मीठी फ़रवरी : चैताली थानवी की लिखी

पीहू जिसके लिए ठहराव ही जीवन है और आकाश जो एक जगह रुक नहीं सकता| दोनों दोस्त मिलकर एक शर्त लगाते हैं फिर क्या होता है देखें!

 

फ़रवरी की ठंड भरी रात को जैसलमेर में तेज़ हवाएँ चल रही थीं| लाइब्रेरी की खिड़कियाँ एक-दूसरे से हवा में टकराते हुए ज़ोर-ज़ोर से आवाज़ कर रही थीं|

लगता है जाते-जाते सर्दी बड़ा झटका दे  जाएगी|

पीहू ने सोचा और ओढ़ी हुई ऊन की shawl को थोड़ा और कसकर ओढ़ लिया| वो खिड़की बंद करने के लिए कुर्सी से उठी लेकिन उसे अचानक दाँत में तेज़ दर्द हुआ और वो वापस बैठ गयी| तभी धीरु काका वहाँ आए और उन्होंने खिड़की का दरवाजा बंद करते हुए बोले-

गुड़िया अब घर जा| हवाएँ शुरू हो गयी हैं| आज मैं ताला लगा लूँगा लाइब्रेरी को|

धीरु काका लाइब्रेरी का ध्यान रखते थे| लगभग उनकी रिटायरमेंट की उम्र हो गयी थी लेकिन उनकी जगह अब तक कोई आया नहीं था| पीहू उनके लिए उनकी गुड़िया ही थी| वो पीहू का ध्यान रखते और पीहू लाइब्रेरी का| लाइब्रेरी की चाबी वो उसी को देते| पीहू भी ज़िम्मेदारी से लाइब्रेरी का ध्यान रखती| पीहू ने ना में सिर हिलाया और बोली-

नहीं काका! रोज़ मैं ही बंद करती हूँ लाइब्रेरी को, तो आज भी मैं ही करूंगी|

फिर वो रजिस्टर में काम करने लगी| उसमें देखकर वो अपनेआप से बुदबुदाई-

हर बार की तरह इस बार भी एक ही defaulter है, डॉक्टर आकाश कपाड़िया| कभी वक़्त पर किताबें वापस नहीं करता… कहता है फैज़ या फराज़ थोड़ी ही किसी टाइम लिमिट में समझ आते है| डॉक्टर होकर भी वक़्त की कदर नहीं है उसे|

ये कहते हुए पीहू ने register बंद किया| अभी कुछ महीने हुए थे आकाश का यहाँ ट्रान्सफर हुए| जिस महीने उसका जैसलमेर के अस्पताल में ट्रान्सफर हुआ उसी महीने पीहू की माँ की दाढ़ के दाँत में दर्द हुआ था| आकाश यहाँ नया था और पीहू की माँ उसकी पहली पेशेंट| उसकी और पीहू की माँ की अच्छी जान-पहचान हो गयी थी|

आकाश को सर्दी में भी मटके का पानी पीने की आदत थी तो पीहू की माँ ने उसे सदर बाज़ार में ढूंढ-ढूंढ कर सही मटका दिलवाया था| उस दिन पीहू ने माँ पर बहुत गुस्सा किया था… क्यूँ किसी अंजान के लिए पूरा मार्केट घुमवाया? पीहू को पसंद नहीं होता उसके रूटीन में कोई बदलाव आए| लेकिन आकाश की वजह से ऐसा होने लगा था| वो घुमंतू था| जान-बूझ कर अपनी ट्रान्सफर करवाता रहता था ताकि हर बार उसे नयी जगह देखने का मौका मिला| उसको तो आकाश थोड़ा पागल लगता था| जो कभी एक जगह नहीं रुकता, अपनी किताबें वक़्त पर वापस नहीं करता|

पीहू का घर लाइब्रेरी के पास ही था| वो रोज़ पैदल ही घर जाती| घर जाते वक़्त वो एक तय रास्ते से ही जाती| रास्ते में वही मोड़ आता, वही चौराहे पर पीपल का पेड़, फिर चौधरी स्वीट्स… जहां रुककर रोज़ पाव भर मोतीचूर के लड्डू ले जाती| आज भी वहीं रुकी थी| आज तो वो कुछ खास सजा था| लाल और सफ़ेद रंग के दिल शेप वाले गुब्बारे लगे हुए थे| वो देखकर पीहू हंस दी, फ़रवरी का महीना और वेलेंटाइन का खुमार… हाँ! वो तो आज हर जगह होगा| आज भी उसने पाव भर लड्डू लिए| इच्छा हुई माँ के लिए मावे की कचोड़ी ले, लेकिन फिर सोचा नहीं! माँ कहेगी –

क्यूँ आज मावे की कचौड़ी?ओह! वेलेंटाइन है… इसलिए कहती हूँ शादी कर ले|

 

उन्हें तो बस बहाना चाहिए शादी की बात शुरू करने का| जब भी पीहू आलू के साथ प्याज़ लेना भूल जाती तो माँ कहती-

शादी करती तो ऐसा नहीं होता| कोई होता प्याज़ याद दिलाने वाला|

पीहू अपना पैकेट लेकर दुकान से उतरी, तभी उसके दाँत में फिर दर्द शुरू हुआ|  वो ये सोचकर हँसने लगी जब वो माँ को बताएगी कि उसके दाँत में दर्द है तो माँ उसे भी शादी से जोड़ देंगी|

जब वो घर गयी तो माँ उससे कुछ नहीं बोली| उन्हें ऐसे चुप देख पीहू को हैरानी हुई| माँ ने रोज़ की तरह  पीहू के बैग से खाली टिफ़िन निकाला और उसमें से चॉकलेट के पाँच रेपर्स भी| माँ बोलीं-

इसलिए तू सुबह से मुंह पकड़कर बैठी है|
पीहू सोचती माँ रॉ एजेंट होतीं तो इतनी तरक्की करतीं कि देश के प्रधानमंत्री इनको खुद अवार्ड देते|

सुन कल डॉक्टर के पास जाना दाँत दिखाने| अभी फटाफट हाथ मुंह धोकर आ|

उसने वॉशबेसिन का नल खोला तो उसमें पानी नहीं था| वो चिल्लाई-

माँ! पानी खतम हो गया|

माँ बोलीं-

अब मैं भी क्या-क्या करूँ? शादी करती तो कोई होता पानी की टंकी का ध्यान रखने वाला|

ये सुन पीहू मुस्कुरा दी| चलो! आज का ताना मिल ही गया|

पीहू और उसकी माँ, यही उसका परिवार था और यही उसकी दुनिया| उसे अपनी दुनिया में कोई और नहीं चाहिए था| कॉलेज की पढ़ाई के बाद उसके काफी दोस्त दूसरे बड़े शहर जाकर नौकरी करने चले गए थे| लेकिन वो नहीं गयी| आदत जो हो गयी थी उसे यहाँ की… जैसलमेर के पीले केनवास पर बनी संकरी गालियों की, चौराहे वाले पीपल के पेड़ की, चौधरी स्वीट्स के मोतीचूर के लड्डू की| उसे लगता सब कुछ सही तो है, तो कुछ बदलना क्यूँ? उसे उसकी जॉब पसंद थी, किताबों से प्रेम था उसे और उन्हीं के इर्द-गिर्द रहती थी| जैसलमेर जैसा प्यारा शहर और उसकी माँ, सब कुछ तो  परफेक्ट था| इसे खराब करने का क्या मतलब? कहीं जाने का क्या मतलब? कहीं और जाओ और वहाँ रहते हुए भी अपने पुराने शहर के nostalgia में जीते रहो, क्यूँ? छोड़ा ही क्यूँ फिर शहर अगर इतना ही अच्छा था तो? उसे तो ये nostalgia का concept हिपोक्रेसी लगता था| उसे नहीं छोड़ना था कुछ भी| वो सब चीजों को कसकर पकड़े रखना चाहती थी| उसे डर लगता था, कहीं कुछ उससे छूट ना जाए| उसे नहीं छोड़ना था जैसलमेर, नहीं छोड़नी थी लाइब्रेरी, ना वो चौराहा, ना वो पीपल का पेड़, ना ही चौधरी स्वीट्स के मोतीचूर के लड्डू| वो एक पहाड़ की तरह जीवन जीना चाहती थी, स्थिर, अडिग| पर जीवन तो पहाड़ है नहीं, वो तो बहने का नाम है| क्यूँ बहता है, कैसे बहता है वो जानना मुश्किल है पर जीवन आगे बढ़ता रहता है, वो बहता रहता है| पर पीहू उस बहती नदी पर बांध बनाकर बैठ गयी थी, कि उसे बस अब ऐसे ही रहना है| उसे अब अपने रूटीन में कोई बदलाव नहीं चाहिए था| पर एक बदलाव आ गया था… आकाश|

वो अक्सर लाइब्रेरी आता और काफी वक़्त वहाँ बिताता| एक दिन लाइब्रेरी में बैठे आकाश बोला-

लानत है मुझ पर|

पीहू ने पूछा-

क्यूँ?

जैसलमेर जैसी happening जगह पर होकर भी मैं बोर हो रहा हूँ, लानत है मुझ पर| सोनेर किला… सत्यजित रे की फिल्म में ही देखा है… तुमने तो सच में देखा होगा| मुझे भी देखना है|

जैसलमेर जैसे छोटे और पुराने शहर के लिए happening शब्द पीहू ने इससे पहले नहीं सुना था| वो बोली-

ट्रैवल गाइड वाली बुक ले लो यहाँ से|

ये सुनकर आकाश का मुंह ही उतर गया-

 बुक! अरे! ये बुक वहाँ मेरे अलग-अलग पोस में फोटो थोड़ी खींचेगी| जब भी मैं वहाँ कोई ज़बरदस्त कलाकारी वाली चीज़ देखूं तो मेरे साथ wow थोड़ी करेगी| किले की छत पर बैठकर मेरे साथ मोतीचूर के लड्डू थोड़ी खाएगी| तुम चलो ना प्लीज| मैं यहाँ नया हूँ, कोई मुझे लूट-वूट ले तो?

 पीहू हंस दी, बोली-

 मोतीचूर के लड्डू चौधरी स्वीट्स से ही लेना| छोड़ो मैं लेते चलूँगी|

लंबे वक़्त बाद पीहू लाइब्रेरी और घर के अलावा कहीं और जा रही थी| पहली बार वो किसी काम से नहीं बस यूंही बेवजह जा रही थी|

सोनार किले की छत पर बैठे आधे सूरज को डूबते देख पीहू पास बैठे आकाश से बोली-

 ऐसा नहीं लग रहा जैसे ये सूरज सोने का सिक्का है जो आसमान की गुल्लक में जा रहा है|

ये कहते हुए उसने आकाश की तरफ देखा… वो उसे ही देख रहा था… शायद काफी देर से|

बहुत खूबसूरत है ये|

कहते हुए वो मुस्कुराया, लेकिन उसकी मुस्कुराहट भी अलग थी|
उसकी हर बात में अल्हड़पन होता, मस्ती होती|

उसी शाम मोतीचूर का लड्डू खाते हुए उसे फिर दाँत में दर्द हुआ था| लेकिन काफी वक़्त से वो इसे टाल रही थी और अब ये काफी बढ़ गया था| माँ का ऑर्डर आ चुका था, उसे कल ना चाहते हुए भी हॉस्पिटल जाना था|

सुबह-सुबह पीहू हॉस्पिटल के कॉरीडोर में बैठी थी| आकाश के कैबिन के बाहर एक ही पेशेंट थी, फिर उसकी बारी थी| उसने सोचा इतनी सुबह कोई नहीं आता डेन्टिस्ट के पास| आज माँ ने पीहू को लाइब्रेरी जाने नहीं दिया| उसे सीधा हॉस्पिटल भेज दिया| माँ को तो बड़ा डांटकर लेकर गयी थी आकाश के पास लेकिन जब खुद की बारी आई तो थोड़ा डर गयी थी वो| डेन्टिस्ट की केबिन में पेशेंट के लिए लंबी सी कुर्सी होती, वो दूर से उसे थोड़ी डरावनी तो लगती थी|

जब उसकी बारी आयी, आकाश वॉशबेसिन में हाथ धो रहा था| पास टंगे नैप्किन से हाथ पोंछते हुए उसने बिना मुड़े पूछा-

आंटी के रूट केनाल में कोई दिक्कत आई क्या?

पीहू बोली-

नहीं! कोई दिक्कत नहीं है|

तो फिर…

पीहू हिचकिचाते हुए बोली-

वो… मुझे काम है|

आकाश मुड़ा और बोला-

वो बुक! एक बुक लेने के लिए तुमने appointment लिया| मैं आ रहा था लाइब्रेरी बुक देने| देर करने के लिए सॉरी!

नहीं! नहीं! वो काम नहीं| Actually मुझे दाँत में दर्द है|

ये सुन आकाश मुस्कुराया और उसे बैठने का इशारा किया… उसी लंबी कुर्सी पर| डरते-डरते पीहू वहाँ बैठी| आकाश ने उसे examine किया और बोला-

केविटी बहुत ज़्यादा हो गयी है, filling करनी पड़ेगी| एक दिन में कितनी चॉकलेट खाती हो तुम?

पीहू चिढ़ते हुए बोली-

एक-दो ही…

आकाश फिर मुस्कुरा दिया| फिलिंग करने के बाद वो बोला-

आज तुम्हें एक त्याग करना पड़ेगा| आज एक भी चॉकलेट नहीं खानी तुम्हें| कैसे करोगी तुम?

पीहू बोली-

क्या मतलब? कर लूँगी| इतना भी मुश्किल नहीं है|

आकाश हँसते हुए बोला-

अभी लाइब्रेरी के रास्ते में चौधरी स्वीट्स आयेगा और तुम लड्डू खाने रुक जाओगी| तुम एक दिन क्या सिर्फ यहाँ से लाइब्रेरी जाने तक भी नहीं कर पाओगी कंट्रोल| लगी शर्त|

पीहू बोली-

ठीक है… लगी!

पीहू जाने लगी तो आकाश बोला-

मुझे पता कैसे चलेगा तुमने पूरे दिन कुछ मीठा नहीं खाया? एक काम करते हैं मैं तुम्हें लाइब्रेरी छोड़ता हूँ| वैसे भी मेरी शिफ्ट अभी खतम हो गयी है| देखते हैं कौन जीतता है?

कुछ ही देर में आकाश और पीहू दोनों एकसाथ गाड़ी पर लाइब्रेरी के लिए निकल गए| गाड़ी चलाते हुए आकाश चौराहे से पहले वाली गली में मुड़ गया| वो जैसे ही मुड़ा, पीहू बोली-

ये तो दूसरा रास्ता है|

तो?

मैं तो चौराहे वाले रास्ते से जाती हूँ|

आज इस रास्ते से जाकर देखो| 

पीहू ने आदत बना ली थी, उसी रास्ते से जाने की, वही चौराहा, वही पेड़ देखने की, रोज़ के दृश्य से हटकर कुछ दिखे तो उसे अच्छा नहीं लगता| एक ढर्रे पर चलने वाली ज़िंदगी छोटा सा ही सही, नया मोड़ ले रही थी|

आकाश ने एक मटका कुल्फी वाले को देख गाड़ी रोक ली| उसे यूं अचानक गाड़ी रोकता देख पीहू हैरान हो गयी| वो बोली-

यहाँ क्यू? कुल्फी?… इतनी सर्दी में!

दाँत के दर्द में नहीं खा सकते, बाकी खा सकते हैं| सर्दी में तो अच्छे से जमती है|

आकाश उसके सामने चुस्कियाँ लेकर कुल्फी खा रहा था और वो अपना गुस्सा कंट्रोल किए उसके सामने खड़ी थी| आखिर वो बोली-

देर हो रही है| मैं चलती हूँ|

अच्छा! तो तुम मुझे कुल्फी खाते हुए नहीं देख पा रहीं|

ये सुनकर पीहू वही रुक गयी| कुल्फी खतम कर आकाश ने गाड़ी स्टार्ट की और फूलों की दुकान पर रोक दी| पीहू बोली-

 तुम्हें पता है ना मुझे लाइब्रेरी जाना है| जानबूझकर मुझे देर क्यूँ करवा रहे हो?

 एक मिनट बहुत इंपोर्टेंट है वरना मैं तुमको देर करवाता क्या? ….कभी नहीं|

वहाँ कदम रखते ही अलग-अलग फूलों की मिली हुई महक पीहू के नाक को जैसे गुदगुदा रही थी| वो पीले गुलाब के गुच्छे को उठाकर उसे सहलाने लगी| उनकी खुशबू उसे वापस अपने स्कूल में ले गयी थी| तभी आकाश आया और बोला-

चलें!

पीहू ने पीले गुलाब का गुच्छा वापस रखा और बाहर चली आई| गाड़ी में पीहू आकाश से बोली-

तुम्हें पता है हमारे स्कूल में एक गार्डन था जिसमें पीले गुलाबों की क्यारी थी| मैं रोज़ छुपकर एक गुलाब तोड़ लेती थी| फिर उसे किताब में बंद करके रखती थी|

आकाश हैरानी से बोला-

तुम मस्ती करती थी| तुम!!!!

हाँ! क्यूँ?

बड़ा अच्छा फेंकती हो| एक बार हॉस्पिटल में साइन करने के लिए मैंने तुम्हें अपनी पेन दी थी, तुम वो देने के लिए उसी दिन घर से हॉस्पिटल आयी और तुम छुपकर गुलाब तोड़ती थीं?

अरे! मैं करती थी|

प्रूव करो|

वो कैसे?

कुछ सोचकर आकाश बोला-

गली के सामने वाले गुलमोहर के पेड़ से फूल तोड़कर दो मुझे|

पीहू बोली-

वैसे तो तुम हमेशा ऊटपटाँग बातें करते हो पर आज कुछ स्पेशल लग रहा है| 

मतलब तुम फेंक रही थीं|

आकाश के ये कहने पर पीहू उठी और उस पेड़ की तरफ बढ़ गयी| वो सोचने लगी उनतीस की हो चुकी है अगले महीने तीस की हो जाएगी; क्या उसे ये करना चाहिए? उसने आकाश की तरफ देखा। उसके चेहरे पर मुस्कान थी जो कह रही थी, तुम ना कर पाओगी| वो कूदी लेकिन फूल हाथ में नहीं आया| वो उस वक़्त को कोसने लगी जब उसने आकाश के साथ आने का फैसला किया था| कहाँ वो अभी लाइब्रेरी में सुकून से बैठी होती और कहाँ अभी ये बच्चों के जैसे बीच सड़क में उछल-कूद कर रही है| थोड़ी मशक्कत के बाद एक गुलमोहर का फूल उसके हाथ में आ गया| वो बच्चों जैसे खुश होकर भागते हुए आकाश के पास गयी और बोली-

देखा! ले लिया|

आकाश ने मुसकुराते हुए फूल लेने के लिए अपना हाथ आगे किया तो पीहू बोली-

 ये मेरा है|

पीहू को इतना खुश आकाश ने पहले कभी नहीं देखा था| उसे मुसकुराते हुए, बच्चों जैसी ज़िद्द करते हुए देख, उसे बहुत अच्छा लग रहा था|

अब आकाश और पीहू गुलमोहर के पेड़ को पीछे छोड़ आगे बढ़ गए थे| पर गाड़ी थोड़ी आगे चली ही थी कि अचानक रुक गयी| पीहू ने पूछा-

क्या हुआ?

आकाश बोला-

पेट्रोल खतम हो गया|

ओह गॉड! मैंने कहा था उसी रास्ते से चलते हैं| अभी तक तो मैं चाय पी रही होती लाइब्रेरी में| मेरी ही गलती जो तुम्हारे साथ आयी| आना ही नहीं चाहिए था| क्या करेंगे पेट्रोल पम्प यहाँ से बहुत दूर है| इतनी सुबह ना कोई दुकान खुली होती है ना कोई ऑटो आती है|

आकाश बोला-

शांत, गदाधारी भीम शांत! कुछ करते हैं|

वो क्या करेगा उसे भी नहीं पता था| दोनों फंस तो गए थे| तभी सामने से स्कूल के बच्चों का टांगा आया| आकाश ने उसे हाथ से रोकने का इशारा किया| उसने टाँगे वाले से कुछ बात की फिर पीहू के पास आकार बोला-

चलो बैठो!

क्या! तांगे में? उसमें तो बच्चे स्कूल जा रहे हैं|

पीहू की बात सुन आकाश बोला-

हाँ! तो बच्चे काफी दयालु हैं, हमें छोड़ देंगे| है ना बच्चों!

सब बच्चों ने हँसते हुए हाँ में सिर हिला दिया| पीहू के पास कोई और चारा भी नहीं था| वो बच्चों का हाथ पकड़कर धीरे-धीरे बैठ गयी तांगे में|

पीहू जो थोड़ी देर पहले बेहद परेशान हो रही थी वो अभी बच्चों के साथ आम पापड़ कच्चा पापड़ खेल रही थी| लाइब्रेरी आते ही जब ताँगा रुका तो पीहू ने अपनी घड़ी की तरफ देखा और बोली-

पोने आठ! लेट हो गया| चाबी भी मेरे पास रह गयी| काका बाहर ही खड़े होंगे|

पीहू तांगे से उतरी और सामने खड़े काका को देख कर बोली-

सॉरी काका! देर हो गयी|

काका बोले-

कोई बात नहीं बेटा| रोज़ मैं लेट होता हूँ आज तू हो गयी| दूध-जलेबी खाने का टाइम मिल गया, रुक! तेरे लिए भी जलेबी लाता हूँ|

पीहू ने झट से हाँ में सिर हिला दिया| लाइब्रेरी खोलते वक़्त आकाश पीहू से बोला-

तो तुम शर्त हार रही हो जलेबी खाकर|

पीहू बोली-

शर्त तो लाइब्रेरी पहुँचने तक मीठा ना खाने की लगी थी| अभी तो पहुँच गए| अभी तो खा सकते है|

आकाश मुस्कुरा दिया| रजिस्टर उठाते हुए पीहू बोली-

कब की आ जाती मैं लेकिन तुम्हारे वजह से देर हो गयी|

पर मज़ा आया या नहीं?

पीहू ने कोई जवाब नहीं दिया| उसकी एक ढांचे में बंधी ज़िंदगी आज कुछ खुल गयी थी|

जलेबी और दूध पीते हुए आकाश बोला-

कभी-कभी एक अलग रास्ता लेना अच्छा होता है|

पीहू कुछ नही बोली| उसने जलेबी का एक टुकड़ा लिया, एक आँख बंद कर दूसरी आँख से उस जलेबी के टुकड़े से खिड़की में से निकल रहे सूरज को देखने लगी| सूरज वही था, वही सुबह, वही लाइब्रेरी पर उस जलेबी के चश्मे से सब अलग दिख रहा था| चीजों को हमें बस अलग नज़रिये से देखने की देर है| वही पुरानी फीकी चीजों में चाशनी घुल सकती है|

सुबह का कोहरा छट गया था| लाइब्रेरी की खिड़की के पास लगी पुरानी वॉल क्लॉक में नौ बजे थे| आकाश उठा और बोला-

अच्छा! तो मैं चलता हूँ|

पीहू बोली-

फिर नए रास्तों पर?

हाँ! बूंदी, अगले हफ्ते मेरा ट्रान्सफर हो रहा है वहाँ|

ये सुनकर पीहू का चेहरा उतर गया|

अब वो लाइब्रेरी में अकेली बैठी थी| एक अलग शुरुआत के बाद दिन वही रोज़मर्रा वाला बन गया था| रोज़ की तरह सब काम हो रहे थे| वही रजिस्टर में किताबों की एंट्री फिर धीरे-धीरे लाइब्रेरी में भीड़ का बढ़ना|

पीहू रोज़ की तरह नहीं थी| वो अजीब महसूस कर रही थी| जैसे अभी-अभी कुछ पाकर खो दिया हो| इसी वजह से तो वो किसी बदलाव से परहेज़ करती थी| कुछ वक़्त की खुशी के बाद फिर वही उदासी| तो फिर वो कुछ करे ही क्यूँ? वो बाद में चुभने ही वाला है|

शाम को घर जाते वक़्त पीहू चौराहे से होते हुए सुबह याद करनी लगी| उस याद से उसके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी थी|

घर पहुंची तो माँ ने दरवाजा खोला| पीहू ने रोज़ की तरह अपना पर्स टेबल पर रखा तो वहाँ आकाश को देखकर चौंक गयी-

तुम!

आकाश बोला-

 क्यूँ,  क्या हुआ? नहीं आना था?

नहीं! वो अचानक… कुछ काम था|

आकाश बोला-

हाँ! मुझे लाइब्रेरी की बुक वापस करनी थी| कल आ नहीं पाऊँगा… घर जा रहा हूँ जयपुर| वहाँ से ही बूंदी जाऊंगा|

पीहू ने आकाश से किताब ली और सोचने लगी कि ये किताब तो वो लाइब्रेरी में भी वापस कर सकता था फिर घर क्यूँ? आकाश बोला-

मैं तुमसे कुछ कहना चाहता था| 

उसने अपनी जीन्स की पॉकेट में से लाल गुलाब का फूल निकाला|

सब ट्रान्सफर से भागते हैं| लेकिन मैं अपना ट्रान्सफर खुद करवाता हूँ| सब कहते हैं मैं अजीब हूँ| मैं अकेले भागता रहता हूँ| पर अब मुझे अकेले नहीं भागना| काफी लंबी हो रही है स्पीच… मैं सीधा पॉइंट पर आता हूँ| क्या तुम मेरे साथ भागोगी? मतलब क्या तुम मेरे साथ रहोगी?

 

पीहू को समझ नहीं आ रहा था कि ये हो क्या रहा है? उसकी नज़रें सीधा माँ को ढूँढ़न लगीं| वो किचन में थी| पीहू बोली-

तो तुम ये लेने के लिए रुके थे सुबह उस दुकान पर|

आकाश ने जवाब दिया-

हाँ! पर उस वक़्त दे नहीं पाया|

पीहू का कोई जवाब ना आते देख किचन से माँ की आवाज़ आई-

मेरी चिंता मत कर, मैं आती रहूँगी तुम लोगों से मिलने| आकाश ने कहा वो मुझे वहाँ घुमाएगा भी|

पीहू को गुस्सा आ गया कि यहाँ उसने जवाब नहीं दिया और सब अपना प्रोग्राम तय कर रहे हैं| मतलब माँ को सब पता था|

अगर मैं मना कर दूँ तो?

पीहू के ये कहने पर आकाश बोला-

तो मैं चुपचाप चला जाऊंगा|

वो बोली-

ये नहीं हो सकता, तुम चुप नहीं रह सकते|

क्यूँ नहीं रह सकता?

आकाश के ये पूछने पर वो बोली-

तुम मुझे बस यहाँ से जयपुर तक के सफर में चुप रहकर दिखाओ| साथ चलते हैं, देखते हैं कौन जीतता है? लगी शर्त!

आकाश मुस्कुरा दिया और बोला-

चल लगी!

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