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कागा तेरी सोनै चोंच मढ़ाऊं

हाल ही नेटफ्लिक्‍स पर आई फिल्‍म पेंगुइन ब्‍लूम की कहानी की खूबसूरती यही है कि यह मनुष्‍य के कुदरत और खासकर मनुष्‍येतर प्राणियों के साथ रिश्‍तों को फिर से देखने, समझने और जीवन में उनकी अहमियत को फिर से स्‍थापित करने की जरूरत को बताती है।

हमने अपनी सामाजिकता को केवल मनुष्‍यों तक सीमित कर दिया है, कुदरत के दूसरे प्राणियों को हमने लगभग भुला दिया है, उनके साथ साहचर्य पिछली पीढ़ी की याद में ठहरी दास्‍तानों में है या पुरानी किताबों में। महानगरों के कुछ ही फ्लैटनुमा घरों में यह परंपरा बची होगी कि बालकनी में परिंदों के लिए दाना-पानी रखना ही है। हमारे जीवन में उपयोगिता के बिना जब मां बाप को ही हमने तिरस्‍कार और उपेक्षा देना शुरू कर दिया है तो परिंदों, जानवरों की तो बात ही क्‍या करें।

‘पेंगुइन ब्‍लूम’ नेटफ्लिक्‍स पर आई फिल्‍म है। फिल्‍म में ‘पेंगुइन’ मैगपाई प्रजाति की चिड़िया के लिए किया गया नामकरण है क्‍योंकि वह काली, सफेद दो रंगों की है। सत्‍यकथा पर आधारित इस फिल्‍म का निर्देशन ग्‍लेंडिन इविन ने किया है। ऑस्‍ट्रेलिया का ब्‍लूम परिवार यानी पति, पत्‍नी और तीन बच्‍चे, थाईलैंड यात्रा पर था, एक दुर्घटना घटी कि कैमरून ब्‍लूम की पत्‍नी सैम एक ऊंची बालकनी से गिर गई, और उसको इतनी भारी चोट लगी कि वह व्‍हील चेयर पर आ गई, उसने जीने और अपने होने का उत्‍साह ही खो दिया। तभी उनके जीवन में मैगपाई नस्‍ल की चिड़िया आती है, और वह परिवार और खासकर सैम के जीवन में सकारात्‍मक बदलाव की वजह बनती है। पहले इस घटना पर कैमरून ब्‍लूम और ब्रेडली ट्रेवर ग्रीवी ने किताब लिखी। ब्रेडली ऑस्‍ट्रेलिया के जान-माने और बेस्‍टसेलर लेखक हैं। फिर इस किताब का सिनेमाई रूपांतरण शाउन ग्रांट और हैरी क्रिप्‍स ने किया है। ब्रिटिश अभिनेत्री नओमी वाट्स ने सैम की भूमिका निभाई है। सहयोगी कलाकारों में एन्‍ड्रयू लिंकन और जैकी वीवर उनके साथ हैं।

अपने घर-परिवार के बुजुर्गों से पूछिए, घर में ना हों, तो दोस्‍त-परिचितों के बुजुर्गो से पूछिए कि हमारी दिनचर्या में पचास या सौ साल पहले कितने परिंदों, जानवरों को दाना-पानी देने से लेकर उनसे जुड़ाव का रिश्‍ता था, त्‍योहारों, तिथियों पर उनके लिए क्‍या-क्‍या परपराएं थीं। पता चलेगा कि हमारी हीलिंग का, कुदरत से जुड़ाव का, कुदरत को लौटाने का एक सहज, सरल जीवन उपागम हम कितनी तेजी से अपने जीवन से निकाल बाहर कर रहे हैं। किसानों का जीवन तो इस साहचर्य के बिना संभव ही नहीं है।

पंचतंत्र जैसी हमारी पौराणिक कथाओं में अगर बोलते पक्षी, प्राणी थे तो उसका भी कोई मकसद था। वह इस रूप में डिकोड किया जा सकता है कि सारे समाधान मनुष्‍य के पास नहीं है। कायनात के सबसे समझदार प्राणी होने के मुगालते ने मनुष्‍य का भी अपना नुकसान किया है और कुदरत का भी।

मन या जेहन की हीलिंग सबकी अलग तरह से होती है, इसमें विज्ञान की वस्‍तुनिष्‍ठता नहीं होती, विज्ञान से अतिरिक्‍त प्रेम जीवन के कायनात के ऐसे सुखों, रहस्‍यों, कार्य-कारण से परे की चीजों के आस्‍वाद को बेस्‍वाद बना देता। जैसे आपका किसी से प्रेम करना, कोई धार्मिक, आध्‍यात्मिक आस्‍था होना यह सब व्‍यक्तिगत अनुभवों का क्रीड़ांगन है। कोई कहीं से प्रेरणा पा सकता है, कोई कहीं से, सीखने की, जानने की, हौसले की, गिरकर फिर उठ खड़े होने की। ऐसी ही प्रेरणाओं का काम बेजुबान परिंदे या दूसरे प्राणी कर देते हैं।

हमारी क्‍लासिक प्रेम कथाओं में पक्षी आते हैं, मेघ भी दूत बन जाते हैं, हवा भी संदेसे ले जाती है। ओ हेनरी की कहानी ‘लास्‍ट लीफ’ में पेड़ की एक पत्‍ती जीवन संचार कर देती है।

2007 में एक फिल्‍म आई थी – ‘इनटू द वाइल्‍ड’, निर्देशक थे सीन पैन। सच्‍ची घटना पर आधारित बायोपिक थी। इत्‍तेफाकन यह भी अपने ही नाम की नॉनफिक्‍शन किताब का सिनेरूपांतरण थी। और मजेदार बात यह है कि यह किताब एक पत्रिका के लिए लिखे लेख का विस्‍तार थी। लेख और किताब दोनों ही जॉन करूएकर की कलम से निकले। इस फिल्‍म को यहां इसलिए याद कर रहा हूं कि क्रिस्‍टोफर मैककैंडलेस का जीवन कुदरत और मनुष्‍य के रिश्‍ते को ही नई नजर से देखता है। ‘द कॉल ऑफ द वाइल्‍ड’ नाम से उनके जीवन पर डॉक्‍यूमेंट्री भी बनी थी। फीचर फिल्‍म ‘इनटू द वाइल्‍ड’ कहीं से मिले तो देखिएगा, और अगर किताब पढ़ पाएं तो और भी बेहतर।

अल्‍फ्रेड हिचकॉक को फिल्‍ममेकिंग के उस्‍तादों में माना जाता है, 1963 में उन्‍होने एक फिल्‍म बनाई थी –‘द बर्ड्स’, जिसमें कुछ परिंदे इंसानों पर आक्रमण कर देते हैं। इस संदर्भ की सूचना से ज्‍यादा फिलहाल हमें यहां जरूरत नहीं है। पर 2014 की ए‍क फिल्‍म ‘वाइल्‍ड’ का संदर्भ बिलकुल और पूरी तरह से प्रासंगिक है कि हाल ही तलाक से गुजरी एक युवती खुद को हील करने के लिए कुदरत की शरण लेती है। जीन मार्कवैली निर्देशित इस फिल्‍म का आधार संस्‍मरण थे, जो चेरिल स्‍टेयर्ड ने लिखे, किताब थी – ‘वाइल्‍ड : फ्रॉम लॉस्‍ट टू फाउंड ऑन द पैसेफिक कोस्‍ट ट्रेल’। मुख्‍य भूमिका में रीज विदरस्‍पून की बड़ी तारीफ हुई।

संदेशवाहक तो परिंदे भारतीय फिल्‍मों में भी होते ही हैं, चाहे कभी केवल किरदार के मन का भाव संप्रेषण करने के लिए पक्षी को इस्‍तेमाल किया जाता है। पिंजर फिल्‍म में एक गीत है – ‘उड़ जा काले कावां, तेरे मुंह विच खंड पावां, इसका अर्थ है कि नायिका अपना संदेश पहुंचाने के लिए काले कौअे से कहती है कि उड़कर चले जाओ, संदेशा देकर आओगे तो तुम्‍हारे मुंह में खांड यानी चीनी दूंगी। इसी तरह ‘मैंने प्‍यार किया ’ का गीत ‘कबूतर जा‘ किसे याद नहीं होगा। पर देखने, सोचने वाली बात यह है कि इकतरफा स्‍वार्थपूर्ण संबंध है या दोतरफा आत्‍मीय संबंध, चाहे उसमें परस्‍पर गिव एंड टेक ही क्‍यों न हो।

संदर्भवश इशारा करना बहुत समीचीन है कि खाकसार को स्‍नेहा खानवल्‍कर के एमटीवी के शो के लिए ‘कागा तेरी सोनै चोंच मढ़ाऊं’ और फिल्‍म ‘मैडम चीफ मिनिस्‍टर’ के लिए ‘चिड़ी चिड़ी’ जैसे गीत लिखने का मौका मिला।

मुझे लगता है कि ‘पेंगुइन ब्‍लूम’ की इस कहानी और फिल्‍म की खूबसूरती यही है कि यह मनुष्‍य के कुदरत और खासकर मनुष्‍येतर प्राणियों के साथ रिश्‍तों को फिर से देखने, समझने और जीवन में उनकी अहमियत को फिर से स्‍थापित करने की जरूरत को बताती है। हम अपनी दौड़ों में अपने मूल सिस्‍टम को भुला बैठे हैं। हमारी सारी हीलिंग हमारे मन, तन, आसपास के मनुष्‍यों, डॉक्‍टरों, मनोवैज्ञानिकों, आध्‍यात्मिक हीलरों के बस में नहीं है, इसके कई रास्‍ते, तरीके हमारी बनाई हुई इस दुनिया से बाहर मूल कुदरत के पास भी हैं।

मलिक मो‍हम्‍मद जायसी के ‘पद्मावत’ में हीरामन नाम के तोते को याद कीजिए, उस पात्र की उस कहानी में जरूरत कितनी है, कितना दोतरफा रागात्‍मक संबंध। तो आप समझ जाएंगे कि कुदरत के सारे ही जीव हीरे का मन लिए हुए हैं, कलुषता तो मनुष्‍य मन में है और यह भी जान जाएंगे कि मनुष्‍य जीवन के लिए कुदरत की कृपा कहां रुकी हुई है।

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