Image default

समुद्र, चर्च, मंदिर, अराट और एयरपोर्ट

एक दशक पहले त्रिवेंद्रम एक हरा शहर था, गाँव जैसी हरियाली समेटे, आँगन-सी साफ सुथरी सड़कें और समुद्री तट, साथ में एक सुकून भरी शांति। मैंने कई रातें समुद्र तट पर बैठकर लहरों को देखते हुए गुजारी हैं। उन दिनों घरेलू और अंतरराष्‍ट्रीय उड़ानें शंखमुगम के पुराने टर्मिनल से भरी जाती थीं। तब चाका (चक्काई) के नये इंटरनेशनल टर्मिनल और हैंगर का निर्माण नहीं  हुआ था।

शंखमुगम के समुद्री तट पर रात के तीन बजे आसमान में उड़ते हवाई जहाज चाँद से बातें करते थे। मैं लहरों पर सवार मछुआरों  के लौटते नावों की रौशनी में खो जाती,  लहरों पर सैकड़ों दीये जल जाते और सब के सब दीये करीब आते महसूस होते, वे रातें आँखों में गज़ब का रोमांच भर देती।

ऊपर हवाई जहाजों की शोर वाली दीवाली और नीचे समुद्र की लहरों पर थिरकते दीयों का नृत्य, अद्भुत नज़ारा! शांत मन में गीत जोड़ती लहरों की लयबद्ध आवाज।

समुद्र के सामने इंडियन कॉफी हाउस में डिनर करने के बाद मैं वहीं समुद्र तट पर बैठ जाती थी। अगर छूटे पैसे न हो तो कॉफ़ी-हाउस वाले बदले में सिक्के के आकार की नारियल से बनी मिठाई देते थे या लेमनचूस के आकार का पेड़ा। कभी-कभी रात के दो-तीन बजे घर लौटती। सड़कें शांत और कोई भय नहीं। शंखमुगम के चौराहे पर विशाल जलपरी और पुलिस की गाड़ियाँ एक दूसरे का मुख ताँकती रहती, कभी हवा तो कभी बारिश की फुहारें स्वागत करती। लहरों पर मछुआरों के लौटते नाव दीये से सजे होते।

 

 

 

 

 

 

 

हम आराम से उस घर में लौट आते जिसके बगल में कननदुरा चर्च था। नया कननदुरा चर्च हमारी आँखों के सामने बना है। चर्च के सामने छोटा सा ऊँघता कब्रगाह बड़ा रहस्यमय लगता था तब। ये सड़क बेट्टुगाड चर्च और वेली लेक की ओर जाती है। वेट्टुगाड चर्च का मेला, भीड़ और तार के तेल में बन रही जलेबियाँ मैं उम्रभर नहीं भूलूँगी।

इस शहर की तीन चीजें जो मुझे  हमेशा याद रहेंगी, पहला यहाँ की आत्मनिर्भर बूढ़ी स्त्रियाँ जो इस शहर का ज़िंदा नमक हैं। दूसरा मछुआरें और तीसरा समुद्र का किनारा।

बाकी लोग तो पद्मनाभास्वामी और अट्टुकाल देवी के मंदिर को भी याद करते हैं। किसी के सपने में  करमना और कीली नदी आती है और किसी के सपने में चाला का बाजार। यहाँ के स्थानीय लोगों का मानना है कि दुनिया की हर चीज मिलती है चाला (चालाई) के बाजार में, अब तो अच्छी  मात्रा में अबीर और राखी भी।

किसी के आँखों में बैक वॉटर है तो किसी के आँखों में मंदिर में शास्त्रीय नृत्य करती युवतियाँ। मेरे मन में बसा है कारमेल विल्ला। समुद्र तट पर मेरा छोटा-सा बँगला और पॉलिन कोस्टका की कभी न भूली जाने वाली कहानियाँ। वे अक्सर कहा करती थीं समुद्र की लहरों में मेरे घर की चौखटें और खिड़कियाँ विहार कर रही हैं।

लोग पद्मनाभास्वामी का अराट भी नहीं भूलते, उस दिन त्रिवेंद्रम एअरपोर्ट के रनवे को अराट की झाँकी के गुजरने के लिए खोल दिया जाता है। आपको जानकर ताजुब्ब होगा कि साल में दो बार ऐसा होता है जब त्रिवेंद्रम अंतरराष्‍ट्रीय एअरपोर्ट पद्मनाभास्वामी मंदिर से निकलने वाली अराट के लिए बंद कर दिया जाता है। अराट एक भव्य सांस्कृतिक झाँकी के साथ निकलती है जिसमें बड़ी संख्या में  आम लोग भाग लेते हैं और इन झाँकियों का प्रतिनिधित्व राज परिवार और पुजारी करते हैं।

पद्मनाभास्वामी से निकली देव प्रतिमाएँ हाथी पर सवार हो शंखमुगम के समुद्री तट पर स्नान हेतु लायी जाती हैं। इस क्रम में निकली विशाल सांस्कृतिक झाँकी का प्रतिनिधित्व त्रावणकोर का राज परिवार करता है और यह झाँकी एयरपोर्ट के रनवे से होकर गुजरती  हैं।

ऐसा दो त्योहारों में होता है। पहले त्योहार का नाम है पनकुन्नी, यह त्योहार मार्च या अप्रैल के महीने में मनाया जाता है। दूसरा त्योहार है अल्लपसी जो अक्टूबर या नवम्बर के महीने में मनाया जाता है। पनकुन्नी में पाँचों पाँडव के विशाल रंगबिरंगे पुतले बनाकर मंदिर के पूर्वी द्वार पर लाया जाता है। लोगों का विश्वास है कि इससे इन्द्र देवता प्रसन्न होते हैं। पनकुन्नी का त्यौहार दस दिनों तक चलता है। अराट के साथ यह त्यौहार खत्म हो जाता है।

आमतौर पर अराट के समय एयरपोर्ट पर परिचालन बंद रहता है।

अराट की यह परंपरा सैकड़ों वर्ष पुरानी है।

त्रिवेंद्रम एअरपोर्ट की स्थापना 1932 में रॉयल फ्लाइंग क्लब के द्वारा त्रावणकोर के राज परिवार की ज़मीन पर की गयी थी। 1991 में जब यह अंतरराष्‍ट्रीय एअरपोर्ट में तबदील हो गयी तब त्रावणकोर राज परिवार के इस आग्रह को मान लिया गया कि साल में दो दिन जब पद्मनाभास्वामी मंदिर से अराट शंखमुगम के तट की ओर जाएगी उस समय वे हवाई जहाजों का परिचालन बंद रखेंगे ताकि अराट रनवे पर से होकर गुजर सके। आज तक यह परंपरा निभाई जा रही है। एअरपोर्ट के अंदर बाकायदा अराट मंडप भी है।

यह वह शहर है जहाँ महिलाएँ खूब गहनें पहनती हैं। एक शहर जो पढ़ा-लिखा है। जहाँ स्टैच्यू के पुराने सचिवालय के पास रोज धरना होता है और पालयम से पट्टम तक दीवारों पर शहर के कलाकारों ने चित्र बना रखे हैं। यहाँ की लड़कियाँ अब भी बालों में गजरा और कान में  झुमके लगाती हैं और खूब पढ़ती हैं। वे ही नहीं उनकी परनानियाँ भी जानती थीं पढ़ेगा तभी तो बढ़ेगा इंडिया…

 

केरल के तिरुअनंतपुरम से अनामिका अनु की डायरी

पसंद आया तो कीजिए लाइक और शेयर!

आप इसे भी पढ़ना पसंद करेंगे

ला फिएस्ता !

Swa:Bani

लव इन चौपाटी : चैताली थानवी की लिखी

Chaitali Thanvi

लव इन ऑनलाइन मोड

SatyaaDeep Trivedi

भारत की आज़ादी की पूर्व संध्या का वह ऐतिहासिक चुम्बन

Dr. Dushyant

मीठी फ़रवरी : चैताली थानवी की लिखी

Chaitali Thanvi

अविनाश दास remembers इरफ़ान ख़ान

Avinash Das