चचा चकल्लस शहरयार!!
हाँ, यही नाम था रहीम खान का अपने शहर में। जब देखो तब लौंडों की जमात में चौधरी बने फिरते थे। आएं-बाएं बहुत करते थे अकेले में , बस चची जान के सामने सारी रंगबाजी घुस जाती थी।
मेहंदी लगे लाल बाल और दाढ़ी, आँख में सुरमा , सुर्ख रंग, लंबा कद, सर पे गोल टोपी और हाथ में नक्काशी वाली चांदी की बेंत उनके ऊपर बहुत फबती थी। हर गली-चौराहे पे जमने वाली महफ़िल की शान थे, अपने चचा चकल्लस।
हाँ, तो मैं बता रहा था कि करोना की पहली ख़बर मिलते ही चचा चकल्लस करोना पे पिल पड़े थे। ससुर करोना को करोंदे की चटनी बना के सबसे पहले उन्होंने ही सफ़ा चट कर दिया था। चौराहे पे मोदी जी के बाद सबसे ज़्यादा उनके ही चर्चे होते थे हर तरफ़। करोना से बचने के 101 तरीक़े सबसे पहले उन्ही से सुने थे सबने। पूरी चौपतिया बांच देते थे खड़े-खड़े और मजाल है कि कोई चूं भी कर सके।
बाबू भाई ने पूछ क्या लिया करोना के बारे में कि बेचारे की शामत ही आ गई थी। “जाहिल हो तुम एक नंबर के!” चचा गरजे “अमां अगर एक-दूसरे से गले न मिलने और दूर से बात करने से जान बख्श दी जाती है तो इसमें हर्ज ही क्या है? वो ट्रंप हो या जिनपिंग सब के सब ससुरे मुंह छिपाए-छिपाए फिर रहे हैं इस समय।” चचा गला साफ़ करके शुरू हो गए ” अमां रायता फैलाना बहुत आसान है और समेटना बहुत मुश्किल। समझे!”
चचा की हां में हां मिला कर बाबू भाई ने कान पकड़ के उट्ठक-बैठक करनी शुरू कर दी। चचा के पूछने पे बाबू भाई कहने लगा कि ‘पुलिस रिमांड पर ले, उससे अच्छा है कि तैयारी कर लूं।’ बाबू भाई की शान से कही गई इस बात को सुन कर सब ठठ्ठा के हंस पड़े।
अभी जारी है …