शेरलॉक होम्स की छोटी बहन इनोला का किरदार लेखिका नैंसी स्प्रिंगर की अपनी कल्पना और रचना है। इस सिरीज में उनके पहले उपन्यास ‘द इनोला होम्स मिस्ट्रीज : द केस ऑफ मिसिंग मारक्वेस’ के अडाप्शन के रूप में बनी फिल्म पिछले दिनों सीधे ही नेटफ्लिक्स पर आई है, नाम है ‘इनोला होम्स’…
शेरलॉक होम्स को कौन नहीं जानता? मुझे यकीन है कि आप तो जानते ही हैं। तो हम सब जानते हैं कि सर आर्थर कानन डायल ने शेरलॉक होम्स को रचा था। उनके चरित्रों को लेकर बाद में कई लेखकों ने रचनाएं लिखीं। इसी सिलसिले में शेरलॉक की छोटी बहन इनोला का किरदार लेखिका नैंसी स्प्रिंगर की अपनी कल्पना है। आर्थर ने शेरलॉक को लेकर 56 कहानियों के साथ जहां चार उपन्यास लिखे थे, पर नैँसी 2006 में इनोला को लेकर अपने पहले उपन्यास के प्रकाशन से शुरू करके अब तक छह उपन्यासों की सिरीज रच चुकी हैं।
इस बेहद सफल सिरीज के पहले उपन्यास ‘द इनोला होम्स मिस्ट्रीज : द केस ऑफ मिसिंग मारक्वेस’ के अडाप्शन के रूप में बनी फिल्म पिछले दिनों सीधे ही नेटफ्लिक्स पर आई है, नाम है ‘इनोला होम्स’। इसके निर्देशक हैं – हैरी ब्रेडबियर, स्क्रीनप्ले लिखा है जैक थ्रोन ने। वार्नर ब्रदर्स पिक्चर्स इसे थिएटर में रिलीज करने वाला था, पर कोरोना के कारण नेटफ्लिक्स को वितरण के अधिकार दे दिए गए।
फिल्म की कहानी का सूत्र यह है कि इनोला को अपने सोलहवें जन्मदिन की सुबह पता चलता है कि उसकी मां इडुरिया उसके लिए जन्मदिन के तोहफे छोड़कर यकायक घर से गायब हो गई है, दोनों भाई माइक्रोफ्ट और शेरलॉक शहर में रहते हैं। इनोला मां को ढूंढ़ने निकल पड़ती है। वहीं, उपकथा यह है कि बासिलवेदर के किशोर राजकुमार विस्काउंट ट्वेक्सबरी के पिता की हत्या हो गई है, वह अपने महल से भाग जाता है। मां को ढूंढ़ती इनोला और राजकुमार एक ही ट्रेन में सवार हो जाते हैं। यह कहानी और फिल्म दोनों की सहयात्रा है। दोनों के अपने अतीत हैं, अपनी अलग मंजिलें और अपने मिजाज और तेवर भी।
अपनी मां को ढूंढ़ते हुए जब इनोला लंदन में इत्तेफाकन अपनी पहली मार्शल आर्ट टीचर मिस ग्रेस्टन से मिलती है तो वह इनोला से कहती है- ‘अगर तुम्हें लंदन में रहना है तो टफ बनो, बहादुर बनो। अपनी ज़िन्दगी बनाओ, पर यहां किसी को ढूंढ़ो मत, अगर ढूंढ़ना है तो खुद को ढूंढ़ो।’ ग्रेस्टन हर बड़े शहर के लिए कह रही हो जैसे, नई सदी का कड़वा जरूरी सच चुपके से कह दिया गया जैसे। अपने आरंभिक शिक्षकों की बातें हम बेकार किस्म के किताबी पाठ मानकर भुलाने लगे हैं तो उसी अनुपात में जीवन के सुकून भी हमने खो दिए हैं, हमारे जीवन के तथाकथित बाकी हासिल चाहे कितने ही बड़े क्यों ना हों।
परवरिश करते हुए, इनोला की मां उसे कहती थी, ‘दिन की शुरुआत हमेशा इतिहास पढ़ने से करनी चाहिए।’ यह वाक्य अपने आप में इसलिए बड़ा और अर्थपूर्ण है कि इतिहास को दोधारी तलवार कहा जाता है, हमारे पुरखों यानी मानवजाति ने क्या किया, वो जो किया, उसके नतीजे क्या निकले यानी क्या सबक लें कि ऐसा करना अच्छा है और ऐसा करने के बुरे नतीजे आए, वह ना करें। वहीं, उसकी मां की यह सीख भी यादगार है कि ‘कभी-कभी कुदरत को जो करना है, उसे वो करने दो।’ यानी खुद को धारा के साथ बहने देना। इसे मैं इस तरह से लेता हूं कि जब हम लोग सब कुछ डिजाइन या तय करने की जिद में अपना चैन खो बैठे हैं, यह जीवनसूत्र शायद हमें, थोड़ा ठहरकर, सोचने को मजबूर या प्रेरित करें कि कभी-कभी हमको कुदरत की योजना में यकीन करते हुए जीवन का सुख लेना चाहिए।
फिल्म में फ्लैशबैक में दिखाया गया है कि इनोला की मां उसे शतरंज सिखाते हुए कहती हैं, ‘एक ऐसा वक़्त आएगा, जब तुम्हें मुश्किल फैसला लेना होगा, और उस समय तुम्हें पता चलेगा कि तुममें कितनी हिम्मत है, तुम जो सही है, उसके लिए कितना जोखिम उठा सकती हो!’
कुछ उपन्यास अपने सूक्तिवाक्यों के लिए याद किए जाते हैं, मुझे लगता है कि यह सूक्तिपरक संवाद भी नैंसी के उपन्यास से ही लिया गया होगा, जब बासिलवेदर के राजकुमार की दादी कहती हैं, ‘कोई भी काम सही करना हो तो खुद ही करना पड़ता है।’
मिली बॉबी ब्राउन ने इनोला की भूमिका निभाई है। उनकी उम्र वही है जो फिल्म में इनोला के किरदार की है। दिलचस्प बात है कि केवल सोलह साल की मिली फिल्म के निर्माताओं में भी शामिल है।
उन्नीसवीं सदी के अंतिम दिनों में इंग्लैंड में कैसे अभिजात्य परिवारों की लड़कियों को ‘प्यारी बहू’ बनने की ट्रेनिंग दी जाती थी, खाने, पहनने, चलने, बोलने और सोचने तक के दायरे, सलीके और तमीज की इस ट्रेनिंग को फिल्म में देखना अलग ही अनुभव है।
यहां बताना जरूरी लग रहा है कि फिल्म में शेरलॉक के चित्रण की कुछ खास बारीकियों जैसे अंतिम दिनों में उदार, भावुक हो जाने जैसी बातों के लिए इनोला के निर्माताओं पर शेरलॉक के अधिकार रखने वाले कानन डायल के उत्तराधिकारियों की ओर से मुकदमा किया गया है। जिसका अंतिम फैसला होना बाकी है।
यहां रुककर सोचने की बात है कि जासूसी कथाएं रहस्यकथा के जॉनर का विस्तार हैं, रहस्य की दुनिया हमेशा दिलचस्प होती है, नएपन के जादू, रोमांच से भरी हुई। अज्ञात संसार भी कई बार रहस्य बुनता है, मानव मन जैसे अनसुलझी गुत्थी है ही, साइकोलॉजिकल थ्रिलर उसी से निकला लोकप्रिय जॉनर है। मानव मन के अज्ञात रहस्य आंखों से दिख सकने वाले रहस्यों से ज्यादा जादुई होते हैं, पर वे किताबों में ज्यादा दिलचस्प लगते हैं, शायद इसलिए कि उनका जादू पढ़े जाने में कहीं ज्यादा है। कभी-कभी ही कोई काबिल निर्देशक उसे पर्दे पर ठीक से उतार पाता है, उतार दे तो वह जादू हमारे जेहन पर लंबे समय तक रहना लाजिम ही है।
हिंदी कहानियों की दुनिया में कथादेश पत्रिका ने कुछ साल पहले ऐसी पहल की थी कि नई रहस्य रोमांच की कहानियां लिखी जाएं, प्रतियोगिता रखी गई, कहानियां चुनी गईं, बड़ी इनामी राशि वाले इनाम दिए गए, फ्रेंच में अनुवाद होना था। ऐसी लगातार कोशिशें हिंदी में इस जॉनर को बेहतर बना सकती हैं, बनाएंगी।
और आखिरी बात, शेरलॉक होम्स की तुलना भारत में ब्योमकेश बख्शी और फेलूदा से ही हो सकती है। जाहिर है कि उनकी बहनों के किरदार लिखने का खयाल इनोला दे रही है, कोई लेखक या लेखिका अगर लपकना चाहें तो। और सुरेंद्र मोहन पाठक जैसे हमारे हिंदी लेखकों के यहां ऐसे कई दिलचस्प किरदार हमें मिल जाएंगे, जिन्हें सिनेमाई रूप दिया जा सकता हो, बशर्ते हर बाहरी चीज को सोना और घर के हीरे को भी पीतल समझना हमारी आदत न बन गया हो!