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सोशल मीडिया और हमारी तन्हाई

जब भीड़ बहुत हुआ करती थी,

जब दुनिया तेज़ भागा करती थी,

जब चार-पांच ऑटो खाली जाती दिखती थी,

फिर भी उनमें से अपने लिए कोई ना रुकती थी,

वो गुज़रा ज़माना याद आता है,

उस रेस में दौड़ना याद आता है।

पर अब दुनिया बदल गई है। किसी ने जैसे जादू से पूरी दुनिया को स्टेच्यू कर दिया हो। पहले लाइफ बड़ी हेक्टिक थी, हर पल काम और हर काम का कॉम्पटीशन। ऑफिस में बेस्ट एम्पलाई बनने का कॉम्पटीशन, सबसे अच्छा घर होने का कॉम्पटीशन, अच्छी गाड़ी खरीदने का कॉम्पटीशन। पर अब तो कोई भीड़ नहीं। अब कोई आस-पास भी नहीं फटकता जिससे कॉम्पटीशन करें। हमें लगा कि चलो अब तो शायद काम का बोझ कम होगा, अब लाइफ में कॉम्पटीशन भी कम होगा।

लेकिन नहीं, मानव प्रजाति इस दुनिया की सबसे इनोवेटिव प्रजाति है। हम इनोवेशन कर सकते हैं। अगर हम रियल वर्ल्ड में नहीं जा सकते तो हम वर्चुअल वर्ल्ड में ही रेस करेंगे, लेकिन रेस तो हम करेंगे। सोशल मीडिया हमेशा से बहुत popular ज़रिया रहा है अपनी बात पहुंचाने का। जो कि अच्छी बात है, लेकिन गड़बड़ तब होती है जब ज़रिया मकसद से ज़्यादा popular हो जाए।अब तो ऐसा आलम है कि जो रियल वर्ल्ड की रेस थी सो वर्चुअल वर्ल्ड में उतर आई है।

           जब बाहर नहीं जा सकते तो कायदे से हमें अपने भीतर जाना चाहिए। कुछ spiritual enlightenment के लिए। पर अगर हमें वो मिल भी गया ना तो उसका भी स्टेटस डाले बिना हमें चैन नहीं मिलेगा।

रोज़ सुबह उठकर वही सफाई, वही दूध गरम करने, वही चाय बनाने, वही बर्तन धोने वाले डल से रूटीन से थक हारकर हम कुछ पल रिलैक्स करने के लिए सोशल मीडिया खोलते हैं। पर वहां देखते हैं कि हमें छोड़कर बाकी सब घर का काम पूरे मज़े से कर रहे हैं। वैसे तो ये पहले भी होता था, लेकिन अब ज़्यादा ही लेफ्ट आउट या जिसे fomo कहते हैं न, वैसे फील होने लगा है। जैसे हमें ही मज़े करने नहीं आते।

लोग पहले अपने दोस्तों की exotic हॉलिडे पिक्स देखकर जैसा फील करते थे वैसा ही वो अब दोस्तों के अलग-अलग dishes के पिक्स देखकर फील करते हैं। मीम कल्चर भी इफेक्ट हो रहा है। अब इस बात पर मीम बन रहे हैं कि इनो पेट के लिए कम और केक के लिए ज़्यादा इस्तमाल हो रहा है। कुछ लोग तो ककड़ी टमाटर के सलाद की पिक लगाकर फूड आर्ट के नाम पर इतने हैशटैग डाल देते हैं जितने तो उस सलाद में टमाटर भी नहीं होते। पर ऐसा नहीं है, कुछ बहुत सीरियस कुक भी हैं जो अजीनोमोटो से लेकर extra virgin olive oil तक सबका इस्तेमाल कर, कभी भी सही ना प्रोनाउंस किये जाने वाली डिश बनाते हैं। कुछ वाकई में वो चीजें बनाते हैं जो हमें खानी हैं पर बनानी नहीं, जैसे पानी पूरी। पानी तो बना लें पर अब तो पूरी बनाने का भी प्रेशर आ गया है।

उस प्रेशर में आकर हम देखते हैं कुकिंग विडियोज। हम सबसे फटाफट बनने वाली रेसिपी ट्राई करते हैं। वो सिर्फ पांच मिनट में बनने वाली रेसिपी, हमारे बनाते वक़्त आधे घंटे से भी ज़्यादा का समय लेकर भी सही नहीं बनती है, तब हमारे कानों में आवाज़ गूंजती है, “मैं समय हूं!”

हमारा कुकिंग एक्सपेरिमेंट अगर सफल हो गया, हमने उसके तीन अलग एंगल से फोटो खींचकर सोशल मीडिया पर लगा दी, हमें बहुत सारे लाइक्स मिल गए, हम खुशी से फूल गए, पर फिर भी हमारे खुशी के गुब्बारे को फुस करने के लिए किचन सिंक से बर्तन झांक ही लेते हैं।

इस समय में लोग घर पर बैठकर अपने अंदर का कलाकार ढूंढ़ रहे हैं। जो कि अच्छी बात है। कोई पेंटिंग कर रहा है, कोई स्केचिंग। कई ऐसे दोस्त भी दिखते हैं जो स्कूल में साइंस के डायग्राम भी बुक में से ट्रेस पेपर लगाकर बनाते थे। अब वो “Using time wisely by nurturing the artist in me” लिखकर बढ़िया सी वॉटर कलर पेंटिंग की फोटो लगाते हैं। वाह ! मतलब वक़्त वाकई सब कुछ सिखा देता है। फिर हम क्यूं रह गए? ये सोचकर हम भी ब्रश लेकर बैठ जाते हैं। फिर ऐसा मॉडर्न आर्ट का मास्टर पीस बनता है कि कोई बता ही ना सके कि इसमें जो पीला पीला है वो क्या है और हरा हरा क्या? कुछ नया नहीं भी सीख पाये तो उसका प्रेशर फील होता है।

बात यह है कि इस वक़्त को हमें कॉम्पटीशन नहीं बनाना चाहिए।अगर हम कुछ क्रिएटिव नहीं भी सीख पाए तो यह इतनी बड़ी बात नहीं कि इसके लिए उदास हुआ जाए। हर फूल के खिलने का अपना समय होता है और हर फूल की खुशबू भी अलग।

वैसे भी यह वक़्त बहुत लोगों के लिए कई तरह से मुश्किल है। इस वक़्त हमें सबके प्रति संवेदनशील होना चाहिए और सबसे ज़्यादा अपने प्रति। ना अपने आप से कोई unrealistic expectations रखें, ना किसी और से।

अपने आपको खुश करने के लिए अगर सोशल मीडिया पर पोस्ट डालने की इच्छा हो तो डालें, पर उसका प्रेशर ना लें। अच्छा पढ़ें, अच्छा सोचें और अच्छा करें। जिसमें से एक तो आप कर ही रहे हैं, अच्छा पढ़ ही रहे हैं, फिर अच्छा पढ़ने के बाद obviously अच्छा सोचेंगे और अगर अच्छा सोचेंगे तो अच्छा ही करेंगे।

इतनी बार “अच्छा” शब्द पढ़कर hopefully आपको ‘अच्छा फील’ हुआ होगा। अगर ये हुआ तो इसका मतलब मेरा लिखना भी सफल हुआ।

 

Image Source : Era Tak

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