मन को आशा और दिलासा दे मेरे मौला !!
साँझ निकट है काल विकट है कश्ती भी हिचकोले खाये !
कहें हैं सबसे दास “तन्हा” ना विचलित हों ना पछतायें !!
एक उजाला; नई सुबह सा दे मेरे मौला !!
मन को आशा और दिलासा दे मेरे मौला !!
charoo“तन्हा” !! (12.06.2020)
बड़ा मुश्किल होता है, किसी का अपने अवसाद (डिप्रेशन) से खुद को बाहर निकालना । हाँ, मेरा मानना है कि अवसाद से खुद अपने आप को, आप ही बाहर ला सकते हैं। बाकी आपके समीप के लोग, अगर वो निकट-संबंधी होंगे तभी आप की मदद कर सकते हैं अन्यथा नहीं; और यह हमारे भारतीय समाज का दुर्भाग्य है कि हमारे यहाँ अव्वल तो इसे समस्या मानते ही नहीं हैं और अगर किसी परिस्थिति विशेष में यह पता चल भी जाए तो न किसी को इसका इलाज पता है और न दवा।
हाथ में हो गर दर्द तो दवा कीजिये; हाथ ही हो गर दर्द तो क्या कीजिये !!
समस्या गर शरीर में हो तो इलाज किया जा सकता है किन्तु समाज की समस्या का इलाज तो लम्बा और सामूहिक है। फिर भी हम और आप अपने स्तर पर इस समस्या या बीमारी को पहचानने व इससे बाहर आने में किसी की भी कुछ भी मदद कर सकें तो यह मानवता पर उपकार होगा और शायद किसी की बहुमूल्य ज़िन्दगी को बचाने में आपका अमूल्य योगदान हो।
अवसाद (डिप्रेशन) एक मनोवैज्ञानिक समस्या है, यह तो हम सब लोग जानते हैं लेकिन क्यूँ है और कब हो सकती है यह नहीं जानते। इसलिये तैयार रहिये इस दौर में कौन, कब और कहाँ डिप्रेशन का शिकार हो जायेगा, नहीं कहा जा सकता। इसका अगला निशाना आप बनें, इससे बचने का आसान तरीका यह है कि आप अपने निकट संबंधियों के संपर्क में रहें। जो लोग आपको उत्साहित करते हों या जिनके संपर्क में रह कर आप अच्छा फील करते हों, उनका साथ किसी भी कीमत में मत छोड़िये।
मत भूलिए कि हर वस्तु को आप कीमत चुका के हासिल करते हैं, मुफ्त में यहाँ कुछ भी नहीं मिला है। लेकिन आपकी जान से कीमती कोई भी चीज़ नहीं है; इसलिये अपने जीवन की कीमत को पहचानिये।
सारी कीमती वस्तु मिल कर भी आपकी एक सांस नहीं खरीद सकतीं हैं और आप एक भी सांस किसी भी कीमत पर हासिल नहीं कर सकते, इसलिये आप इसे व्यर्थ न जाने दें। हसें; मुस्कुरायें और खुशियाँ बाटें।
Image source : Shalini Shrivastava