‘हाय!’
‘हलो, कौन?’
‘क्यों डीपी में शकल नहीं दिख रही क्या?’
‘नहीं, आई मीन हाँ, लेकिन पूछना फॉरमैलिटी है।’
‘हाहाहा! स्मार्ट! आई होप तुम अब ये नहीं पूछोगी कि नंबर कहाँ से मिला।’
‘नहीं, इतनी बुद्धू थोड़ी हूँ। हम दोनों में सिर्फ़ एक ही चीज़ तो कॉमन है। राठी सर की ऑनलाइन क्लास।’
‘और क्या हालचाल हैं?’
‘सब बढ़िया है। बस अभी पढ़ के उठी हूँ।’
‘बारिश हो रही वहाँ?’
‘नहीं, यहाँ तो नहीं हो रही अभी!’
‘यहाँ तो हो रही, बहुत ज़ोर की।’
‘तो नहाओ जाके।’
‘नहीं यार। लेकिन बचपन से एक ख्वाहिश थी कि बस ऐसी ही रात की बारिश हो, गर्मागर्म चाय हो और साथ में हो एक दिलकश हसीना। बारिश है, चाय भी है बस किसी दिलरुबा की तलाश है।’
‘अच्छा! तो ढूँढो आसपास अपने, कोई मिल जाए शायद, दिलकश हसीना।’
‘रात के साढ़े नौ बज रहे हैं। अब इस समय कौन मिलेगी! वैसे तुम फ़्री हो क्या?’
‘नहीं, मुझे बारिश में भीगने का कोई शौक़ नहीं।’
‘भीगना किसे है यार! बालकनी में बैठकर चाय की चुस्कियाँ लेंगे और आसमान को बरसते हुए देखेंगे। बारिश की बूँदें जब छत से टकराती हैं तो उनकी आवाज़ सुनो, बड़ा मज़ा आता है।’
‘हम्म! सुनती हूँ मैं भी।’
‘तो क्या ख़याल है, अकेले ही सुनना है या…’
‘हाहाहा! कितने बड़े फ़्लर्ट हो तुम यार! आज ही हमारी बात शुरू हुई और आज ही देखो, कैसी चीज़ी लाइन्स बोल रहे।’
‘नहीं फ़्लर्ट नहीं हूँ। हाँ, लिख लेता हूँ ठीकठाक। ये सब तो बस शब्दों का जादू है।’
‘ओहो, तो जनाब शब्दों के जादूगर हैं।’
‘जी मोहतरमा! मैं दिलों से नहीं, अल्फ़ाज़ों से खेलने का शौक़ीन हूँ।’
‘वाओ यार। इम्प्रेस्ड!’
‘तो क्या प्लान है फ़िर?’
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..
…
‘चाय लेकिन मैं खुद बनाऊँगी।’