मिल जा कहीं समय से परे

सलमान खान की एक अचर्चित सी फिल्‍म ‘वीर’ में गुलजार साहब के लिखे गीत ‘सुरीली अखियों वाले’ की यह पंक्ति सालों से मेरे जेहन में अटकी हुई है। पर क्‍या ये मुमकिन है? क्‍या यह महज एक दार्शनिक खयाल है?

हमारी देखी, सुनी, पहचानी व्‍यवहारिक सच्‍चाई तो यही है ना कि देश और काल में ही किसी से मिलना हो सकता है, सब कुछ देश और काल में ही घटित होता है। हां, प्रेम की काव्‍यात्‍मक अतिरंजना के लिए बिंब तो अप्रतिम है ही, और इसके गुलजार साहब बेशक मास्‍टर पोएट हैं।

समय को विज्ञान, खास तौर पर भौतिकशास्‍त्र, ने एक कल्‍पना मात्र ही करार दिया है, एक इमेजनरी अवधारणा जो हमने अपनी सुविधा के लिए बनाई है। वैसे समय और देश यानी दिक, काल की अलग-अलग अवधारणा के भौतिकशास्‍त्र स्‍पेस के तीन और समय का एक आयाम लेते हुए स्‍पेसटाइम यानी दिक्‍काल की एक चतुर्आयामी इकाई मानता है। यानी समय है भी तो दिक से अलग उसकी पृथक सत्‍ता यानी अस्तित्‍व नहीं है।

First Edition,1895

समय लांघना  कवियों का वह मनपसंद मैटाफर है जिसके जरिए सदियों से कवियों ने लाखों बातें कही होंगी। वैज्ञानिक तो एचजी वेल्‍स (1866 – 1946) की कल्‍पना के बाद टाइम मशीन बनाने की जद्दोजहद में लगे ही हुए हैं। याद दिला दें, 1895 में उनका यह नॉवेला लंदन से प्रकाशित हुआ था, यह टाइम ट्रेवल की धारणा का ही एक रूप था, शायद इसका सबसे प्राचीनतम उल्‍लेख महाभारत का ही है, जब एक राजा रैवत काकुदमिन अपनी पुत्री रेवती के साथ सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा से मिलने इसलिए स्‍वर्ग जाते हैं कि अपनी बेटी के विवाह के लिए राय-मशविरा कर सकें क्‍योंकि उन्‍हें लगता है कि वह इतनी सुंदर, सुयोग्‍य है कि धरती पर तो उसके लायक वर ही नहीं है, तो ब्रह्माजी के पास पहुंचे, वे गंधर्वगान में व्‍यस्‍त थे। तत्‍पश्‍चात ब्रह्मा जी के सामने अपनी परेशानी रखी तो जवाब मिला कि जितनी देर आपने गंधर्वगान के समय प्रतीक्षा की, धरती के 27 चतुर्युग बीत चुके हैं, अब धरती पर विष्‍णु के अवतार कृष्‍ण और उनके सखा बलराम हैं, उनमें बलराम रेवती के लिए उपयुक्‍त हैं। और जब वे पुत्री सहित लौटकर धरती पर आते हैं, तो पता चलता है कि वास्‍तव में कई युग बीत चुके हैं, रेवती का विवाह बलराम संग संपन्‍न करवाते हैं, और निश्चिंत होकर हिमालय की यात्रा पर चले जाते हैं। बौद्ध, जापानी, यहूदी परंपराओं में भी ऐसे टाइम ट्रेवल के उदाहरण मिलते हैं।

उन्‍नीसवीं सदी के पूर्वार्द्ध में शायद टाइम ट्रेवल को लिटरेरी टूल की तरह काम लिया जाने लगा, चार्ल्‍स डिकिंस की ‘ए क्रिसमस कैरोल’ इस समय की उल्‍लेखनीय रचना है। इस दौर के कई लेखकों ने टाइम ट्रेवल के लिए डिवाइस की भी कल्‍पना की, पर एचजी वेल्‍स ने जिस उपकरण की कल्‍पना की, वह सर्वाधिक लोकप्रिय हुआ। वेल्‍स की विज्ञान कथा में इंग्‍लैंड का एक वैज्ञानिक टाइम ट्रेवल करने का उपकरण बनाने में सफल हो जाता है।

Released in 1960

फिर इस नॉवेला पर अमेरिका में 1960 में जॉर्ज पल के निर्देशन में फिल्‍म भी बनी, जिसमें मुख्‍य भूमिका में रहे रॉड टेलर और एलन यंग। फिल्‍म बेहद सफल रही। वहीं, टीवी और कॉमिक सिरीज में भी सफल रूपांतरण हुए।

1995 में जब रॉबर्ट जैमेकिज निर्देशित ‘बैक टू द फ्यूचर’ फिल्‍म आई, इसे सर्वकालिक बेस्‍ट साइंसफिक्‍शन फिल्‍मों से एक माना गया। यह टाइम मशीन से भूतकाल में जाने की कहानी थी कि पीछे जाकर बदलाव कर दिए जाएं और उससे आगे का यानी वर्तमान जीवन बदल जाए। फिल्‍म के इस खास संदर्भ में पीछे जाने के मामले में ‘द ग्रैंडफादर पैराडॉक्‍स’ भी दिलचस्‍प है कि पीछे जाकर अपने ग्रैंड पैरेंट्स को मारा जा सकता है क्‍या? यह फिल्‍म इतनी खास मानी गई कि इसके दो सीक्‍वल भी बने।

एचजी वेल्‍स के नॉवेला के फिल्‍मीकरण के साथ एक और दिलचस्‍प मसला जुड़ा है कि उनके पड़पोते साइमन वेल्‍स ने 2002 में रिलीज इसका रीमेक डायरेक्‍ट किया। दुनिया में ऐसे उदाहरण बहुत कम होंगे कि केवल 84 पृष्‍ठों का टैक्‍स्‍ट इतना लोकप्रिय हुआ हो, चर्चित हुआ हो, मौलिक विचार के लिए सतत महत्‍वपूर्ण बना रहा हो, बार-बार, अलग-अलग रूपों में एडाप्‍शन होते हों।

हमारी समय की अवधारणा का प्राय: आधार आईंस्‍टीन का सापेक्षिता का सिद्धांत है। उन्होंने समय को एक भ्रम या सापेक्ष अवधारणा के रूप में माना, समय स्‍पेस का चौथा आयाम है। और दूरी को समय से मापने की अवधारणा में टाइम ट्रेवल का राज छुपा है। देखा जाए तो यह मनुष्‍य की भूत, भविष्‍य को जानने और नियंत्रण करने की लिप्‍सा, लालसा का ही नया अध्‍याय कहा जा सकता है। और कभी यह संभव हो गया तो इसके क्‍या और कितने भयावह परिणाम होंगे, मेरे तो इस कल्‍पना मात्र से ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं।

और ऐसा कैसे संभव है कि हम दिक्‍काल और टाइम मशीन पर बात करते हुए स्‍टीफन हॉकिंग को याद न करें। स्‍टीफन ने पहले तो टाइम मशीन की संभावना से इनकार किया था पर अंतिम किताब ‘ब्रीफ आंसर्स टू द बिग क्‍वेश्‍चंस’ में कहा कि कभी भविष्‍य में टाइम ट्रेवल संभव हो सकता है। इतना संभव कि उन्होंने ईश्‍वर की संभावना से ज्‍यादा संभाव्‍य माना टाइम ट्रेवल को। जब कभी भौतिकी की सात आयामी दुनिया वाली एम थ्‍योरी को आधार मिलेगा, ऐसा होना संभव है।

मानवजाति ने चाहे सुविधाजनक आविष्‍कार के रूप में समय की कल्‍पना की हो, पर वह जीवन का जरूरी अंग बन गया, दो प्रमुख समय विभाजन हुए, ईसा पूर्व यानी BC (Before Christ) और ईस्‍वी सन् यानी AD (After The Christ)। विचित्र बात देखिए कि 4 ईसा पूर्व में ईसा मसीह जन्‍मे, और चार साल बाद को टर्निंग पॉइंट या समय की विभाजक रेखा माना गया। भारत और दुनिया का इतिहास बताता है कि कई संवत् बने, राजाओं ने इसे भी प्रतिष्‍ठा का विषय मान लिया, और अपने नाम से संवत् चलाए। भारत में शक संवत् और विक्रम संवत् नामक दो मुख्‍य संवत् प्रचलन में हैं। यहां इशारा भर करना काफी होगा कि कैसे भारत में समय-विभाजन को लेकर युग, मन्‍वंतर, कल्‍प आदि की परिकल्‍पना की गई है, और दुनिया में कैसे सूरज और चांद को देखते हुए अलग-अलग महीने माने गए हैं। उस विस्‍तार में जाना इस लेख की निर्धारित शब्‍द सीमा में मुमकिन नहीं, उस पर कभी अलग से बात की जाएगी।

समय की इस चर्चा के बाद आप जरूर सोचेंगे कि साहिर लुधियानवी ने क्‍यों लिखा :

वक्‍त ने किया, क्‍या हसीं सितम,

तुम रहे ना तुम, हम रहे ना हम।

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