लव इन चौपाटी : चैताली थानवी की लिखी

माला अपनी दीदी के लिए एग रोल लेने चौपाटी जाती रहती है| वहाँ उसे एक लड़का मिलता है| उससे मिलने के बाद माला थोड़ी-थोड़ी बदलने लगती है| क्या ये बदलाव प्यार की शक्ल लेगा? जानिए आगे|

दिन के दो बजे सूरज अपने शिखर पर था और मैं ऑटो में| पैरों में चप्पल, हाथ में एक पैकेट जिसमें से बहता हुआ एग रोल मेरे जामुनी कुर्ते पर की गयी डिज़ाइन को सफ़ेद से पीला कर रहा था, उसे लिए मैं चौपाटी जा रही थी| यहाँ एग रोल बह रहा था और वहाँ मेरा फोन लगातार बजे जा रह था| मैं फोन उठाते हुए बोली-

अरे! तूने फोन क्यूँ किया? तुझे फोन से दूर रहने को कहा है न डॉक्टर ने| हाँ याद है… चार एग रोल… पर इतने खाएगी कैसे? अर्रे! मैं क्यूँ नज़र लगाऊँगी? हाँ बाबा! उसी ठेले वाले से…. अब फोन रख तो मैं लाऊं|

दीदी भी ना! टूटे हुए ही तो थे, खराब थोड़ी थे एग रोल जो बिलकुल  खाने से मना कर दिया| सब कहते हैं pregnancy में होता है… ज़िद्द होती है, किसी चीज़ की तलब होती है, पर इतनी!

चौथा महीना चल रहा था दीदी का| घर पर सब उसका बहुत खयाल रखते, खासकर मम्मी| मैं भी ध्यान रखती| उसे मोबाइल से दूर रखते, उसकी radiation अच्छी नहीं होती है| याद करके दो-तीन चक्कर सोसाइटी के लगवाती, कहीं शरीर अकड़ ना जाए| कभी बिना कहे उसके लिए गोल गप्पे ले आती, कभी एग रोल| अब लगता है मुझसे ही गलती हो गयी| चौपाटी का एग रोल दीदी को इतना पसंद आ गया कि अब रोज़ मुझसे मँगवाती है|

ऑटो रुकते ही मैं उस ठेले वाले के पास पहुंची और बोली-

भैया! देखिये! सारे रोल टूटे हुए निकले| मेरा कुर्ता भी खराब हो गया|

ठेले वाले भैया बोले-

रिक्शा-वीक्षा में टूट गया होगा, दीदी| हमने तो सही दिया था|

तभी एक लड़का वहाँ आया और बोला-

भैया! दस में से पाँच रोल टूटे हुए निकले|

देखा! अब इनको भी बोलो… बोलो! हमने तो सही दिया था| टूटा होगा रिक्शा-वीक्षा में|

ठेले वाले भैया मुस्कुराकर बोले-

आज ट्राफिक ही बहुत है|

लड़का गुस्से में बोला-

रिक्शा में बैठने से पहले ही टूटे हुए थे, मेरी पैंट खराब हो गयी पूरी| रीटा के लिए लेकर जा रहा था| एक भी नहीं खाया उसने| आपको पता है न वो अब कितना particular है|

मैंने मन में सोचा, इसकी भी दीदी प्रेग्नेंट है? ठेले वाले भैया ने कहा-

ठीक है! पहले आपका बनाता हूँ|

ये सुनकर मैं गुस्से में बोली-

मैं पहले आयी… मेरा पहले बनाइये|

लड़का बोला-

देखिये emergency है, मुझे पहले जाने दीजिये|

इस पर ठेले वाला बोला-

हाँ! ये आपसे पहले लेकर गए थे पाकेट|

दोनों मर्दों ने मिलकर एक बेचारी लड़की को धूप में खड़ा कर दिया| फाइनली जब मैं पैकेट लेकर ऑटो रोकने गयी तब तक भी वो लड़का वहीं खड़ा ऑटो का वेट कर रहा था| ये देखकर मुझे बहुत खुशी हुई| मुझे लेट करवा रहा था, देखो खुद को भी कैसे खड़ा होना पड़ा? अच्छा हुआ इसके साथ| फिर ऑटो रुकी पर उस लड़के के लिए|

ऑटो में बैठने से पहले उसने मुझसे पूछा-

आपको कहाँ जाना है? मैं छोड़ दूँ? वैसे भी मेरी वजह से आपको वेट करना पड़ा|

दीदी के कॉल लगातार आ रहे थे और धूप भी तेज़ थी| मैं उस लड़के के साथ ऑटो में बैठ ही गयी|

मैं अपने कॉलेज का इंपोर्टेंट लैक्चर छोड़कर, इस पिघलती गर्मी में, किसी अंजान लड़के के साथ ऑटो शेयर कर रही थी| दीदी मैं तेरे लिए क्या-क्या कर रही थी? ट्रेफिक में ऑटो रुकी तो मेरे दिमाग के विचार भी रुके| तभी वो लड़का अचानक ऑटो से उतर गया| मेरे दिमाग का पहिया फिर घूमने लगा, कैसा अजीब लड़का है? ट्रेफिक में क्यूँ उतर गया? वापस आयेगा या नहीं? ना ही आए तो अच्छा| पर पैकेट तो यहीं पड़ा है उसका मतलब वापस आयेगा|

वो लड़का फुटपाथ की तरफ गया और वहाँ सड़क के किनारे बैठे छोटे से पपी को उसने गोद में उठा लिया| कितना unhygienic होगा वो, मैंने सोचा| वहाँ तक फिर भी ठीक था, वो तो उसे लेकर ऑटो में आ गया|

मैं बिलकुल कोने से सट कर बैठ गयी| मुझे इतना झिझकते देख उसने पूछा-

आपको puppies नहीं पसंद?

मैंने ना में सिर हिलाया तो वो बोला-

आर यू अ कैट पर्सन?

मैंने फिर ना में सिर हिलाया|

ओह! सॉरी|

कहते हुए उसने उसे सहलाकर फुटपाथ पर छोड़ दिया और अपने पैकेट में से एक एग रोल उसे दे दिया| जब वो ऑटो में आकर बैठा तो मेरे मुंह से निकल गया-

रीटाजी गुस्सा नहीं होंगी? एक एग रोल आपने उसे दे दिया|

वो मुस्कुराकर बोला-

मैं उसे मना लूँगा|

फिर मेरी तरफ हाथ बढ़ाते हुए वो बोला-

आनंद, आनंद वर्मा|

इसने अभी-अभी एक आवारा पपी को उठाया था| उसके हाथ में कितने जर्म्स होंगे|

बड़ा हिचकिचाते हुए मैंने अपना हाथ बढ़ाया फिर फट से वापस खींचते हुए बोली-

आ गया|

उस लड़के ने पूछा-

कौन आ गया?

मेरा घर आ गया|

ये सुनते ही रिक्शा रुक गयी| आनंद ने आसपास देखा और बोला-

पर ये तो चौराहा है|

हाँ! बस यहाँ दूसरी गली में मेरा घर आ गया|

कहते हुए मैं रिक्शा से उतर गयी|

अगले दिन कॉलेज में मेरे इंपोर्टेंट लैक्चर मिस करने की वजह से मेरी दोस्त पिंकी मुझसे गुस्सा थी| मैं कल आखिर थी कहां? ये जानने के लिए वो डिटैक्टिव की तरह सवाल पूछे जा रही थी-

कहाँ थी कल?

चौपाटी|

क्यूँ?

एग रोल लेने|

दिन के दो बजे, लू के थपेड़े सहकर तू चौपाटी एग रोल खाने गयी थी?

हाँ!

मैंने झिड़ककर कहा तो वो बोली-

नेट का एंट्रैन्स क्लियर करना है कि नहीं? सुना है अब तो सिर्फ 6 परसेंट बच्चे ही पास होते हैं और तू चौपाटी घूम रही थी… हें!!!! तू अपने मार्ग से भटक रही है, बालिके|

मैंने अपना सिर पकड़ लिया-

ओहो! अपनी मर्ज़ी से नहीं गयी थी वहाँ… दीदी ने बोला था| पता है, आज फिर फोन आया है, कॉलेज से आते वक़्त फिर वही एग रोल लेकर आना| बस फिर से वो ना मिल जाए|

वो कौन?

पिंकी ने पूछा तो मैं बोली-

 कोई नहीं ऐसे ही|

बेटा! अभी तुझे अपने करियर पर कॉन्संट्रेट करना चाहिए| ये चौपाटी-वोपाटी का चक्कर छोड़ दे| मेरी मान, मत जा वहाँ| कहीं कोई दूसरा चक्कर ना शुरू हो जाए| पर खैर मैं जानती हूँ ये युवा अवस्था होती ही ऐसी है|

चुप! अपना ज्ञान देना बंद कर| कोई चक्कर नहीं है और मैं एग रोल नहीं लायी तो दीदी मुझे घर से रूल आउट कर देगी|

सो चौपाटी तो मुझे जाना पड़ा| पर आज वो लड़का नहीं दिखा| मैंने आराम से अपना एग रोल का पैकेट बंधवाया फिर थोड़ा आगे जाकर ऑटो रोकने लगी| वहीं पर मुझे वो लड़का दिख गया| वो भी ऑटो रोकने कि कोशिश कर रहा था| तभी एक ऑटो मेरे आगे आकर रुक गयी| उस लड़के ने ऑटो को देखा फिर मुझे और फिर मुस्कुरा दिया| तो बदले में मैं भी मुस्कुरा दी| उसने बड़ी बेचारी सी शक्ल बनाई हुई थी| शायद बहुत देर से खड़ा था ऑटो के लिए, थक भी गया था| वो थके, वो नाचे, वो बीच सड़क पर कथकली करे मुझे क्या! मुझे तो मेरी ऑटो मिल गयी ना| पर कल उसने मेरी मदद की थी| उसे ऐसे अकेले छोड़ना अच्छा नहीं लग रहा था| आखिर मैंने उस लड़के को आवाज़ लगा ही दी-

सुनिए! आज मैं आपको छोड़ दूँ|

वो थैंक यू कहकर ऑटो में बैठ गया और मैं सोचने लगी, मैंने यह क्यूँ किया!

ऑटो में मैं और वो लड़का दोनों चुपचाप बैठे थे| इस सन्नाटे को तोड़ते हुए लड़के ने पूछा-

आपने कल अपना नाम नहीं बताया? वैसे मेरा आनंद है|

हाँ! मैं… माला|

माला…. nice name| वैसे थैंक यू! पिछले बीस मिनट से ऑटो रोक रहा था| खड़े होने की हिम्मत नहीं थी और रीटा भी काफी देर से wait कर रही है| घर जाऊंगा पता नहीं क्या होगा?

माला बोली-

काफी गुस्से वाली हैं?

नहीं! Actually she is very nice, वो, बहुत अच्छे नेचर की है वो|

नहीं ! मेरे भी कहने का वो मतलब नहीं था| वो तो अच्छी ही होंगी I am sure!

मैं भी पता नहीं क्या कह देती हूँ| ये भी बिलकुल touchy हो गया|

उसकी वजह से रोज़-रोज़ उसके लिए चौपाटी के चक्कर काट रहा हूँ| अब आ ही रहा हूँ तो इच्छा हो रही है, कल काला-खट्टा वाला गोला खाऊँ| मेरा फेवरेट!

मेरा तो नारंगी|

फिर से मेरे मुंह से निकाल गया| वो बोला-

 ठीक है! तो फिर कल दोनों खाएँगे|

रोको! चौराहा आ गया|

मेरे ये कहते ही ऑटो रुकी और मैं झट से उतर गयी| तभी पीछे से आवाज़ आई-

कल गोला पार्टी!!

अगले दिन आखरी लैक्चर कैन्सल हो गया| मौका था जल्दी चौपाटी जाने का पर मैं क्यूँ जाऊँ? मैं नहीं जाऊँगी| मैं लाईब्रेरी में जाकर मेडीवल हिस्ट्री की किताब पढ़ने लगी| तभी मेरे सामने पिंकी आकर खड़ी हुई| वो एक किताब देते हुए फुसफुसाई-

CLAT के सारे पेपर्स हैं इसमें वो भी solved|

मैंने पूछा-

पर तू NET की तैयारी कर रही थी तो फिर CLAT कैसे?

वो बोली-

धीरे बात कर आज लाईब्रेरी में मालती मैडम हैं, बड़ी स्ट्रीक्ट हैं| ये NET का एक्जाम देने के लिए MA में 55 परसेंट चाहिए| मेरे एमए previous में 30 परसेंट आए तो 55 का ऐव्रेज बनाने के लिए कम से कम 80 तो चाहिए जो आर्ट्स में नामुमकिन हैं| मैं क्या कहती हूँ, CLAT भी दे देते हैं|

वो बोले जा रही थी और मैं अपने ही ख़यालों में खोयी हुई थी| मुझसे कोई जवाब ना पाकर उसने पूछा-

क्या हुआ?

कुछ नहीं|

देख तू मुझे दो दिन से परेशान लग रही है| मैं जानती हूँ मैं irritating हूँ पर मैं तेरी दोस्त हूँ| भरोसा कर और बता क्या हुआ?

आखिर मैं बोली-

आज चौपाटी पर गोला खाऊँ या नहीं?

 वैसे तो… मत खा| सुना है उसमें जो बर्फ होती है वो डिस्पेन्सरी के पास….

मैं उसकी बात काटते हुए बोली-

अरे! बात बर्फ की नहीं है, उस लड़के की है|

पिंकी भरी लाईब्रेरी में चिल्ला दी-

लड़का!!!!

उसके चिल्लाने के बाद हमें बाइज़्ज़त लाईब्रेरी से निकाल दिया गया| फिर मैं कॉलेज के गार्डेन की बेंच पर बैठी थी और पिंकी यहाँ से वहाँ, वहाँ से यहाँ चक्कर लगा रही थी| फिर रुककर बोली-

हम दोनों गर्ल्स स्कूल में पढ़े, फिर गर्ल्स कॉलेज में| मोहल्ले में, दुकान पर, बस में हर जगह हमें जब भी कोई लड़का मिलता तो न चाहते हुए भी मुंह से भैया ही निकलता| ऐसे में तुझे सइया कहाँ से मिल गया?

 चुप कर ! कोई सइया नहीं है… बस ऐसे ही मिला था तो ऑटो शेयर की तो अब…

पिंकी बोली-

अब गोला शेयर कर रहे हो, कल ज़िंदगी शेयर करोगे|

रुक!! कहाँ जा रही है तू भी! कहाँ बर्फ का गोला और कहाँ ज़िंदगी? वैसे भी गोला शेयर नहीं करेंगे हम| अलग-अलग ही खाएँगे|

हाँ! अलग तो हो गयी है तू|

पिंकी के इस बात पर मैं उससे बोली-

तूने सही कहा, तू वाकई irritating है|

और वहाँ से चली गयी|

दिन के दो बज गए थे और मैं फिर चौपाटी पर थी| आनंद कहीं नहीं दिखा| शायद जल्दी चला गया हो| चला ही गया हो तो अच्छा है, मैंने सोचा| मैंने एग रोल लिया और ठेले वाले को पैसे देकर मुड़ी, तो सामने देखा, हाथ में दो बर्फ के गोले लिए आनंद खड़ा था|

आपके लिए ऑरेंज वाला|

मैंने अचकचाते हुए उसके हाथ से गोला लिया| हम दोनों साथ-साथ चलने लगे| एक पेड़ की छाया के नीचे खड़े हो गए| उस पेड़ पर टेक रखते हुए वो बोला-

अमरावती में हमारे स्कूल के बाहर गोले वाले खड़े होते थे और रास्ते में तालाब आता था| रोज़ का नियम था, एक काला खट्टा और एक कागज की नाव उस तालाब में| बारिश वाले दिन तो तालाब में गोते खाकर घर वापस जाते थे… बहुत डांट पड़ती थी| पर मज़ा आता था| पर अब बड़े हो गए, बड़े शहर आ गए, बड़ी कंपनी में काम करते हैं| सब बड़ा हो गया है, अकेलापन भी… सॉरी! मैं बोलता जा रहा हूँ!

नहीं! कोई बात नहीं| आप नए हैं शहर में?

उसने हाँ में गर्दन हिलाई| मैं बोली-

मैंने तो बचपन में कभी गोला ही नहीं खाया… टॉन्सिल्स होते थे बहुत| मम्मी खाने ही नहीं देती थी| ट्वेल्थ में कज़न की शादी में खाया था|

अभी आप छोटे हो ना?

उसने पूछा| मैं चिढ़कर बोली-

छोटी नहीं हूँ मैं| MA कर रही हूँ हिस्टोरी में|

फिर भी कॉलेज में हो ना| अच्छी लाइफ है वो भी| ना पैसे कमाने की कोई ज़िम्मेदारी ना घर का बोझ| बस सपने और तुम| कॉलेज में लगता है जैसे ये जो कॉलेज के गेट के बाहर जितनी भी ज़मीन है, जितना भी आसमान है, सब अपना है| हम कुछ भी कर सकते हैं| बस गिटार उठाने की देर है| हम अपने सारे सपने पूरे कर सकते हैं| अगर नहीं कर सकते तो ये सपने आते ही क्यूँ भला? ज़िद्द होती है एक, जो बड़े होते-होते, पैसे कमाते-कमाते खर्च हो जाती है| सपने सैलरी में गुम हो जाते हैं|

उसकी बातें सुनते-सुनते मेरा बर्फ का गोला पिघल गया था| उसकी आँखों में भी कोई बर्फ पिघल रही थी| मैंने उससे पूछा-

आप गिटार बजाते हैं|

 ये सुनकर वो हंस दिया और बोला-

कॉलेज के हर फ़ेस्ट में गाना गाता था| हमारा बैंड था, जिसका मैं लीड सिंगर था और बेस गिटारिस्ट भी| इतने लोगों ने कहा था तब मुझे कि तुम एक दिन बहुत बड़े स्टार बनोगे| विश्वास ही हो गया था इस बात पर| फिर पता चला वो तो छोटे-छोटे सपने के बुलबुले थे जो कॉलेज से बाहर निकलते ही टूट गए|

पर आपकी आवाज़ वाकई अच्छी है|

मेरे मुंह से अपने आप निकाल गया| वो बोला-

थैंक यू! बहुत sad-sad हो गया ना| सॉरी! Actually मेरी लाइफ इतनी भी sad नहीं है जितना मैं बता रहा हूँ| अच्छी जॉब है, अच्छे पैसे हैं, लाइफ सेट है| बस वही नहीं है जो चाहिए था|

मैंने कहा-

आपको पता है कि आपको क्या चाहिए| मुझे तो पता भी नहीं| कभी लगता है लेक्चरर बन जाऊँ, कभी लगता है पेंटर, पर मम्मी कहती है, बैंक की जॉब ही सही है| अब तो लगता है एग रोल का ठेला ही खोल दूँ|

ये सुनकर वो ज़ोर से हंसने लगा| मैं बोली-

बचपन से मेरा कोई एक सपना रहा ही नहीं आपके जैसे| अब आपसे सुनकर गिटार फैसिनेट करने लगी मुझे|

इस पर वो बोला-

आप सीखेंगी गिटार?

नहीं! नहीं! मैं तो मज़ाक कर रही थी| वैसे भी अजीब लगेगा बीच सड़क पर गिटार बजाएँगे तो|

वो बोला-

बीच सड़क पर नहीं मेरे घर पर है गिटार| आइए, आप रीटा से भी मिल लेंगी| उसे आपसे मिलकर बहुत अच्छा लगेगा|

ये सुनकर दिल थोड़ा घबरा गया| क्यूँ? पता नहीं| हम दोनों ऑटो में बैठ गए थे और आनंद के घर जा रहे थे| मेरा दिल तेज़ स्पीड में चल रहा था| ऑटो जलजोग चौराहे पर पहुंचा और मैं बोली-

रुको! मुझे याद आया मम्मी ने काम दिया था तो वो करना है इसलिए आज नहीं आ पाऊँगी|

कहकर मैं उतर गयी| पर ये क्यूँ हुआ? मैंने ये क्यूँ किया? मुझे क्या हो रहा था… कुछ समझ ही नहीं आ रहा था| Actually मेरी किसी लड़के से इतनी फ्रेंड्शिप हुई नहीं ना कभी, इसलिए हो रहा था|

कहते हैं ना, विनाश काले, विपरीत बुद्धि| मेरी भी बुद्धि घास चरने गयी थी जो मैंने ये सब पिंकी को बता दिया था|

तू गयी क्यूँ नहीं रीटा से मिलने?

ऐसे ही|

ऐसे ही कि तू पता ही नहीं करना चाहती थी कि रीटा कौन है? सुन! मैं नहीं चाहती मेरी दोस्त की ज़िंदगी कभी सौतन कभी सहेली जैसी हो जाए| संभल कर रह| इस उम्र में ये भावनाएं आती रहती हैं| तू संयम रख|

उसके ये कहने पर मैं गुस्से में बोली-

ओह, ज्ञान की देवी! मुझे कोई फर्क ही नहीं पड़ता रीटा उसकी कोई भी लगे और मैं इसलिए नहीं गयी क्यूंकी वो लड़का है| उसके घर अकेले कैसे जाऊँ? डर लगता है| वो जो भी हो उसकी बहन, भाभी या कुछ भी हो… मुझे फर्क नहीं पड़ता|

पर पिंकी का दिमाग तो टीवी सीरियल वाले मोड पर चल रहा था| वो बोली-

मामला सीरियस लग रहा है| शायद रीटा उसकी गर्लफ्रेंड ना भी हो… शायद… या शायद वो तुझे बच्ची ही समझता हो… कि छोटी सी तो है कॉलेज में और तू उसके बारे में न जाने कैसे-कैसे सपने देख रही है|

ओए! मैं कोई सपने नहीं देख रही|

अच्छा! तो फिर तुझे उससे मिलने में परेशानी क्या है? एक बार मिल लेगी तो तेरे भी मन में क्लियर हो जाएगा कि उसके बारे में तू क्या फील करती है?

पिंकी कह तो सही रही थी, ये रीटा से मिलना ज़रूरी था| पता तो चले लड़का कैसा है? रोज़ चौपाटी जाती, उससे रीटा के बारे में पूछती तो वो कुछ बराबर नहीं बताता| क्यूँ? पता नहीं| काफी ऐसी चीज़ें हो रही थीं मेरे साथ जिसका कारण मुझे पता नहीं चल पा रहा था| जैसे आजकल बड़ी खुशी से चौपाटी जाती| कॉलेज से निकलने से पहले छोटी सी बिंदी लगाकर निकलती| दो पट्टी वाली चप्पल छोड़कर दीदी की सेंडल पहनती| अब तो मैं कुर्ते से मैचिंग दुपट्टा भी लेने लगी थी| दीदी बहुत हैरान होती मुझे तैयार होते देख|

अब तक हम दोनों ने चौपाटी के सारे ठेले वालों की चाट खा ली थी| उसने मुझे किशोर कुमार के तीन-चार गाने भी सुना दिये थे| मैं उसे अपने कॉलेज के बारे में बताती, वो अपने ऑफिस में चल रही पॉलिटिक्स के बारे में| मैं उसे दीदी और पिंकी के बारे में बताती और वो मुझे अपने पहाड़ी जगहों पर बिताई छुट्टियों के बारे में| पर अब उसकी बातों में कहीं भी रीटा नहीं होती| मैं कभी उसके बारे में पूछती तो वो कुछ बराबर नहीं बताता| शायद वो इतनी इंपोर्टेंट नहीं थी, कोई कज़न होगी या दूर की रिश्तेदार जो रहने आई हो| अगर गर्लफ्रेंड होती तो वो भी मुझसे इस तरह से बात ना करता| रीटा ऐसी पहेली बन गयी थी मेरे लिए जिसे मैं ना सुलझाना चाहती थी, ना उसमें उलझना| भगवान जाने कौन थी ये रीटा?

आज आनंद को चौपाटी आने में देर हो गयी थी| आज ऑटो में भी नहीं आया था वो| आज वो अपनी कार में आया था| आते ही बोला-

सॉरी! तुम्हें काफी देर खड़ा होना पड़ा धूप में| इस कार के चक्कर में ही देर हो गयी| आज ही ली… सीधा शोरूम से आया हूँ|

मैंने हिचकिचाते हुए पूछा-

मतलब रीटाजी को भी नहीं दिखाई कार|

नहीं! पहले यहीं आ गया| मैंने सोचा तुम, मैं और रीटा तीनों मिलकर celebrate करेंगे|

तीनों?

ये सुनकर मैं डर गयी| पर कभी तो सच सामने आयेगा ही तो आज क्यूँ नहीं? मैं उसके साथ कार में निकल पड़ी रीटा से मिलने|

गाड़ी जिस स्पीड में उसके घर के ओर बढ़ रही थी, मेरी heartbeat भी उतनी ही तेज़ हो रही थी| मैं खुद को समझाते जा रही थी… रीटा जो भी हो, मुझे फर्क नहीं पड़ना चाहिए| पिंकी सही कहती है, अभी मेरा करियर बनाने का टाइम है| माँ सही कहती है, बैंक के एक्जाम के लिए अप्लाई कर देती हूँ… मैं ये सोच ही रही थी कि आनंद बोला-

तुम्हें डोग्स बिलकुल नहीं पसंद है न?

तुम्हारे पास है क्या?

मैंने पूछा तो उसने जवाब दिया-

बिल्ली भी नहीं पसंद न तुम्हें?

तुम्हारे पास बिल्ली भी है?

मैंने घबराकर पूछा तो वो हंस कर बोला-

तुम्हें मगरमच्छ भी नहीं पसंद ना?

तुम मेरा मज़ाक उड़ा रहे हो?

नहीं बाबा! खैर तुम जब रीटा से मिलना, तो थोड़ा ध्यान से मिलना… मतलब चिल्लाना मत ज़्यादा| She gets irritated with loud voice.

कहना क्या चाहता है ये? समझता क्या है उसे? पिंकी सही कहती है ये मुझे बच्ची ही समझता है|अब तो सच में मुझे फर्क नहीं पड़ रहा था रीटा कोई भी हो| जल्दी से इसका घर आए और मैं फ़ार्मैलिटि करके निकल जाऊँ| वो बोला-

रीटा नहीं होती ना तो मैं इस शहर में अकेले रहकर पागल हो जाता|

उसकी बातों से ही लग रहा था कि वो रीटा से बहुत प्यार करता था| ठीक है! जो भी है, मुझे यहाँ से फटाफट निकलना था बस| फाइनली उसका घर आया|

उसने घर का दरवाजा खोला और आवाज़ दी-

रीटा! रीटा!

सामने वाले कमरे का दरवाजा खुला और मेरी सांस रुक गयी| उस कमरे से सुनहरे रंग का बड़ा सा डोगी दौड़ते हुए आया और आनंद की गोद में बैठ गया| कहीं और कोई दिख ही नहीं रहा था| मैं रीटाजी को ढूँढ़ने लगी| आनंद बोला-

क्या हुआ?

वो रीटाजी कहाँ हैं?

वो डोगी की तरफ इशारा करते हुए बोला-

ये है रीटा|

मेरी हैरानी में चीख निकल गयी-

ये !!

मेरी चीख से रीटा डर गयी| वो आनंद के पीछे जाकर छुप गयी| वो बोला-

कहा था ना चिल्लाना नहीं… वो डर जाती है| She is pregnant. तो ज़्यादा खयाल रखना पड़ता है|

सॉरी! सॉरी!

कहकर मैं भी ज़मीन पर रीटा के पास आ गयी| आनंद उसे ऐसे सहला रहा था जैसे वो उसकी बच्ची हो| वो रीटा से सच में बहुत प्यार करता था| मैंने डरते हुए अपना हाथ आगे बढ़ाया और उसे सहलाने लगी| ये देख आनंद मुस्कुरा दिया| वो बोला-

तुम्हें पेट्स नहीं पसंद इसलिए मैं तुम्हें इसके बारे में बता नहीं पा रहा था| पर कब तक छुपाता| रीटा मेरी लाइफ का हिस्सा है| अगर हमारे साथ रीटा भी घूमने चले तो तुम्हें बुरा लगेगा?

मैंने मुस्कुराकर कहा-

बिलकुल नहीं! रीटा मेरी भी दोस्त है|

 

पसंद आया तो कीजिए लाइक और शेयर!

आप इसे भी पढ़ना पसंद करेंगे

लेखक की प्रेमकथा : सत्यदीप त्रिवेदी की लिखी

SatyaaDeep Trivedi

एनकाउंटर : कहानी सत्यदीप त्रिवेदी की लिखी

SatyaaDeep Trivedi

होनी : समीर रावल की लिखी

Sameer Rawal

किस्से चचा चकल्लस शहरयार के!!

Charoo तन्हा

उड़ने की कला : चैताली थानवी की लिखी

Chaitali Thanvi

अविनाश दास remembers इरफ़ान ख़ान

Avinash Das