भारत की आज़ादी की पूर्व संध्या यानी 14 अगस्त 1947 को एक जोड़े ने दिल्ली के कनॉट प्लेस पर चुम्बन लिया और शादी करना तय किया था, चुम्बन लेने की इस घटना को कोलिन्स और लेपियरे ने अपनी किताब ‘फ्रीडम एट मिडनाइट‘ में दर्ज किया था…. आइए, आज आपको उस ऐतिहासिक चुम्बन का पूरा इतिहास बताते हैं…
ये दास्तान बहुत दिलचस्प भी है, रौंगटे खड़े कर देने वाली भी। भारत की आज़ादी की पूर्व संध्या यानी 14 अगस्त 1947 को एक जोड़े ने दिल्ली के कनॉट प्लेस पर चुम्बन लिया और शादी करना तय किया, चुम्बन लेने की इस घटना को कोलिन्स और लेपियरे ने अपनी किताब ‘फ्रीडम एट मिडनाइट’ में दर्ज किया था। उनमें लड़का सिख था, और लड़की मुस्लिम। लड़के का नाम था करतार सिंह और लड़की थी: आएशा। आएशा अलीगढ़ में जन्मी थी, आज़ादी के साल दिल्ली के लेडी हार्डिंग्ज मेडिकल कॉलेज में डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी कर रही थीं। हॉस्टल में रहती थीं। उनकी बड़ी बहन थीं: सुल्ताना। सुल्ताना का निकाह हिंदुस्तान की बड़ी अदबी शख्सियत अली सरदार जाफरी से हुआ था।
करतार सिंह आज़ादी के पहले लाहौर रेडियो स्टेशन में काम करते थे, विभाजन हुआ तो उनका तबादला दिल्ली के ऑल इंडिया रेडियो में कर दिया गया था। लाहौर में करतार सिंह की सहकर्मी सुल्ताना ने उनसे कहा था कि मेरी छोटी बहन से शादी कर लो, करतार सिंह ने इसे मज़ाक माना। जब वे दिल्ली आ रहे थे तो सुल्ताना ने कहा कि दंगों का जैसा माहौल है, छोटी बहन का ध्यान-ख़याल रखना, संभालते रहना। करतार सिंह और आएशा मिलने लगे। देश की आज़ादी का दिन आ गया। और कनॉट प्लेस पर खुशी के माहौल में उन्होंने शादी करने का फैसला एक दूसरे को चूमते हुए किया। यह एक ऐतिहासिक चुम्बन था। इस चुम्बन और दिल्ली में इस दिन का विस्तार से वर्णन कॉलिंस एंड लेपियरे की किताब ‘फ्रीडम एट मिडनाइट’ में मिलता है। और फिर दोनों ने शादी की स्वर्ण मंदिर, अमृतसर में।
सिख युवक करतार सिंह का पूरा नाम था- करतार सिंह दुग्गल। जिन्हें बाद में पंजाबी के मशहूर कथाकार के रूप में अपार शोहरत मिली। पंजाबी कहानी के रूहे -रंवा! वे ऑल इंडिया रेडियो के डायरेक्टर भी बने और रिटायरमेंट के बाद नेशनल बुक ट्रस्ट के प्रमुख भी बनाए गए। पद्मभूषण, साहित्य अकादमी तथा ग़ालिब अवॉर्ड जैसे सम्मान उन्हें लेखक के तौर पर दिए गए।
उनकी प्रेम कहानी साधारण नहीं थी। ‘हूम टू टेल माय टेल’ नाम से लिखी अपनी आत्मकथा (नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित) में करतार सिंह बताते हैं कि यह विवाह भी आसान नहीं था, मजहबी दंगों के बीच सिख-मुस्लिम विवाह !! पर दोनों दृढ़ थे, और वे ज़िन्दगी के सफर पर साथ हो ही लिए। आएशा ने शादी के बाद घर वालों को बताया, उनके लिए हैरान कर देने वाली बात थी कि आएशा एक नॉन- मुस्लिम को अपना जीवनसाथी चुना, धीरे-धीरे उन्होंने इस विवाह को स्वीकार कर लिया।
बताना जरूरी है कि आज़ादी और विभाजन के साम्प्रदायिक दंगों में पंजाब के अमृतसर-जालंधर इलाकों के रिफ्यूजी कैम्प्स में आएशा ने डॉक्टर के रूप में सेवाएं दी थीं, वहीं, विभाजन की विभीषिका करतार सिंह दुग्गल की रचनाओं में प्रामाणिक रूप से दर्ज हुई।
करतार सिंह दुग्गल की दोस्ती मशहूर लेखक खुशवंत सिंह से भी रही, अपने एक संस्मरण में वे याद करते हुए लिखते हैं कि जब मैं लाहौर में वकालत की प्रैक्टिस शुरू करने वाला था, मेरे पास भरपूर वक़्त होता था, तो पंजाबी साहित्य में अपनी दिलचस्पी की वजह से, दिलचस्पी को समझ में बदलने के लिए, हफ्ते में एक दिन पंजाबी लेखकों को घर बुलाता था, उनमें करतार सिंह भी थे, उस महफ़िल में सब अपना नया लिखा सुनाते थे, मेरा योगदान सिर्फ एक साधारण सी विस्की से ज़्यादा कुछ नहीं होता था। जब वे दिल्ली आ गये, मैं भी इस बीच पांच साल यूके और कनाडा रहकर दिल्ली आ गया तो दोस्ती कायम रही। कुल 50 साल की दोस्ती।
करतार सिंह और आएशा, भारत की आज़ादी के दिन परवान चढ़ी यह अद्भुत प्रेम कहानी है। और पंजाबी और उर्दू अदब के बीच गहरे रिश्ते की एक मजबूत कड़ी भी। इसलिए यह प्रेम और विवाह भारत के सांस्कृतिक इतिहास का एक बेशकीमती वरक है। देखिए, कितनी कमाल सी बात है कि आजादी और विभाजन ने जहां हजारों लाखों लोगों को अलग किया, पर करतार सिंह दुग्गल और आएशा जाफरी को जोड़ दिया।
Connaught Place Delhi by Harshchahal