मैना की शादी : कहानी चैताली थानवी की लिखी

संडे की शाम के वक़्त आसमान की लाइट डिम होते ही दादी गलियारे में बैठ जाती और जोर से आवाज़ लगातीं – ओह मैना! इधर आ तेल लगाऊं|

चिढ़कर आखिर मैना को तेल लगाने बैठना ही पड़ता| भले ही मैना पच्चीस साल की हो गयी थी, फिर भी दादी के लिए तो बच्ची ही थी| घर में ठीक है लेकिन दादी उसे जोर-जोर से सबके सामने मैना कहतीं तो उसे बहुत बुरा लगता|

वो चाहे जितना भी कह ले – दादी, मैना नहीं! मिनाक्षी, अब मैं बड़ी हो गयी हूँ|

पर दादी तो उसे मैना ही बुलातीं| मैना को भृंगराज तेल की खुशबू पसंद हो या न हो, दादी तो उसके सिर में यही तेल लगातीं| घर में सब गलियारे को दादी का टोल नाका कहते| वहां बैठे-बैठे, घर से बाहर कौन कहाँ जा रहा है, कहाँ आ रहा है, दादी पूरा ध्यान रखतीं| बाहर जाने से पहले उन्हें दादी को हाजरी देनी ही पड़ती… कहाँ जा रहे हो? क्यूँ जा रहे हो? रिक्शा से जा रहे हो या बस से? उनके सवाल कभी ख़तम नहीं होते|

मैना को पिक्चरें देखने का बहुत शौक था, लेकिन बड़ी सी जाइंट फैमिली में भला कोई अकेले पिक्चर देखने जा पाता है… चाचा, चाची, भैया, भाभी, चिंटू, पिंकी सब चलते| एक पिक्चर के लिए उसे घर में सबसे अपॉइंटमेंट लेनी पड़ती| जब चाचा फ्री होते, तब भैया का ऑफिस होता, जब सन्डे होता तो गोलू की पेरेंट्स टीचर मीटिंग होती| फिर भी सब मिलकर पिक्चर देखते ज़रूर, पर तब, जब वो टीवी पर आ जाती|

सारे के सारे दादी के आँखों के तारे थे| थोड़ा भी उनकी आँखों से ओझल होते तो उनके दिमाग में रात नौ बजे वाला क्राइम शो चलने लगता था| कभी भी मैना को या उसके भाइयों को उन्होंने पिकनिक तक नहीं जाने दिया|

कॉलेज के बाद जब मैना को जॉब करना था तब दादी ने सब स्कूल्स की लिस्ट छांट कर घर के सबसे करीब वाले स्कूल को चुना|  मैना जब भी तैयार होकर स्कूल पढ़ाने के लिए निकलती तो दादी का टोल नाका तोड़कर भागने की कोशिश करती पर दादी पकड़ ही लेतीं और फिर टैक्स देना पड़ता –

रोज़ नयी ड्रेस, कितनी हैं तुम्हारे पास? इतने भारी झुमके! चमड़ी लटक रही है पूरीमुझे बोलती, मैं कान खींच देतीइतना बड़ा घाघरा, स्कूल में बच्चों के पीछे भागेगी तो तू गिर जायेगी|

मैना के पूरे फैशन का कबाड़ा कर देतीं| उसे बड़ा गुस्सा आता|

मन करता दादी को बोले – मैं पी टी टीचर थोड़ी हूँ जो स्कूल में भागूंगी| झुमके फैशन हैं, दादी, आप नहीं समझोगी|

पर जब दादी समझेंगी ही नहीं तो बोलने का क्या फायदा!

पूरे दिन वो जितना भी दादी से मुंह चढ़ाकर बैठे, रात को जब पूरे घर में सिर्फ उसे ही दादी बादाम और केसर वाला दूध देतीं तो उसका पूरा गुस्सा पिघल जाता|

जब भी किसी बात से मैना का मन खराब होता तो वो किसी को बताती नहीं| रात को चुपचाप दादी की गोद मे सिर रखकर सो जाती| दादी भी उससे नहीं पूछती| वो मैना का मन समझती थीं|

कभी कभी उसे लगता दादी उसे कितना समझती हैं, उसके बारे में कितना सोचती हैं और कभी-कभी लगता कुछ ज़्यादा ही सोचती हैं| लेकिन आजकल मैना बिना वजह ही चिढ़ी-चिढ़ी से रहने लगी थी, क्यूंकि पूरे घर में सिर्फ एक ही बात चलती, “मैना की शादी”|

इतिहास गवाह है, किसी भी कामकाजी इंसान को इस समाज ने अकेले नहीं रहने दिया| मैना की भी अब शादी की तथाकथित आयु हो चुकी थी| इसलिए अब उसकी भी शादी की चर्चाएँ होने लगीं| पर इन सब बातों से मैना का मन जैसे उलझन में फंस गया था|

नहीं, उसका कोई बॉयफ्रेंड नहीं था, और उसके लिए तो सारी प्रेम कथाएं काल्पनिक थीं, जिनका असल ज़िदगी से कोई लेना-देना नहीं था| फिर भी वो शादी के नाम से परेशान हो जाती थी| उसके लिए शादी मतलब रोज़ भाभी के जैसे जूड़ा, बिंदी, चूड़ी सब पहनकर तैयार होना, माँ के जैसे पिछले महीने से लेकर दिसम्बर तक का दूध का हिसाब याद रखना| चाची के जैसे पड़ोसियों के पास दूध, चीनी में गए अपने बर्तन याद से वापस लेकर आना| किसी की ननद के चाचा की बेटी उसकी क्या लगे ये याद रखना, अपने कपड़े खुद संभालना, सन्डे को भी बाल बनाना और सबसे मुश्किल एक अजनबी के साथ नयी जगह जाना| वो इसी उलझन में थी कि उसे पता चला कि कल सन्डे के दिन शर्माजी आने वाले थे| अपने बेटे आकाश के साथ शादी की बात करने| उसे अजीब सी घबराहट होने लगी|

क्या एक बार मिलने से पता चलेगा कि उस लड़के के साथ वो पूरी ज़िन्दगी बिता सकती है या नहीं? कैसे होता है ये? उसे समझ ही नहीं आ रहा था| दादी नौ साल की थी जब उनकी शादी हुई| उन्हें तो पता भी नहीं था कि उनकी शादी हो रही थी|  उन्होंने बताया कि उन्हें तैयार होने के लिए अलग कमरा भी नहीं मिला| सारे कमरे चाचियों और भाभियों ने ले रखे थे| उन्हें बस ऐसे ही कपड़े पहनकर बैठा दिया मंडप में और अब तक मलाल है उन्हें इस बात का|

उसकी चाची बोलीं – बेटा तुम मिलोगी तो सही न! मैंने तो उन्हें देखा भी शादी के एक दिन बाद था|

मैना बोली – क्या, भाभी भी भैया से नहीं मिलीं पहले?

भाभी मुस्कुराते बोलीं – नहीं! ऐसा नहीं है| एक-दो बार उन्होंने फ़ोन किया था| एक बार दिवाली पर, दूसरी बार रक्षाबंधन पर| कॉल भी उन्होंने अकेले नहीं किया, सपरिवार किया था| अब इतने लोगों के सामने क्या बात करते? आज के शुभ दिन की बधाई बस यही कहकर मुंह में दही जमाई| कुछ और बोल ही नहीं पाए|

मैना हंस पड़ी| भाभी, भैया ने रक्षाबंधन के दिन भी फ़ोन किया?

भाभी बोलीं – अरे! सिर्फ त्यौहारों पर ही बात करने का मौका मिलता था| जो भी त्यौहार मिले फ़ोन कर लो| तू तो सामने से मिल रही है| घर आ रहा है कल|

ये सुनकर मैना की हंसी उड़ गयी और दिल धम से बैठ गया! क्या होगा कल? वो क्या बात करेगी? अगर सामने दादी बैठ गयीं तो उसका पूरा ध्यान इसी बात पर जायेगा कि कहीं उसने साड़ी ज्यादा ऊपर तो नहीं बाँध दी?अगर झुमके ज्यादा भारी पहन लिए तो दादी सबके सामने ही कह देंगी – इधर आ, मैं ही खींच दूँ तेरे कान|

उसे मिलना ही नहीं था किसी से| वो यही सोचने लगी, काश, कल वो लोग ना आएं या सन्डे ही न आए|

मैना सुबह उठी तो हैरान हो गयी…

उसका घर किसी टीवी सीरियल का सेट लग रहा था| ड्राइंग रूम में मखमल वाला कारपेट बिछा हुआ था, टेबल पर टेबल कवर था, किचन में एक तरफ मठरियां तली जा रही थीं तो दूसरी तरफ चतुर्भुज के गुलाब जामुन थे| चाची कांच का डिनर सेट निकाल रहीं थीं… जो उन्होंने दिवाली पर भी नहीं निकाला था|

मैना को देख उसकी माँ बोलीं – तूने ब्रश किया?

मैना ने ना में सर हिलाया|

फटाफट ब्रश करके नहा ले| सुन! बाहर बेसिन में नलके के पास नया साबुन रख देना, वो हाथ मुंह-धोएं तो| तौलिये नए निकालना, यूज़ किये हुए मत रखना| साबुन वो निकालना जो तेरे मामा लाये थे सिंगापुर से|

मैना चिढ़कर बोली – साथ में इत्रदानी और गुलाब की माला भी रख दूँ स्वागत में|

माँ चिल्लायीं – तू जाकर तैयार हो, वही काफी है!!

थोड़ी ही देर में चाय और नाश्ते के दौर के दौरान मैना और आकाश दोनों परिवारों से घिरे हुए थे| खांसी और खराश की ख़ामोशी को तोड़ते हुए आकाश बोला – आपका नाम क्या है?

मैना ने सोचा – ये क्या फालतू सवाल पूछा? नाम तो इसे पता ही होगा|

वो बोली- मैना… नहीं! मिनाक्षी|

वो मुस्कुराया और बोला – मैना…स्वीट!

मैना को तो गुस्सा आया, कैसे दांत निकालकर हंस रहा था| फिर उसने दूसरा सवाल किया – आप पिक्चरें देखती हैं?

पिक्चरें सुनकर मैना excited हो गयी| उसे कहना था कि उसे तो पिक्चरें बहुत पसंद हैं| ऋषिकेश मुखर्जी कि फिल्मों पर तो PhD की हुई है उसने| उसका बस चले तो सब पिक्चरों का फ़र्स्ट डे फ़र्स्ट शो देखे वो|

लेकिन सबके सामने वो बस इतना ही बोल पाई – टी वी पर आती है तो देख लेती हूँ|

टी वी पर! अच्छा… आकाश भी इतने रिश्तेदारों के बीच जैसे कुछ कहते-कहते रह गया और मुलाक़ात ख़त्म भी हो गयी|

पर उसने कितने सवाल सोच रखे थे जो वो उससे पूछना चाहती थी| जैसे कि उसे किसी के बर्थडे याद नहीं रहते, अगर वो उसका बर्थडे भूल जाये तो क्या वो गुस्सा करेगा… वो माँ के जैसे घर ना संभाल पायी तो क्या वो संभाल लेगा? पर वो बात ही नहीं कर पाई|

मेहमानों के जाने के बाद सब टी वी सीरियल के सेट को वापस घर बनाने में लगे थे। वो उन सबसे दूर बैठी थी| मोबाइल देखते-देखते अचानक उसने अपना सोशल मीडिया अकाउंट खोला, फिर इधर-उधर देखा… कोई नहीं था… फटाफट आकाश की प्रोफाइल ढूंढ़नी शुरू की|

कितनी अलग-अलग जगहों पर तस्वीरें थीं उसकी। माउंट आबू में पहाड़ चढ़ते हुए, दार्जीलिंग में किसी झील के पास मोमोस खाते हुए और एक तो जंगल की भी थी।

मैना ने सोचा – ये तो बड़ा adventurous लड़का है। यहां तो गोल पार्क जाने में भी कितना सोचना पड़ता है। कब जाएँ… रिक्शा से जाएं या स्कूटर पर, जाने से पहले चेवड़ा और मुरमुरे भी तो पैक करने पड़ते हैं! दादी बाहर का खाने नहीं देतीं चाचा-चाची को प्रीति भोजनालय जाने के लिए भी बैंक का बहाना करना पड़ता है|

उसकी दुनिया ही अलग थी| क्या मैना उस दुनिया में फिट बैठ पाएगी?

अगली सुबह जब वो पैरेंट्स टीचर मीटिंग के लिए कपड़े निकाल रही थी तो भाभी हाथ में मुल्तानी मिट्टी का लेप लेकर आ गयीं और बोलीं – कितने पिम्पल्स हो गए हैं तुझेये लगा ले|

मैना  हैरानी से बोली – भाभी यू नो, ये फालतू चीज़ें मैं नहीं लगाती|

भाभी मुस्कुरायीं और बोलीं – बेटा! नहीं लगाती थीं, पर अब लगानी पड़ेंगी| ये सब चीज़ें फालतू नहीं बहुत इम्पोर्टेन्ट हैं| बाद में तू मुझे थैंक यू बोलेगी|

भाभी के लेप की वजह उसका छोटा भाई चिंटू उसे भूत-भूत कहकर चिढ़ाने लगा| उसे स्कूल जाने में भी देर हो गयी| जब स्कूल से थक कर घर पहुंची तो देखा चाची टेबल पर रखे उसके पर्स को खंगाल रहीं थीं| उसमें से टिफ़िन निकालकर बोलीं – इसके अन्दर छोटी डिब्बी भी थी सब्जी डालने कीवो कहाँ है?

मैंने ने कहा – वोपता नहीं|

चाची बोलीं – घर चलाना अब सीख ले|

 बर्तनों की अलमारी हो अच्छे से जमी,

 तो घर में न आवे कोई कमी|

गांठ बांध ले इसकोअब डिब्बी ढूंढ़ के दे|

मैना की माँ अभी से उसकी विदाई के बारे में सोच दो-तीन बार रो भी चुकी थी| चाचाजी भी ऑफिस से आते वक़्त मैना के लिए कभी कचोड़ी, कभी रसगुल्ले लेकर आते| पर ये सारी चीज़ें मैना को घर से दूर जाने का एहसास दिलातीं| सिर्फ एक दादी ही थीं जो एकदम वैसी थीं| वैसे ही उसे बड़े-बड़े झुमके पहनने पर डांटती और वही सन्डे को तेल लगातीं|

एक दिन आकाश के यहाँ से फ़ोन आया और घर का माहौल ही बदल गया| सुबह-शाम चल रही शादी के ट्यूटोरिअल की cd जैसे पॉज़ हो गयी थी| उसे पता चला कि आकाश उससे मिलना चाहता है, फिर से|

अगले दिन इसके मैटर को discuss करने के लिए भाभी के रूम में अनौपचारिक बैठक हुई| मैना की माँ और भाभी पलंग पर आल्की पालकी मारकर बैठी थीं और पापा भाई के रूम में ऐसे बेचैन बैठे थे जैसे ये उनका घर ही नहीं है| मैना दरवाज़े के पास चुपचाप खड़ी थी|

भैया अखबार लेकर कमरे मे आये – पेज सेवेन कहाँ है? उसमें मेरे ऊपर वाले ऑफिसर डागाराम के ट्रान्सफर की खबर आनी थी|                          

भाभी बोलीं – आप न ऑफिस में ही रहो, डागाराम, धुलाराम के साथ| घर में क्या हो रहा है, पता है?

भैया ने अखबार परे कर कहा – मैना और आकाश नमिलवा दो

भाई के ये कहने पर पापा बोले – ऐसे कैसे मिलवा दो? चलो माना, आजकल कोई बड़ी बात नहींलेकिन मैना comfortable फील न करे ऐसा कुछ नहीं करना|       

 भाई मैना की तरफ देखकर बोले – मैना तुझे मिलना है?                                              

 मैना ने पापा को देखा फिर भाई को, फिर चुपचाप सिर हाँ में हिला दिया| उन दोनों का मिलना तय हो गया| आखिर मैना अपने मन में चल रहे सारे सवाल, सारी उलझन आकाश से मिलकर दूर करने वाली थी|

बात करके ये तय हुआ कि मैना और आकाश सन्डे सुबह को जलजोग चौराहे वाले गोल पार्क में मिलेंगे| ये बात घर में सबको पता थी सिवाए दादी के| उन्हें ये कैसे बताएं किसी को समझ नहीं आ रहा था| छोटी-मोटी बात थोड़ी इधर-उधर करके दादी को बताने तक ठीक था लेकिन इतनी बड़ी बात उनसे छुपाना, ये मैना की माँ का पेट पचा ही नहीं पा रहा था|

वो बोलीं – अब दादी से बात कर लेते हैं|

भाभी लगभग चिल्लाते हुए बोलीं – नहीं! वो तो टीवी में अगर हीरो हीरोइन भी अकेले बैठे हों तो चैनल चेंज करवा देती हैं, इन दोनों को कहाँ से मिलने देंगीं?

माँ ने जब भाभी को देखा तो भाभी ने नज़रें झुका लीं|

मैना बोली – दादी, हाँ ही नहीं करेंगी| करेंगी तो फिर शर्त रख देंगी कि तू साड़ी पहनेगी और तू  हम सबके सामने बात करेगी| मैंने हर बार दादी की वजह से कोम्प्रोमाईज़ किया है| इस बार नहीं|

पर झूठमाँ की बात को काटते हुए भाभी बोलीं – झूठ कहाँ बोल रहे बस बता नहीं रहे

ठीक है! कहकर माँ आखिर मान ही गयीं|

चल मेरी मैना कल उड़ना है तुझे अपने तोते के संग| भाभी ने कहा तो मैना को अजीब लगा| अभी कैसे कह सकते हैं कि वही उसका तोता है, मतलब उसका जीवनसाथी है|

अगले दिन मैना और भाभी दरवाज़े के पास जाकर रुक गयीं| टोल नाके पर मतलब बाहर गलियारे में दादी बैठीं थीं| दादी पालक साफ करने मे बिज़ी थीं| उनका पूरा ध्यान पालक के पत्तों मे जाता देख भाभी ने मैना को बाहर जाने का इशारा किया| वो दबे पाँव से धीरे-धीरे घर के गेट की तरफ बढ़ने लगी| अचानक उसे पीछे से आवाज़ आयी – अरे मैना ! किधर जा रही है?

मैना उदासीन होकर बिना पलटे बोली – जी दादी!

भाभी बीच-बचाव करते हुए बोलीं – कद्दू लेने जा रही है| माँ किचन में बिज़ी, चाची लीना आंटी के यहाँ गयीं और मुझे कपड़े सुखाने हैं तो…

दादी बोलीं – इसे कैसे पता चलेगा कौनसा कद्दू अच्छा है, कौनसा खराब,मैं सिखाउंगी तुझे| चल मेरे साथ|

यह सुनकर मैना के सारे सपने तार-तार हो गए| उसे बड़ा गुस्सा आया और गुस्से में बोल ही पड़ी – नहीं जा रही मैं कद्दू लेने| झूठ बोल रही हैं भाभी और ये पहली बार झूठ नहीं बोल रहीं|

दादी हैरान होकर बोलीं – क्या?

मैना बोली – हर बार अपने मन का करने के लिए इन्हें झूठ बोलना ही पड़ता है| सिर्फ भाभी नहीं, चाचा-चाची भी आपसे झूठ बोलते हैं जब वो  प्रीति भोजनालय में खाना खाने जाते हैं, मम्मी ने भी कल अपनी साड़ी की कीमत आपको गलत बताई| सबको अपने मन का करने के लिए झूठ बोलना पड़ता है| मुझसे नहीं हो रहा| मैं आकाश से मिलने जा रही हूँ| उसने बुलाया है|

दादी के चहरे पर तेज़ गुस्सा था| उन्होंने सख्त आवाज़ में कहा – जा वापस कमरे में|

मैना दादी के सामने इतना बोल तो गयी लेकिन उनकी बात के खिलाफ जाने की हिम्मत नहीं हुई| वो चुपचाप अपने कमरे में चली गयी| क्या उसका आकाश से मिलना गलत था? क्या उस शख्स से एक बार भी नहीं मिलना चाहिए जिसके साथ शायद आप पूरी ज़िंदगी बिताने वाले हैं| क्या उसने कुछ गलत मांग लिया था?

अपने कमरे में बैठी मैना को दादी पर बहुत गुस्सा आ रहा था| उसने पूरा दिन दादी से कोई बात नहीं की| रात को भी खाना नहीं खाया| वो गुमसुम सी छत पर बैठी थी तभी उसने देखा दादी छत की सीढ़ियां चढ़कर ऊपर आ रही थीं| दादी कभी छत पर नहीं आतीं, उनके घुटनों में दर्द रहता था| इस वक़्त भी उन्हें मुश्किल हो  रही थी| मैना उनकी मदद करने आगे बढ़ी तो दादी ने हाथ हिलाकर मना कर दिया| वो वापस बैठ गयी| दादी भी उसके पास आकर बैठ गईं| मैना को समझ नहीं आ रहा था वो दादी से क्या बात करे? दादी भी बात नहीं कर रही थीं| बस झींगुर की किर्र-किर्र सुनाई पड़ रही थीं| दोनों चुपचाप सामने बुझी हुई स्ट्रीट लाइट को घूरने लगीं|

अब तक जली नहीं ये? दादी की तरफ से आए इस सवाल से अचानक झींगुरों की आवाज़ बंद हो गयी|

दादी फिर बोलीं – गली में अंधेरा हो गया ऐसे तो! कोई कम्प्लेंट क्यूँ नहीं करता? वक़्त पर कर देनी चाहिए|

मैना ने दादी को देखा, वो अपने घुटनों को दबा रही थीं| बहुत परेशान लग रही थीं| सब उसकी वजह से हो रहा था| उसने सोचा, क्यूँ  उसने दादी से इस तरह से बात की? क्या ज़रूरत थी? कोई बहाना करके चली जाती जैसे सब करते हैं| उन्हें कितना बुरा लग रहा होगा| ये सब सोचते हुए मैना की आँखें नम हो गईं|

सॉरी दादी! मैना ने भरे हुए गले से कहा – सॉरी! मुझे आपसे ऐसे बात नहीं करनी चाहिए थी|

दादी मुस्कुराईं तो मैना ने अपना सिर दादी की गोद में रख दिया| दादी मैना के सिर पर हाथ फेरते हुए बोलीं – सही किया तूने| सब मुझसे झूठ बोलते आ रहे थे, तूने तो सच बोला| मैं तो बस चाहती हूँ जितना बुरा वक़्त मैंने देखा वो मेरे बच्चे ना देखें| जो मुझे नहीं मिल पाया वो मेरे बच्चों को मिले| लेकिन ये कभी सोचा नहीं बच्चों को चाहिए क्या? गलत किया|

मैना ने दादी का हाथ अपने सिर से हटाकर अपनी हथेली मे भर दिया और बोली – नहीं! कुछ गलत नहीं किया| आप बहुत अच्छे हो बस|

तू नहीं गयी तो गुस्सा हुआ होगा आकाश? दादी के इस सवाल से वो हैरान हो गयी|

वो बोली – पता नहीं|

दादी ने पूछा – तुझे मिलना है?

उसने उदास मन से जवाब दिया – पता नहीं|

पता नहीं तो पता कर| कल शाम को छह बजे गोल पार्क में उससे मिलकर पता कर|

ये सुनकर मैना उठ खड़ी हुई| वो हैरान होकर बोली – मतलब! आपने उससे बात की?

मेरी बच्ची की शादी की बात है, छोटी बात थोड़ी ही है| ऐसे कैसे बिना बात किये, बिना जाने फैसला लें! मैंने हर बार अपने मन को मार कर जिया, लगा यही सही है|  बड़े मलाल रहे मुझे मेरी ज़िंदगी में| पर ये  तेरी ज़िंदगी है और मैं नहीं चाहती तेरे मन में कोई मलाल रहे|

मैना ने दादी को कसकर गले लगा लिया|

दादी बोलीं – एक शर्त है|

मैना ने हैरानी से पूछा – क्या?

तू, तू मुझे…कल जो तेरी माँ साड़ी लायी थी, वो कितने की है बताइएगी, सच सच! और तेरे चाचा-चाची भोजनालय कब जाते हैं? मुझे कैसे पता नहीं चलता? तू सब बताएगी देख!!!

मैना हँसकर बोली – दादी!!!!

दोनों दादी-पोती बच्चियों की तरह खिलखिलाकर हंस दीं|

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