जब मन खाली होता है तो उसमें कुछ न कुछ भरता रहता है, जिसकी दिमाग को भी ख़बर नहीं हो पाती, और जब तक ख़बर होती है देर हो चुकी होती है, क्यों, क्या, कैसे ये सवाल कुलबुलाते हैं! टूटे, बिखरे मन पर काबू कर पाना दिमाग के लिए सबसे मुश्किल काम है। शारीरिक घाव निशान भले ही छोड़ दें पर एक समय बाद पीड़ा नही देते, परन्तु मन के घाव जब भी कुरेदे जाते हैं, तो “टाइम मशीन” में बैठा उसी पीड़ा की गोद में जा पटकते हैं, फिर हम अतीत की खरोंचें वर्तमान में लिए लौटते हैं.
अतीत के पन्ने बार बार पलटने से वर्तमान अधिक मुश्किल हो जाता, इसलिए सारे जवाब, इलाज, मन और दिमाग की मदद से ढूंढ़ने होंगे जो भीतर ही छुपे हैं, और उनका सामना करने की हिम्मत भी हमें खुद ही करनी होगी। ख़ुद को अतीत और भविष्य के फेर से निकाल वर्तमान के एक लम्हे में समेट पाना मुश्किल तो है पर असम्भव नहीं है !
अभ्यास से सब संभव है. हम अपने विचारों से बनते या बिगड़ते हैं. 24 घंटों में सैकड़ों विचार हमारे दिमाग में आते हैं – कुछ चेतन अवस्था में कुछ अवचेतन अवस्था में. पर हमको सही विचार को रोक लेने और गलत विचार को जाने देने की समझ होनी चाहिए. कहते हैं न एक गन्दी मछली सारे तालाब को गन्दा करती है, उसी प्रकार हमारा मन भी एक स्वच्छ तालाब की तरह होता है. एक ग़लत विचार, नेगेटिव थॉट हमारे मन की सारी सकारात्मक शक्तियों को खत्म कर सकता है. जैसे हज़ार अच्छाइयों पर सिर्फ एक बुराई होने से पानी फिर जाता है. ये एक चेन रिएक्शन की तरह होता है. एक नेगेटिव विचार से नया विचार और उससे दूसरा… आप पांच मिनट में ही पांच-दस साल पीछे या आगे पहुँच जाते हैं, जहाँ थकान के अलावा आप कुछ नहीं पाते. और कई बार ये सारी चिंताएं, नकारात्मकता व्यर्थ ही होती. अतीत को आप सुधार नहीं सकते और कई बार भविष्य में वो डर निर्मूल साबित होते हैं. इसलिए विचारों को फ़िल्टर करना सीखना होगा.
एकांत में बैठ कर सोचिये, कॉपी-पेन लीजिये, एक लिस्ट बना डालिए. किस भय ने आपको जकड़ रखा है, कौन सी बात आपको ताकत देती है और कौन सी कमज़ोर करती है. किसके साथ आपको अच्छा लगता है और किसके साथ आप परेशान रहते हैं, आपके जीवन का क्या उद्देश्य है, क्या आप खुद के प्रति उस उद्देश के प्रति ईमानदार हैं. ऐसे ही अनेकों सवाल और शंकाएं जो आपके मन में उठती रहती हैं, सब लिख डालिए
बिना biased हुए उनके जवाब ढूंढ़िए. तब अब पायेंगे कि कितने डर तो व्यर्थ ही थे जिनका अब कोई वजूद ही नहीं फिर भी वो पुराने सामान की तरह सजे बैठे हैं, तुरंत उनको निकल फेंकिये. जैसे घर में पड़े हुए कबाड़ को समय- समय पर ख़ाली करना ज़रूरी है, ठीक वैसे ही दिमाग की सफ़ाई भी बेहद ज़रूरी है.
कितने ही लोग ऐसे होंगे जो सिर्फ एक दर्द, बोझ की तरह आपकी ज़िन्दगी में शामिल होंगे जिनका काम सिर्फ़ आपको आहत करने, नीचा दिखाने का ही होगा… निकाल फेंकिये, डिलीट मारिये. अपनी शक्तियों को संचित करके अपने उद्देश्य में लगाइए. याद रखिये, आप कितने भी अच्छे हों तब भी सबको संतुष्ट नहीं कर सकते, इसलिए सबसे पहले आपकी जवाबदेही खुद के प्रति है उसके बाद उन गिने चुने लोगों के प्रति जो वाकई आपके हितैषी हैं. जीवन में बहुत भीड़ मत रखिये क्योंकि जिसके सब मित्र होते हैं, असल में उसका कोई मित्र नहीं होता…
टूटने – बिछड़ने के भय से मुक्त हो
जीवन समझने की कवायद में मुट्ठी खोल देना
जो अपना है वो खिलेगा हथेली पर
वरना लुप्त हो जाएगा ओस की भांति
विरक्त हो जीवन में लिप्त होना
उम्मीदों से भरे हुए, उम्मीद ना करना
एक दिन छूटना है ये संसार भी
अचानक अनजान समय पर
फिर क्यों नहीं तब तक
वर्तमान में मुस्कान लिए
सम्पूर्ण हो खुद के साथ रहते !
चुनौतियाँ, अस्वीकृतियाँ हमें कई बार तोड़ कर रख देती हैं पर उनसे जूझ कर आगे निकलना खुद को और तराशना, और दुनिया में अपनी जगह बना पाने की जिजीविषा हमें मरने तक जिंदा रखती है. याद रखिये कम्फर्ट जोन से निकले बिना आप कुछ भी खास हासिल नहीं कर सकते. जब तक अपनी लिमिट्स नहीं तोड़ेंगे वही रह जायेंगे जहाँ थे.
तो मन की लगाम अपने हाथों मे कस कर रखिये, अनुशासन ज़रूरी है क्योंकि इसमें आपको वो भी करना होता है, जो करने का अक्सर आपका मन नहीं करता… क्योंकि ये करना आपके लिए बेहद ज़रूरी है.
अपने लक्ष्य को पाने के सपने देखिये, उसके लिए जुनून से मेहनत कीजिये, मन में आ रहे गलत विचारों को तुरंत रोकना सीखिए और आज इस पल में जीना सीखिए. यकीन मानिए आपके पास अपार शक्तियां हैं, बस उनको जागृत करने की ज़रूरत है.
उम्मीद है, आप मन पर लगे जाले हटायेंगे. हम फिर मिलेंगे, लाइफ सूत्र के एक नए एपिसोड के साथ.
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