कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया को नए सिरे से सोचने पर मजबूर किया है कि हम कहाँ खड़े हैं और हमें कैसे जीना चाहिए. इसी के मद्देनज़र जीवन दर्शन पर अपनी राय रख रहीं हैं चर्चित युवा लेखिका इरा टाक
ज़िन्दगी जीने के हज़ारों फ़लसफ़े हैं. कितनी भी कोशिश कर लो, ज़िन्दगी एक ढर्रे पर नहीं चल पाती, यह गाड़ी कई-कई बार पटरी से उतर जाती है. कितनी भी तैयारी कर लो, ज़िन्दगी नए सवाल के साथ परीक्षा लेती है. हर किसी के लिए एक अलग सिलेबस जो एग्ज़ाम टाइम में ही पता लग पाता है.
जैसे अभी कोरोना का अप्रत्याशित हमला… जिसने देखते ही देखते पूरी दुनिया को अपने शिकंजे में कस लिया है. लाखों लोग बीमार हैं, हज़ारों मर रहे हैं, कितनों के पास पैसे नहीं हैं, रोज़गार नहीं है, भोजन नहीं है. कई के घर वाले दूर हैं… जो साथ हैं उन घरों में शांति नहीं है, घरेलू हिंसा ज़ोर पकड़ रही है. हर किसी का संघर्ष अलग है और कुछ लोग ऐसे भी हैं जो सब कुछ होते हुए भी लॉक डाउन में निराशा से भरे हुए बैठे हैं. कुछ आने वाली आशंकाओं से ग्रसित हैं. हर पहलू में नकारात्मकता ढूंढ़ रहे हैं. दुखी होना जैसे उनका स्वभाव हो गया है. मुश्किल भी है ऐसे वक़्त में ख़ुद को संतुलित रख पाना, परन्तु संतुलन की असल परीक्षा तो भीषणतम वक़्त में ही होती है.
जीवन आशा की डोर थामे रखने का नाम है. हर संभव कोशिश करते हुए खुद को ख़ुश और सकारात्मक बनाये रखना एक कला है जो निरंतर अभ्यास से सीखी जा सकती है.
अपार संभावनाएं हैं, इस ज़िन्दगी में, हम जितना चाहें हासिल कर सकते हैं. अक्सर लोग अतीत को याद करने में अपना वक़्त बिता देते हैं, कुछ भविष्य के चिंतन में लगे रहते हैं. अतीत की तरफ़ बार- बार मुड़ कर देखने से या भविष्य की चिंता का बोझ सर पर लादे रहने से रफ़्तार कम हो जाती है. इसलिए वर्तमान में रहना, ज़िन्दगी जीने का सबसे सरल उपाय है. जब अँधेरा गहनतम हो तब निराश होने की बजाय उस वक़्त को याद करें, जब पहले इससे भी गहन अँधेरे से निकल आप रोशनी में आये थे, पैरों में गति आ जायेगी और रोशनी की तरफ फ़ासला कम होता नज़र आएगा.
याद रखिये,
” यह भी गुज़र जायेगा “.
कैसा भी वक़्त हो गुज़र जाता है इसलिए सुख में होश न खोना और दुःख में हिम्मत ! जब सब खो जाता है तब भी अगर हिम्मत बची रहे तो वो सब वापस दिलाने की काबिलियत रखती है… ये कोरोना काल का लॉक डाउन, घर में रहते हुए ज़्यादा से ज़्यादा एक्टिव रहने, जितना हो सके मदद करने, कम खाने, कम सोचने, कम से कम मोबाइल इस्तेमाल करने का है. ज़्यादा वक़्त सोशल मीडिया पर बने रहने से हम अपनी मानसिक शांति भी खो देते हैं. नींद न आना, बैचैनी रहना, दिमाग में हर वक़्त व्यर्थ विचारों का चलते रहना, सिर दर्द, गर्दन और पीठ दर्द जैसी समस्याएँ जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मोबाइल, गेजेट्स, इन्टरनेट से जुड़ी हुई हैं.
जीवन में एक लक्ष्य हो, अनुशासन हो और उस लक्ष्य के लिए किसी भी हद तक जाने का जुनून हो. इस वक़्त भी एक टाइम टेबल से चलने की ज़रूरत है, घर में हैं तो क्या? हर चीज़ का एक तय समय होना ज़रूरी है जो आपको बोरियत से बचाएगा और सक्रिय बनाये रखेगा.
खुद को शांत रखने के कई तरीके हैं. अगर आप हमेशा ये जानने में इच्छुक रहेंगे कि दुनिया वाले आपके लिए क्या सोचते हैं, तो यकीन मानिए अपने मन की शांति खो देंगे. काम करने की क्षमता कम हो जाएगी, व्यस्त रहिये, मन के मौसम को ‘बसंत मोड’ पर बनाये रखिये.
सुबह नए बहाने
उग आएंगे
जैसे ताज़ी मिट्टी में दबे गेहूं से फूटते हैं
अंकुर
जैसे सूखे पड़े ठूंठ से फूटती हैं
कोपलें
जैसे बरसात में उग आते हैं
मशरूम
जैसे लिजलिजे प्यूपा से निकलती है
सुन्दर तितली
जैसे सूरज देखते ही गर्व से सर उठाता है
सूरजमुखी.
सांस चलने तक उम्मीद
नहीं बुझनी चाहिए.
वक़्त बीतने के साथ कोई मिट्टी होता है… कोई सोना बनता है… कोई बिखरता है, कोई निखरता है. यह सिर्फ़ आपकी क्षमताओं, जुझारूपन, ज़िद पर निर्भर है. इसलिए मुस्कराइए, कोई साथ दे न दे, आपको ख़ुद के साथ हर पल खड़ा होना है.
जो आप सोचते हैं वो सच भी होगा. इसलिए डरें नहीं, डर कर रोज़ मरें नहीं. यही फ़लसफ़ा है मेरी ज़िन्दगी का…
“इससे पहले कि मौत हमें पी जाए,
चाहिए ज़िन्दगी खुल कर जी जाए.”
तो हिम्मत और धैर्य बनाये रखिये. बच्चों को जीवन जीने के बेसिक स्किल्स सिखाइए. बुज़ुर्गों के साथ विनम्र रहिये, नयी कोई भाषा सीखिए, फिल्म देखिये, लिखिए-पढ़िए, संगीत सुनिए, संगीत सीखिए, पेंटिंग कीजिये, सिलाई-कढ़ाई कीजिये, नया कुछ पकाइए, मैडिटेशन- एक्सरसाइज़ कीजिये, डांस कीजिये… जो काम कभी नहीं किया, वह कीजिये, यह समय मुश्किल ज़रूर है पर दोबारा शायद हमारी ज़िन्दगियों में इतना ख़ाली समय न आये. अपने सपनों पर धार लगाइए और हाँ उम्मीद का दिया सुबह होने तक जलाये रखिये… जहाँ एक नया सूरज हमारे इंतज़ार में होगा !
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