतीत कर पाएंगे।
इस संबंध में ध्यान दें तो हर छोटे-बड़े शहर में सरकार की बहुत सारी योजनाएं चल रही हैं जो शायद लोगों को नहीं मालूम, इसलिए कुछ जागरूक लोग समाज के सामने आएं और लोगों की मदद करें ताकि उन्हें वापस उस विभीषिका का सामना न करना पड़े जो इस समय वे झेल रहे हैं। इसी संदर्भ में यह भी कहना चाहूंगा कि अपनी सरकार आज बहुत ज्यादा मदद करने के लिए उत्सुक है। बैंकों के भी बहुत सारे प्रावधान हैं जहां पर इस तरह की सुविधाएं दी जा सकती हैं जिनकी सहायता से ये लोग अपना छोटा-मोटा काम शुरू कर सकते हैं।
मैं छोटा सा उदाहरण देना चाहूंगा कि बहुत से ऐसे लोग हैं जो सिलाई-कढ़ाई-बुनाई में लगे हैं और ट्रेंड हैं, उनसे मेरा अनुरोध है कि वे किसी तरह से छोटी-मोटी जगहों पर बैठकरअपनी योग्यता को पहचानें जिनके सहारे लोग उनसे लाखों-करोड़ों कमा चुके हैं। उसी हुनर को लेकर कहीं भी बैठकर कुछ ऐसा करें ताकि उनके उस हुनर को उचित मूल्य उन्हीं के गांव में रहकर मिल सके।
मेरी प्रार्थना है परम शक्ति से कि इन लोगों की मदद करें, इनको सद्बुद्धि दे और मेहनतकश लोगों को इस तरीके से स्थान मिले कि वे अपने घर से बाहर न जाना पड़े और अच्छी जिंदगी अपने घर-गांव में रह कर बिता सकें।