पर्फेक्ट दामाद : चैताली थानवी की लिखी

आज उनसे मुलाकात होगी, फिर आमने-सामने बात होगी… गाना गुनगुनाते हुए मैं पैकिंग कर रहा था| पर मेरा बैग बंद ही नहीं हो रहा था|

मैं बैग के ऊपर चढ़ कर उसे बंद करने की कोशिश कर रहा था और भाई की आवाज़ आए जा रही थी-

जल्दी कर ट्रेन मिस हो जाएगी|

आ रहा हूँ|

मैं चिल्लाया| पर ये कमबख्त बैग बंद ही नहीं हो रहा था| माँ ने इतने मिठाई के डब्बे दिये ले जाने को और सब बच्चों के लिए चॉक्लेट के बॉक्स अलग से| मेरे कपड़े से ज़्यादा तो ले जाने के सामान थे|

इतनी तैयारी तो तब भी नहीं हुई थी जब हम पहली बार प्रीति से मिलने गए थे| अरैंज मैरेज हुई थी हमारी| हम दोनों ही इंजीनियर हैं| मैं सॉफ्टवेयर इंजीनियर और प्रीति मैकेनिकल इंजीनियर| अब तो हमारी शादी को चार महीने हो गए थे| प्रीति पिछले महीने से अपने मायके, मुंबई गयी हुई थी| आज मैं उसे लेने जा रहा था|

उसकी फैमिली से शादी की रस्मों में ही मिला हूँ| बड़ी फॉर्मल सी मीटिंग रही उनके साथ मेरी| इस बार उनसे भी अच्छे से मिलना हो जाएगा| तभी मेरे कमरे में भैया आए और बोले-

क्या पहना है तूने? टी शर्ट वो भी पीली| कितना आँखों को चुभ रहा है| बड़े शहर जा रहा है, कुछ subtle पहन जो फॉर्मल भी हो… जैसे ये व्हाइट शर्ट|

मैं बोला-

पर ट्रेन में जा रहा हूँ| व्हाइट पहनूंगा तो गंदा नहीं हो जाएगा|

 कुछ भी हो, इम्प्रेशन खराब नहीं होना चाहिए| पहली बार जा रहा है तू ससुराल|

फिर मैं व्हाइट शर्ट पहने ट्रेन की लोअर बर्थ पर बैठा था| एक साइड कूलकेज था दूसरे साइड चाचाजी और भैया बैठे थे| वो भी इतने सीरियस बैठे थे जैसे न जाने मैं कौनसे मिशन पर जा रहा हूँ| चाचाजी बोले-

सुन! ज़्यादा नहीं खाना उधर| डिमांड नहीं करना ये खाना है, वो खाना है… और सुन, मुंबई बड़ा शहर है| बड़े लोग रहते हैं वहाँ तो तू भी कुछ बड़े-बड़े अंगरेजी शब्द फेंकते रहना उनपर impression बनेगा|

क्या??

मैंने हैरान होकर कहा तो वो बोले-

हाँ तो! ऐसे चुपचाप मत बैठे रहना, भोंदूराम के जैसे| तू वैसे ही कम बोलता है| उन्हें ये ना लगे कि छोटे शहर का है तो इसे ज़्यादा आता नहीं होगा कुछ| शॉपिंग वगैरह लेकर जाएँ, वो लोग बार्गेनिंग करें तो तू डबल बार्गेनिंग करना| वो मोल-भाव ना करें तो तू ज़्यादा पैसे देकर आना| ढीला-ढाला सा मत रहना उधर|

भैया बोले-

हाँ! और सबसे ज़रूरी काम, ससुरजी को इम्प्रेस करना| ये उतना ही impossible लगेगा जितना इस कूलकेज में पानी कल तक ठंडा रहना| पर हिम्मत नहीं हारनी है|

मैं उनकी बातें से मंत्रमुग्ध होकर उन्हें चुपचाप सुने जा रहा था| जाते-जाते चाचाजी बोले-

बेटा! टी शर्ट मत पहनना|

घर से निकलते वक़्त गाना गाते हुए अच्छी-ख़ासी मेरी हल्की-फुल्की रोमांटिक पिक्चर चल रही थी, स्टेशन तक पहुँचते वो सीरियस ड्रामा में बदल गयी थी|

ट्रेन में पूरी रात मुझे यही सोचकर नींद नहीं आई कि मैं अपने ससुराल में नौ बजे उठूँगा तो चलेगा न| टेंशन में नींद भी नहीं आ रही थी कि फोन आ गया… कोई नंबर था… मैंने उठाया तो आवाज़ आई-

नमस्ते जमाई जी| मैं प्रीति की भाभी, मुझे पहचाना|

मैंने ज़ोर से हाँ तो कह दी थी पर उसकी तो तीन-तीन भाभियाँ हैं, उनमें से ये कौनसी हैं, मुझे भी नहीं पता था| वो बोलीं-

आप पहली बार ससुराल आ रहे हो, आपका स्वागत है| आपकी शादी के चर्चे तो अब भी हो रहे हैं| वैसे आप शादी का एल्बम तो ला रहे हो ना| हमारे वाला तो बहुत बार देख लिया| आप वाला भी एल्बम लेकर आ रहे हैं तो वो भी देखना हो जाएगा|

ओह! वो तो मैं भूल ही गया था| हमारा एल्बम तो अब तक बना ही नहीं| कितना बोला छुटकी ने भैया बैठकर फोटो डिसाइड कर लो कौनसे वाले एल्बम में जाने हैं| पर मैं ही टालता रहा| ऐसा लग रहा था जैसे कोई रिऐलिटी शो शुरू हो गया था और मैं उसके पहले राउंड में फ़ेल भी हो रहा था|

सुबह ग्यारह बजे मुंबई का स्टेशन आ गया| मैंने ट्रेन में ही सोच लिया था जब वो कुली को बुलाएँगे तो मैं कुली से बात-वात करके पैसे कम करवाकर उनका दिल जीत लूँगा… कि भाई वाह! कितना अच्छा दामाद है| पैसों को कितना बचाता है! मैं सामान लेकर ट्रेन से उतरा तो सामने मेरे ससुरजी मेरे चार साले साहबों के साथ खड़े थे| उन सबने मेरा सामान उठा लिया| कुली बुलाने की बारी ही नहीं आई| पहला ही प्लान फ्लॉप हो गया|

पर मैं हार माननेवालों में से नहीं था| मैं अगले मौके की तलाश में था| वो अगला मौका मिला खाने की टेबल पर|

खाने की टेबल पर मैं, मेरे ससुरजी और लंबी खामोशी थी| वो इधर-उधर देखते फिर मेरी तरफ नज़र जाती तो ऐसे मुस्कुराते जैसे किसी ने उनके गाल खींच लिए हों| बदले में मैं भी मुस्कुरा देता| मैंने ही कुछ बात करने की कोशिश की पर फिर भाभी की आवाज़ आई-

लीजिये, नाश्ता आ गया| नाश्ते खाते ही हम आराम से बैठकर आप वाला एल्बम देखेंगे तो उसे निकाल लीजिएगा|

ये सुनकर मैंने गर्दन हाँ में हिला दी| ये भाभी तो एल्बम के बारे में भूल ही नहीं रही हैं|  फिर मैं उनसे जितना हो सके बात ना करने की कोशिश करता रहा| भर पेट नाश्ता करने के बाद जब मैं सौंफ लेने के बहाने प्रीति के पास गया, तो उससे सौंफ का डब्बा नहीं खुल रहा था| तो मैंने खोलने की कोशिश की, तभी बच्चे कम ऑन फूफा ! करते आ गए|

मैं पूरा ज़ोर लगाए जा रहा था, और मेरे पास भीड़ बढ़ती जा रही थी| पहले प्रीति की भाभी किचन में जाते-जाते बच्चों का शोर सुन रुक गईं फिर उसके भैया फिर ससुरजी| इतना प्रेशर था मुझपर कि पंखे के नीचे पसीने आने लगे| ढक्कन कुछ खिसका और डब्बा मेरे हाथ से जा गिरा और पूरी सौंफ ज़मीन पर फैल गयी| डब्बा ज़मीन पर घूमते-घूमते ससुरजी के पैरों में जा पहुंचा| और मैं फिर से फेल हो गया|

सास-बहू पर ढेरों टीवी सीरियल हैं| लेकिन ससुर-दामाद पर कितने? इसलिए महिलाओं के लिए ये काम बड़े आसान हो जाते हैं| बहू सास को कैसे इम्प्रेस करे? सास बहू को कैसे इम्प्रेस करे? बिना शादी के उन्हें इन सब चीजों का टीवी सीरियल देखकर मोटे तौर पर अंदाज़ा हो ही जाता है| लेकिन दामाद ससुर को कैसे इम्प्रेस करे इस पर कभी किसी ने टीवी सीरियल बनाने का विचार नहीं किया?

मगर प्रीति के घर वालों ने विचार कर लिया था, मुझे मुंबई दर्शन करवाने का| गेटवे ऑफ इंडिया, चौपाटी, अजंता एलोरा| सब बिलकुल सही जा रहा था| अंताक्षरी मैं जीत भी रहा था| बच्चों का फेवरेट बन गया था| आखिर प्रीति के साथ फेरि में बैठने का मौका भी मिला| इतनी भीड़ में, इतने लोगों के बीच में से प्रीति के साथ पल बिताना जिसमें हम दोनों के बीच कोई बैठा न हो, ना ही कोई फूफा-फूफा करता हुआ आए|

सबकुछ ठीक ही चल रहा था कि बच्चों ने एस्सेल वर्ल्ड जाने की ज़िद्द कर ली| चिंटू बोला-

प्लीज़ ! चलो ना एस्सेल वर्ल्ड| फूफाजी उधर बहुत सारी राईड्स हैं, शॉट एंड ड्रॉप, टॉप स्पिन, कॉपर चोपर|

चिंटू वहाँ की खतरनाक से खतरनाक राइड्स गिनवाता रहा और मैं चुपचाप सुनता रहा| बचपन में फिसल पट्टी भी सही से नहीं खाई मैंने| इसलिए चाचाजी बचपन से मुझे भोंदूराम कहते थे| लेकिन इन सबके सामने मैं भोंदूराम नहीं बन सकता था क्यूंकी मैं दामाद था दामाद| दामाद अपनी जान पर खेल जाएगा लेकिन भोंदूराम नहीं बनेगा|

मेरे लिए Engineering के चार बैक क्लियर करना इतना मुश्किल नहीं था जितना फिसल पट्टी पर बैठना| मुझे तो सी-सो से भी डर लगता था| फिर एस्सेल वर्ल्ड में कैसे-कैसे झूले होते हैं| मैं झूलने से पहले तक बच पाऊँगा कि नहीं, पता नहीं| इतने में भाभी बोलीं-

अरे! एस्सेल वर्ल्ड थोड़ी लेकर जाएंगे इन्हें| जुहू बीच चलते हैं|

इतने में प्रीति के पापा बोले-

बच्चों की इच्छा है तो जाने दो|

फिर मेरी तरफ देखते हुए बोले-

अगर आकाश को कोई दिक्कत है तो फिर…

मेरे मुंह से जैसे ऑटोमैटिक निकल गया-

नहीं, नहीं, मुझे कोई दिक्कत नहीं|

इस तरह से मैंने अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी, आरी, हथोड़ा और भी भिन्न-भिन्न प्रकार की खतरनाक चीज़ें मार दी थीं| ‘मेरी गो राउंड’ में मेरे साथ जाने की चिंटू ने ज़िद्द पकड़ ली| मरता क्या ना करता, जाना ही पड़ा| मैंने सीट बेल्ट इतनी कसकर पकड़ी थी जैसे ये टाइटैनिक का जहाज़ है और बस डूबने वाला है| जैसे ही राइड शुरू हुई, उसी सेकंड मुझे सारे भगवानों के नाम याद आ गए| अभी तो संसार भी ढंग से बसा नहीं मेरा| उस झूले पर मुझे ऐसा लगा जाने अब मैं प्रीति से वापस मिल भी पाऊँगा या नहीं| इतने गोल-गोल चक्कर खिलाकर आखिर वो झूला रहम खाकर रुक गया| चिंटू हँसते-खेलते हुए राइड से उतरा लेकिन मेरी हालत खराब हो गयी| इतने चक्कर आ गए मुझे, आँखों के आगे अंधेरा छाने लगा| सब आकर मुझे संभालने लगे| मेरे साथ ससुरजी पर मेरा इम्प्रैशन भी धराशाही हो गया|

लोग दामाद से इतनी उम्मीदें करते क्यूँ हैं? दामाद हैं शक्तिमान थोड़ी| जो हाथ ऊपर कर एक ही जगह गोल-गोल घूम कर भी बिना चक्कर खाये सीधे खड़े रहेंगे| मुझे जाना ही नहीं था राइड पर| पहले ही कह देता-

नहीं! बच्चों वाली राईड्स पर मैं नहीं बैठता|

नहीं नहीं! क्या पता तो मुझे इससे भी डरावनी राइड पर बैठा देते| चिंटू भी न कसकर कमीज़ पकड़कर बैठ गया मेरी… फूफा जाना है, जाना है| जाना ही पड़ा| ऐसे चक्कर खाकर गिर पड़ा मैं कि मेरे सालों ने मुझे उठाकर गाड़ी में बैठाया| अब कितनी शरम आ रही थी मुझे कि मैं अपने दामाद के rough एंड tough ब्रांड पर धब्बा लगा चुका था|

रात को खाने के लिए मैं कमरे से बाहर निकला ही नहीं| प्रीति ने कमरे में ही खाना मँगवा लिया| बस कल का ही दिन था यहाँ| अब मुझे किसी को इम्प्रेस नहीं करना था| चुपचाप घर वापस जाना था| मैं लटका हुआ मुंह लेकर बिस्तर के एक कोने में लेटा हुआ था तभी मेरा फोन बजा, भैया का था| क्या तो उम्मीदें लगाकर बैठे होंगे वो मुझसे… कि मैं बड़े ठाठ से ससुराल में बैठा हूँगा| ससुरजी मुझे वाह बेटा! कहते हुए थक नहीं रहे होंगे| सबके ज़बान पर मेरा नाम होगा… और मैं यहाँ भीगी बिल्ली बनकर कमरे में पड़ा हूँ| बड़ा डरते हुए मैंने फोन उठाया तो उधर से आवाज़ आई-

और कैसा चल रहा है बेटा?

मैंने भी कह दिया-

बढ़िया|

ससुरजी इम्प्रेस हुए?

हाँ! बिलकुल|

मेरे मुंह से निकल गया| तो भाई ने पूछा-

वाह! कैसे?

मैं हड़बड़ा गया… क्या जवाब दूँ, सोच में पड़ गया-

अरे वो… वो… हाँ आया, मैं आता हूँ, बुला रहे हैं ससुरजी| कोई भी काम बिना पूछे करते नहीं मुझसे|

कहते ही मैंने फोन काटा और राहत की सांस ली| अभी तो फोन पर झूठ कह कर पीछा छुड़ा दिया| वहाँ जाकर तो डीटेल में पूछेंगे तो मैं क्या करूंगा? नहीं और झूठ नहीं बता सकता| अब कुछ तो करना पड़ेगा| पर्फेक्ट दामाद की छवि बनाने का जुनून वापस जाग गया|  इतनी बार हारकर भी हार नहीं मानी थी मैंने| कुछ तो सोचना पड़ेगा|

मैं दिन को अपने कमरे में बैठा था तभी चिंटू हाथ में बैट उठाए हुए आया|

फूफाजी आप आज तो ठीक हो न! कल राइड पर आपकी हालत खराब हो गयी थी|

कहते हुए चिंटू थोड़ा हंस रहा था| मेरे गुस्से वाली आँखें देख उसने फटाफट बात बादल दी और बोला-

 फूफाजी क्रिकेट खेलोगे क्या?

मैंने ना में सिर हिलाया| वो बोला-

आज कोई नहीं खेल रहा, चाचाजी भी नहीं, वो खेलते तो प्रीति दीदी भी खेलतीं| पर आज वो खेल ही नहीं रहे| उन जैसा शॉट कोई नहीं मार सकता| जो अच्छी बैटिंग करता है वो चाचा जी का फेवरेट हो जाता है| मामा भी उनके फेवरेट हैं क्यूंकी वो अच्छी बैटिंग करते हैं|

उस वक़्त मैंने सोचा क्या वाकई सिर्फ क्रिकेट से ससुरजी को इम्प्रेस किया जा सकता है? पर घुप्प अंधेरे में ये रोशनी की किरण की तरह मुझे दिख रहा था| मैंने सोच लिया था, चाहे ये कितना बचकाना था, मुझे करना है|

मैं बैट लेकर चौक में पहुंचा| फिर ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाया-

चिंटू कहाँ है? क्रिकेट खेलना है ना|

पीछे से मेरी शर्ट खीचते हुए चिंटू बोला-

मैं यही हूँ, फूफाजी|

मेरी आवाज़ सुनकर कोई चौक में नहीं आया| मैंने तो सोचा था मेरे ज़ोर से चिल्लाने से ससुरजी बाहर आ जाएंगे और फिर मैं इतना बढ़िया शॉट मारूँगा और वो इम्प्रेस हो जाएंगे| चिंटू बॉल फेंकने वाला था कि ससुरजी आ गए| मैंने जोश में शॉट मारा, और ससुरजी की तरफ देखकर मुस्कुराया तभी ठा!! करके आवाज़ आयी| देखा तो बॉल पुराने स्कूटर पर जाकर टकराई जिससे वो स्कूटर धम से ज़मीन पर गिर गया| ससुरजी भागते हुए स्कूटर के पास गए| शीशे तो टूट ही गए थे पर जब उसे चालू करने की कोशिश की तो चालू ही नहीं हो रहा था| मैं भी भागते हुए ससुरजी के पास गया और उनके स्कूटर चालू करने की कोशिश में लग गया| काफी किक मारने पर भी वो स्टार्ट ही नहीं हो रहा था| मैं बोला-

काफी पुराना है ये तो, अब तो स्टार्ट ही नहीं होगा… बहुत आउटडटेड मॉडल है|

मेरे ये कहने पर ससुरजी ने मुझे देखा और चुपचाप अंदर चले गए|

प्रीति ने बताया कि ये ससुरजी का पहला स्कूटर था, जो उन्होंने अपने पैसों से कमाई| मैं भी बावला हो गया था| मुझे भाई की बातों को इतना सीरिअसली नहीं लेना था| चुपचाप आता प्रीति को लेकर चला जाता| नहीं! मुझे तो रिऐलिटि शो बनाना था| रात को मैं खिड़की से स्कूटर को देख रहा था| सोच रहा था कि अब सब कैसे ठीक होगा!

मैंने उस दिन कुछ नहीं किया| मेरा मूड बड़ा खराब था| मैं अपने कमरे में ही बैठा रहा | वहीं नाश्ता किया| मैंने आलू-गोभी का पहला निवाला मुंह डाला और मेरा फोन बजा| भाई का कॉल था| मैंने लंबी सांस ली और फोन उठाया-

क्या कर रहा है?

भाई ने पूछा तो मैं बोला-

नाश्ता कर रहा हूँ|

ठाठ से बैठा होगा तू डाईनिंग टेबल पर ससुरजी का हीरो नंबर वन बनकर!

नंबर वन तो मैं हूँ पर हीरो नहीं, बेवकूफ हूँ जो बच्चों जैसी हरकतें कर दी थीं मैंने| पर भैया से मुझे तो कुछ बोला ही नहीं जा रहा था| उन्हें कैसे बताऊं मेरी हालत के बारे में| भीगी बिल्ली के जैसे बैठा हूँ कमरे में| ससुरजी का स्कूटर तोड़कर उनकी गुड बुक्स में तो नहीं लेकिन उनकी हिटलिस्ट में ज़रूर आ गया हूँगा|

अगला दिन रवानगी का था| सवेरे की ट्रेन थी| अब तो कुछ नहीं करना था| मैंने सोच लिया था अब कोई भी काम इम्प्रैशन बनाने के लिए नहीं करना|

मैं स्टेशन जाने के टाइम पर कमरे से निकला| मैं जाने से पहले सबके पाँव छू रहा था| मैं ससुरजी के पास गया और बोला-

आप चल रहे हैं ना स्कूटर पर मुझे छोड़ने?

जवाब में उन्होंने कहा-

बेटा वो नहीं चलेगा|

ट्राइ तो करिए|

मैंने कहा तो वो भी स्कूटर के पास गए और पहली ही किक में स्कूटर शुरू हो गया| वो हैरान से हो गए| उन्होंने खुश होकर पूछा-

अरे! ये तो स्टार्ट हो गया| तुमने किया?

जी! मैं तो सॉफ्टवेयर इंजीनियर हूँ| ये प्रीति ने किया, मैंने तो बस हेल्प की| मेरी वजह से खराब हुआ तो मुझे बुरा लग रहा था|

उन्होंने प्रीति को देखा और मुस्कुरा दिये| उनके चहरे पर मुस्कान देखकर मुझे लगा मैं सारे रियलिटी शोस जीत गया|

ट्रेन में बैठे हुए सोच रहा था, शक्तिमान बनने की ज़रूरत नहीं है पर्फेक्ट दामाद बनने के लिए|

हर काम में पर्फेक्ट होना ज़रूरी नहीं होता| आपको सर्वगुण सम्पन्न बनना ज़रूरी नहीं, कोई और बनना ज़रूरी नहीं… आपको अपने ऊपर और अपने प्यार के ऊपर भरोसा होना चाहिए| वही आपको पर्फेक्ट दामाद बनाता है| समझे गुरु!!

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