Liar’s dice

आज एक बार फिर हम लोग बात करेंगे एक ऐसी फिल्म की जिसके नाम से तो लगता है कि वह एक विदेशी या हॉलीवुड फिल्म होनी चाहिए लेकिन यह फिल्म हिंदी भाषा में है और पूरी तरह से उत्तरी भारत से संबंधित कहानी कहती है I लायर्स डाइस का अर्थ होता है एक झूठे व्यक्ति का पासा I फिल्म की कास्ट के बारे में सरसरी तौर पर जानकारी करने पर फिल्म अपने प्रति केवल एक नाम को देखकर ही उत्साह पैदा कर पाती है और वह नाम है नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी का I इस फिल्म के बारे में बहुत सारे ऐसे तथ्य हैं, जो फिल्म के संबंध में तथा फिल्म बनाने वाले लोगों के संबंध में काफी रूचि पैदा कर देते हैं I कहते हैं कि इस फिल्म को बनाने के लिए बजट की भारी कमी थी और इस फिल्म की निर्देशक गीतु मोहनदास बड़े प्रयास करने के बाद किसी प्रकार से बजट का इंतज़ाम कर पाई थी I फिल्म के बजट को देखते हुए इसकी पूरी शूटिंग 1 महीने से भी कम समय में पूरी की गई थी I गीतु मोहनदास मलयालम फिल्मों में पहले अभिनेत्री के रूप में और उसके बाद निर्देशक के रूप में काफी अच्छा नाम रखती हैं I हिंदी फिल्मों से उनका नाता मुख्य रूप से इसी फिल्म को लेकर ही जुड़ा I इस बात की प्रशंसा करनी होगी कि गीतु मोहनदास द्वारा एक ही फिल्म हिंदी सिनेमा के लिए बनाई जाती है और उस साल 2014 के लिए यह ऑस्कर अवॉर्ड्स में भारत की आधिकारिक एंट्री के रूप में स्थान पा जाती है I यह अलग बात है कि इस फिल्म को शॉर्टलिस्टिंग या नॉमिनेशन नहीं मिल पाया I नवाजुद्दीन सिद्दीकी के फिल्में होने के बावजूद इस पूरी फिल्म में मुख्य भूमिका इसकी महिला किरदार कमला है तथा इस भूमिका को गीतांजलि थापा ने बहुत शिद्दत के साथ निभाया था जिसकी वजह से उन्हें 61 में राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार भी प्राप्त हुआ था I

यह कहानी एक ऐसी महिला, उसकी बच्ची और उस बच्ची की फेवरेट पालतू बकरी की है जो उनके पहाड़ी गांव से निकलकर देश की राजधानी दिल्ली तक की सड़क और रेल यात्रा के दौरान एक अजनबी नवाजुद्दीन की मदद से पैदा होने वाली परिस्थितियों से संबंधित है I कमला का पति 5 महीने से उसके संपर्क में नहीं है और वह उसके संबंध में चिंतित है तथा अपने गांव में काफी लोगों से इस संबंध में पूछताछ करने के बाद भी उसे कोई रास्ता नहीं दिखता है I गांव के बुजुर्ग उसको समझाने का असफल प्रयास भी करते हुए दिखाई देते हैं I फिर वह एक बहुत ही जोखिम पूर्ण कदम उठाती है और अपनी बच्ची और बकरी के साथ अपने पति को ढूंढने का निर्णय करती है I इस बहाने हम लोगों को हिमाचल प्रदेश के किन्नौर क्षेत्र के चितकुल के कुछ थोड़े बहुत परंतु शानदार प्राकृतिक दृश्य देखने को मिल जाते हैं, परंतु मुख्य किरदार के बहुत अधिक मानसिक तनाव में होने के कारण हम लोगों का ध्यान इन दृश्यों पर बहुत ज्यादा जा नहीं पाता है I कमला को सेना से निकाले गए व्यक्ति के रूप में नवाजुद्दीन सिद्दीकी का साथ मिल जाता है और यह पात्र काफी रहस्यमय तरीके से प्रस्तुत किया गया है जिससे हम इस व्यक्ति के अच्छे या बुरे होने के बारे में फिल्म के आखिर तक फैसला नहीं कर पाते हैं I इस नवाजुद्दीन नाम के पात्र को नवाजुद्दीन सिद्दिकी बहुत ही बेहतरीन तरीके से निभा देते हैं, इसमें कोई शक नहीं होना चाहिए I कमला की बेटी मान्या बहुत ही प्यारी है और हमें फिल्म में एक पहाड़ी परिवार की बच्ची के रूप में उसे देखने में काफी अच्छा एहसास होता है I

मैं उन फिल्मों को बहुत अच्छा मानता हूं जहां पर किसी निर्जीव वस्तु को अथवा किसी जानवर को एक किरदार के रूप में दिखाने में निर्देशक और उसकी टीम पूरी तरह से सफल रहते हैं और यहां भी इस फिल्म में मासूम बकरी एक बहुत ही असरदार किरदार के रूप में असर छोड़ जाती है I जगह जगह हमें देखने में आता है कि इस बकरी के कारण सफर करने में या होटल में ठहरने में दिक्कत भी आती है परंतु मां और बेटी बकरी को अपने आप से अलग नहीं कर पाते हैं I बस का कंडक्टर बकरी के कारण मां और बेटी को अपनी बस में बैठे नहीं देता है और इस मजबूरी के कारण ही उन्हें नवाजुद्दीन पर भरोसा करना पड़ता है I कमला और इस अनजान व्यक्ति का संबंध किसी भी अंजाम की तरफ जाता हुआ दिखाई नहीं देता है और शायद फिल्म की मांग भी यही होती है I चिटकुल से शिमला, शिमला से कालका का ट्रेन का सफर, कालका से दिल्ली का बस का सफर- यह फिल्म इन सब यात्राओं के दौरान हमें हिमाचल, चंडीगढ़ और हरियाणा का थोड़ा थोड़ा जायका भी दे देती है I जिन लोगों को ऐसी कहानियां पसंद है, जिनमें किसी सफर की दास्तान कही जाती है, तो उन्हें भी इस फिल्म से थोड़ा रस मिल सकता है I

कमला जब अपने पति की तलाश में इस प्रकार से अलग-अलग शहरों में भटक रही होती है तो दर्शक के तौर पर हम लोग भी उसके इस मिशन की कामयाबी में उसके साथ जुड़ गए प्रतीत होते हैं और चाहने लगते हैं कि जल्दी ही कोई ना कोई सफलता कमला को मिल जाए ताकि उसकी बच्ची भी अपने पिता से मिल सके I दिल्ली में एक सस्ते गेस्ट हाउस में ठहरने से लेकर उनको उस गेस्ट हाउस से निकालने तक का पूरा सीन बहुत अधिक वास्तविकता के साथ फिल्माया हुआ है और वाकई में हम लोग निर्देशक और उसकी टीम द्वारा किए गए काम के कायल हो जाते हैं I गेस्ट हाउस का मैनेजर बकरी को ठहराने के रूप में ₹40 ज्यादा मांगता है और जब नवाजुद्दीन सिद्दीकी की गैर जिम्मेदारी के कारण कमला और उसकी बच्ची को वहां से निकाला जाता है तो वहां के लोग उसकी बकरी को बकाया भुगतान के एवज में रख लेते हैं I जब यह सीन पर्दे पर आता है तो हम लोग भी बहुत अधिक दिल से दुखी हो जाते हैं क्योंकि बकरी बिना कोई संवाद बोले भी इस फिल्म में हमारे अंतर्मन में उतर चुकी होती है I यही कारण होता है कि इस बात का पता लगने पर नवाजुद्दीन सिद्दीकी जैसा पत्थर दिल इंसान भी गेस्ट हाउस के स्टाफ से झगड़ने लग जाता है कि उन्होंने बकाया पैसे के लिए उस बकरी को कैसे रख लिया और बाद में किसी कसाई खाने में भेज भी दिया I

फिल्म के कई दृश्य हमारा ध्यान अपनी और आकर्षित करते हैं तथा बहुत ही कम किरदारों के साथ बनी हुई फिल्म होने के बावजूद सिनेमैटोग्राफी के कारण यह फिल्म काफी दर्शनीय बन गई है I यहां भी एक मजेदार बात यह है कि फिल्म के सिनेमा फोटोग्राफर राजीव रवि को भी 61 वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार में सर्वश्रेष्ठ सिनेमैटोग्राफी के लिए अवार्ड से नवाजा गया और इससे भी ज्यादा इंटरेस्टिंग बात यह है कि राजीव रवि गीतु मोहनदास के ही पति हैं I किसी इंटरव्यू के दौरान राजीव ने बताया था कि इस बात से उन्हें कोई ज्यादा छूट नहीं मिल गई थी कि यह उनकी पत्नी की ही फिल्म है I वाकई में हिमाचल के प्राकृतिक सौंदर्य, बच्ची और बकरी के बीच के अंतरंग संबंध, नवाजुद्दीन सिद्दीकी के चेहरे पर कठोरता के भाव, रेल और बस की यात्रा के दौरान अन्य यात्रियों के संबंध में बारीक बातें तथा बाद में दिल्ली के जामा मस्जिद या अन्य स्थानों के दृश्यों को फिल्माने में राजीव रवि अपने आप को पूरी तरह डूबा लेते हैं I

फिल्म का क्लाइमैक्स काफी अजीब है और इसकी खास बात यह है कि हम इस क्लाइमेट से कई प्रकार के विश्लेषण कर सकते हैं I दर्शकों को आखिर में फिल्म की कहानी के संबंध में अपने खुद का विश्लेषण करने का मौका मिलता है और उनमें से कुछ लोग इसे नवाजुद्दीन सिद्दीकी के अच्छेपन के रूप में भी देख सकते हैं, जबकि कुछ लोग उसे ही मुख्य विलेन भी मान सकते हैं I फिल्म के अंत के बारे में ज्यादा विस्तार से बात करके मैं आप लोगों के लिए इस समीक्षा के माध्यम से फिल्म में बनाई गई आपकी रूचि को कम नहीं करना चाहता I यह जरूर कहना चाहूंगा कि 104 मिनट अवधि की यह फिल्म हमें काफी कुछ सोचने पर मजबूर कर देती है और सबसे बड़ी बात जो हमारे सामने आती है कि पहाड़ों में अपने गांव को छोड़कर मैदानों में मजदूरी करने वाले लोगों के प्रति उनके दलालों और उनके मालिकों की किसी प्रकार की कोई जिम्मेदारी नहीं होती है और उनके परिवार बहुत ही अनिश्चित जिंदगी बिता रहे हैं I अपने परिवार को अच्छी जिंदगी देने के लिए अपने प्राकृतिक माहौल को छोड़कर बड़े शहरों की प्रदूषण की जिंदगी में गुमनाम होकर जीने वाले और मरने वाले लोगों की कहानी कमला के पति के रूप में कही गई है जिसका फिल्म में एक भी फ्रेम नहीं है और निश्चित रूप से जरूरत भी नहीं है I अंत में हमें यह भी अंदाजा ही लगाना पड़ता है कि क्या मां और बेटी अपने पहाड़ी गांव में वापस लौट गए हैं कि नहीं I यदि आप एक अच्छा और अलग प्रकार का रियल भारतीय सिनेमा देखना चाहते हैं तो यह फिल्म आपके लिए है I

फिल्म के नाम का फिल्म से संबंध आप अपने लिहाज से खुद कर सकते हैं परंतु मैं इतना बता सकता हूं कि जब भी नवाज़ुद्दीन सिद्धकी पर फिल्म में आर्थिक संकट आता है तो वह अपनी चालबाजी से पासे का गेम खेल कर कुछ पैसे कमा जाता है I निर्देशक की फिल्म पर पकड़ और हिमाचल से राजधानी तक का मां बेटी और बकरी का सफर निश्चित रूप से फिल्म को बहुत ऊपर के स्तर पर ले जाते हैं और फिल्म की अनेक बारीकियां हमारा ध्यान अपनी तरफ खींचती हैं I मुख्य किरदारों के अलावा भी अन्य लोगों ने अपने अपने काम को अच्छे से अंजाम दिया है और सारी शूटिंग वास्तविक स्थानों पर जाकर ही की गई है, यह फिल्म देखने से पूरी तरह स्पष्ट हो जाता है I फिल्म मेकिंग सीखने वाले लोगों के लिए यह एक अच्छा दस्तावेज है और यह देखकर बहुत खुशी होती है कि इस प्रकार के पहलुओं पर जोखिम उठाकर फिल्म बनाने वाले लोग हमारे देश में मौजूद है I यह देखकर भी बहुत दुख होता है कि राष्ट्रीय पुरस्कार मिलने के बाद भी गीतांजलि थापा के पास पिछले 7 साल में बहुत ज्यादा काम नहीं है I

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