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कैसे जलाएं मन के दिए

कैसे बनाएं मन को खुशियों का रोशनदान

 

दिवाली का हमें हर साल इंतज़ार रहता है, रोशनी, रंग, फूल, मिठाइयां और ढेर सारी मुहब्बत लुटाते दोस्त!

पिछली दिवाली ऐन मौके पर मैं बीमार हो गई थी, शरीर में इतनी ताकत भी नहीं थी कि उठकर दिए जला सकूँ या पिछले दिनों मेहनत से की गई अपनी सजावट ही देख सकूँ। हम अक्सर प्लान बनाते हैं, कई दफ़ा वो पूरे होते हैं और कई दफ़ा कोई अनकही मुसीबत आकर सारे मंसूबों पर पानी फेर देती है। कभी अप्रत्याशित खुशियां भी आ जाती हैं, तो जिंदगी ऐसी ही कमाल शै है। जिंदगी में लुत्‍फ भी है तो दुख भी, परेशानियां हैं तो एडवेंचर्स भी हैं। जिंदगी का यह बहुरंगीपन ही इसका जादू है। यह जादू तब है जब हम इसे डिजाइन नहीं कर सकते।

दिवाली आ रही है, कोरोना की सेकंड वेव में न जाने कितने चिराग असमय बुझ गए। हम दूर से अफ़सोस जरूर करते हैं पर असल दर्द और खालीपन वही जान सकता है जो झेल रहा होता है। लगातार किसी न किसी के वक़्त से पहले चले जाने की खबरें मिलती रहीं हैं, ऐसे में जीवन की क्षणभंगुरता का अहसास मजबूती से होता है, जो है यही लम्हा है, अगले पल न जाने क्या होने वाला हो, फिर भी हम फालतू की बातों में उलझे रहते हैं, जैसे कि हमको सदियाँ बितानी हों! इतना सामान जोड़ते हैं, मानों सदा के लिए इस धरती पर रहना हो। सब तो यहीं छोड़ कर जाना होता है, फिर भी इंसानों का मोह काम नहीं होता और यही मोह दुख देता है।

निजी उदाहरण देकर बात कहना ठीक रहेगा… बचपन से अब तक कई बार इतना दर्द सहा कि लगा इससे बेहतर मौत ही आ जाती और दो बार मौत बेहद करीब से छू कर निकल गई। परंतु मौत मांगने से नहीं आती और न ही दुआओं से टलती है। जिंदगी बड़ी ज़िद्दी है, वो गहनतम अंधेरों में भी उम्मीद ढूँढ़ लेती है।  ऐसा भी होता देखते हैं कि जिंदगी कई बार धीमे-धीमे मारते हुए मौत का लंबा इंतज़ार कराती है और कई बार मौत इतनी जल्दी में रहती है कि तैयारी का वक़्त नहीं देती है, मौत क्रूर है, वो कभी नहीं सोचती कि किसका कितना काम छूट गया, किसी के जाने के पीछे कितने दिल टूटेंगे!

जिंदगी का अजीब खेल है कि वह अक्सर अधूरा रखती है लेकिन मौत हर इंतज़ार खत्म कर देती है। क्यों, कैसे, अचानक, ये सवाल घेर लेते हैं, पर सत्य तो ये है कि सबको जाना है, थोड़ा पहले या देर से!

 

ज़िंदगी जंग है, आनंद है, पीड़ा है, प्रेम है, यात्रा है और मृत्यु- मुक्ति, पीड़ा (पीछे छूट गए लोगों की), विछोह है।

 

जिंदगी को मौत तक भरपूर जी लेना ही हासिल है, इससे ज़्यादा हमारे हाथों में कुछ नहीं है, तो फिर फिक्र करने से भी क्या होगा, आनंद कीजिए। नाम, काम, पैसा, शोहरत से पहले आनंद को जीवन का मकसद मानना और उसके लिए जीना सीखिए, जीना शुरू कीजिए, और जो आपके पास है, बाँटना सीखिए। आप जान लेंगे कि इस सुख का मुकाबला नहीं है।

 

इस बार से, रोशन कीजिए दूसरों की दिवाली –

भागदौड़ के बीच जरा, ठहर कर ठंडे दिमाग से सोचिए कि हम अक्सर खुद के लिए बहुत सारी चीजें लेते हैं, दिवाली पर भर-भर के मिठाइयां, पटाखे, उपहार खरीदते हैं। घर को सजाने के लिए नए परदों से लेकर नया फर्निचर, बर्तन, क्रॉकरी, महंगे शो पीस आदि खरीदते हैं। इस बार अपने घरों या वर्क प्‍लेस में काम करने वाले हेल्‍पर्स, सफ़ाई कर्मचारी, ट्रैफिक सिग्नल पर रहने वाले बच्चों के बारे में सोचिए। अपने लिए तो आप हमेशा ही खरीदते आए हैं, इस बार जरा, उनके लिए कोई काम की चीज़ खरीद कर देखिए। देखिएगा, आपको कितने सुख की अनुभूति होगी।

पौधों और रंगोली से सजाएं घर –

महंगे से महंगा शो पीस भी हरियाली का मुकाबला नहीं कर सकता। सर्दी ने दस्तक देनी शुरू कर दी है, नए-नए फूलों की आमद हो रही है – गेंदा, पेटूनिया, गुलाब, हरसिंगार, चम्पा आदि। नए पौधों को लगाने का यह एकदम सही मौसम है, दोस्तों को भी प्लांट्स गिफ्ट करना अच्छा ऑप्शन है। रंगोली के बहुत सारे साँचे और सूखे रंग मार्केट में उपलब्ध हैं, बच्चों को भी अपने साथ रंगोली बनाने को motivate कीजिए। फूलों से भी रंगोली बनाई जा सकती है, शाम को जब आप उस पर दिए सजाएंगी, तब रंग और रोशनी साथ मिलकर अद्भुत छटा बिखेरेंगे।

 

 

नया लेने से पहले पुराना सामान दान कर दीजिए –

अकसर हमारी आदत बन जाती है कि हम घर में सामान भरते रहते हैं जिससे एनर्जी का फ़्लो रुक जाता है। घर का खुला होना जरूरी है, ऐसे में नया फर्निचर लेने से पहले पुराना एक्सचेंज में दिया जा सकता है। हमारे घरों में ऐसा बहुत सारा सामान होता है, जिसे हम सालों से इस्तेमाल नहीं करते हैं, वो हर सफाई के बाद वापस रख दिया जाता है, इस दिवाली वह सामान दान कर दीजिए, हो सकता है कि किसी को उसकी आपसे ज्यादा जरूरत हो। जो आपके काम का नहीं, वह किसी और के जीवन में उपयोगी साबित हो सकता है, जिन जरूरतमंदों को वह सामान देंगे, उनसे दुआएं, प्‍यार मिलेगा वह तो बोनस है ही। जमा करते रहने के बजाय बांटने की आदत होनी चाहिए, तभी सही मायने में त्योहार मनेगा।

 

पहनिए कुछ पारंपरिक –

दिवाली पर अपने पुराने बक्से खोलिए। भारी, ज़री वाले कपड़े ऐसे मौकों के लिए ही होते हैं। पुरानी साड़ी/ लहंगे को टी शर्ट या शर्ट के साथ मिक्स मैच कर के पहना जा सकता है। उस पर करधनी या बेल्ट लगा कर लुक को स्टाइलिश बनाया जा सकता है। लड़कों को भी रोजमर्रा के जींस-शर्ट से अलग कुर्ते, धोती आदि पहनना चाहिए। क्‍योंकि त्‍योहार खास दिन है तो हमारा पहनावा भी खास होना चाहिए। ऐसा करेंगे तो खास महसूस करेंगे, लिखकर रख लीजिए।

 

दिवाली खुशियों का त्योहार है और खुशी का एक फॉर्म्‍यूला यह भी है कि खुशियां बांटने से बढ़ती हैं। कोरोना काल ने समझा दिया है कि जीवन कितना अस्थायी है, ऐसे में जीवन के हरेक क्षण को जीना चाहिए। तो डूब जाइए खुशियों के समंदर में क्योंकि तैरने को डूबना जरूरी है। तो जाइए, इस दिवाली कुछ खास कीजिए, खुद के लिए, अपनों के लिए,आसपास के अपनों के लिए जो आपकी जिंदगी को आसान बनाते हैं।

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