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उम्मीद की किरण : डिम्पल अनमोल रस्तोगी की लिखी

किसी दिन मेरी बेटी भी कलेक्टर बनेगी! बस यूँ ही सोचते-सोचते कब सीमा की आँख लग गयी उसे पता ही नहीं चला। सुबह उठकर उसने अपने पास सो रही अपनी 7 वर्षीय बेटी निक्की को प्यार से देखा।

कल ही की तो बात है, ना जाने कहाँ से उसे पुलिस की टोपी मिल गयी तो उसके पास आकर बोली, “माँ, ज़रा यह टोपी तो पहनाओ मुझे , देखो-देखो, कितनी जँच रही है ! माँ, सुनो ना, मुझे कलेक्टर बनना है। फिर देखना तुमको किसी के घर बर्तन नहीं माँजने पड़ेंगे, पापा की पिटाई नहीं सहनी पड़ेगी। माँ तुम सुन रही हो ना मेरी बात!”

सीमा ने अपनी बेटी की ओर देखा… कितनी कम उम्र में कितनी बड़ी हो गयी है, मेरी लाड़ली !

कब से कह रही है माँ, मुझे भी दूसरे बच्चों की तरह स्कूल जाना है। सीमा की बेटी उससे स्कूल जाने की जिद कर रही थी और सीमा अपनी सोच में मगन थी…कैसे भेजूँ स्कूल अपनी बेटी को? कहाँ से लाऊँ स्कूल की फ़ीस भरने को पैसे ???

सोचा था, इस साल तो कुछ घर में और काम करके स्कूल भेजूँगी अपनी गुड़िया को!! पर इस साल तो इस कोरोना बीमारी ने मुँह का निवाला भी छीन लिया । तीन टाइम खाना तक भी ठीक से ना अपनी लाड़ली को खिला पाती हूँ ! मेरे आधे काम तो छूट गए , जो हैं उनमें से कुछ तो तनख़्वाह भी आधी दे रहे , क्या करूँ, हे भगवान ??

सीमा अपने विचारों में मगन थी, उधर उसकी बेटी टोपी पहने, ख़ुशी से लहराते हुए माँ को झकझोर रही थी।

“माँऽऽऽऽऽऽऽऽऽ देखो, तुम फिर कहीं गुम हो गयीं ! तुम मुझे कब स्कूल भेजोगी माँ?” सीमा ने अपनी बेटी को अपने सीने से चिपकाया और नम आँखों से बोली, “हाँ ! मेरी गुड़िया तुझे इस बरस ज़रूर स्कूल भेजूँगी। मेरी लाड़ली कलेक्टर बनेगी ! हाँ, हाँ सीमा की निक्की ज़रूर कलेक्टर बनेगी।”

आँखों में नयी उम्मीद जगाए सीमा अपने काम करने चल दी। सबसे पहले उसे शर्मा आंटी के घर जाना होता था। वहाँ वो सफ़ाई और खाना बनाने का काम करती थी। सभी कामों में बस शर्मा आंटी ही सबसे अच्छी और सबसे दयालु थी। कोरोना में भी उसे पूरी तनख़्वाह दे रही थी ! वो उसकी गरीब स्थिति को समझती थी। वो एक सरकारी स्कूल में नौकरी करती। उसने उनके घर पहुँच कर सफ़ाई की फिर पूछा, “दीदी खाने में क्या बनाऊँ?”

दीदी ने सीमा के दुखी चेहरे की तरफ़ देखा तो बोली “ सीमा पहले इधर आकर बैठ, बता क्या बात है इतनी उदास क्यूँ दिख रही?”

सीमा ने कहा, “दीदी, क्या बताऊँ, मेरी बेटी निक्की को पढ़ने का बहुत शौक़ है। वो कब से जिद कर रही कि मुझे स्कूल जाना ! दीदी, आप ही बताओ मैं जो कमाती हूँ उससे खाना ही बड़ी मुश्किल से मिलता है। स्कूल की फ़ीस कहाँ से भरूंगी, किताबें और ड्रेस कैसे दिलाऊँगी। बच्ची है अभी, उसमें समझ नहीं। सोच रही थी, इस साल कुछ और काम करके ज़्यादा कमा लूँगी तो इस बरस स्कूल में दाख़िला करा दूँगी। अब कोरोना में कहीं और काम मिल नहीं रहा।” कहकर सीमा फफक-फफक कर रोने लगी।

मिसिज शर्मा ने कहा, “सीमा, तूने मुझे पहले क्यूँ नहीं बताया कि तेरी बेटी पढ़ना चाहती है ! तू चिंता मत कर, मैं हूँ ना। तुझे पता है इसी वर्ष सरकार ने गरीब बच्चियों की शिक्षा के लिए निशुल्क शिक्षा अभियान चलाया है। साथ ही, उस अभियान के तहत फ़्री ड्रेस और फ़्री किताबों को भी दिया जाएगा। तुझे बस कुछ औपचारिकतायें पूरी करनी होंगी। बाकी यह सब कैसे होगा, यह तू मुझ पर छोड़ दे। बस कल अपनी बेटी को लेकर मेरे स्कूल आजा।”

सीमा ने जब यह सब सुना तो उसकी ख़ुशी के ठिकाने ना रहे। उसने शर्मा आंटी का धन्यवाद किया। और ख़ुश होकर खाना बनाने चल दी।

घर पहुँच कर उसने अपनी बेटी निक्की को बोला, “निक्की, आज भगवान ने तेरी सुन ली। इसी बरस तेरा दाख़िला स्कूल में करवाऊँगी।”

अगली सुबह वो निक्की को लेकर शर्मा आंटी के स्कूल पहुँची ! वहाँ उनकी मदद से निक्की को दाख़िला मिल गया। और निक्की ने स्कूल जाना शुरू कर दिया। निक्की और सीमा दोनों बहुत ख़ुश थीं। सीमा ने निक्की से कहा, “बेटा, भगवान ने हमारी सुन तो ली। अब तू वादा कर मन लगाकर पढ़ेगी।”

निक्की बोली, “माँ, तुम चिंता ना करो। मैं जी-जान से पढ़ूँगी और तुमको कलेक्टर बन कर दिखाऊँगी।”

सीमा ने शर्मा आंटी का बहुत धन्यवाद किया और दिल से दुआएं दीं ! उनकी वजह से निक्की का स्कूल जाने का सपना पूरा हो गया ! वो कहते हैं ना कि किसी चीज़ को दिल से चाहो तो सारी कायनात उसे पूरा करने में लग जाती। तो बस निक्की की स्कूल जाने की बेतहाशा चाहत ने उसे स्कूल तक पहुँचा ही दिया!

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