Image default

किस्से चचा चकल्लस शहरयार के!!

– ४ –

“अरे बच्चों के चचा! दुनियाँ के हिसाब से हमारे यहाँ कुछ नहीं चलता, हमारे हिसाब से दुनियाँ चलती है, समझ लो; और अगर नहीं चलती है तो हम लोग अपने ही हिसाब चलवा लेते हैं। जो हम लोगों के हिसाब से नहीं चलता तो वो फिर चल भी नहीं पाता, ये तो तुम्हें पता ही होगा।“ पाजी ने एक ही बार में ‘सौ बात की एक बात’ कह दी थी।

“अब बहुत चिकाईपंती हो गई इक ढंग की बात सुनो। हम लोगन का हाज़मा बहुत दुरुस्त रहत है, हमें पता है अऊर हमारे मेलों के छोले-भटूरे खाना साभौ के बस की बात भी नहीं है। लक्कड़ हज़म; पत्थर हज़म हमरे यहाँ ऐसे ही नहीं कहत हैं।” चचा चमके। “लेकिन ईहका मत्बल यहू नहीं कि मन मानी करत फिरें सब लोग; यहू जान लेओ।“ चचा अपनी बात खत्म करते हुये मुंडी हिला रहे थे, जिसमें सब अपनी रजामंदी जताने लगे, सिवाये चौबे जी के।

“कि होया पंडित, तेनु कि तक्लीफ़ है? कि लोड है दस मेनू??” पाजी चौबे जी को घूरते हुये बोले।

चौबे जी ने कमान सम्हालते हुये कहा “देखो पाजी, रहना तो अब हम लोगों को इस करोना के साथ ही है तो फिर इससे डरना कैसा? अब जो भी है और जैसा है अपनी नार्मल लाइफ जीने दो सब लोगों को, थोड़ा सा सर्दी, खांसी, ज़ुकाम-नज़्ले में घर थोड़ी न बैठ जायेगा कोई। आख़िर दो जून के रोटी-पानी का तो बन्दोबस्त सबको अपना-अपना करना ही पड़ेगा। कोई किसी को खिलाने तो नहीं आता है।“ आखरी लाइन कहते-कहते चोबे जी कि आँखों और ज़ुबान में रोष आ ही गया और माहौल थोड़ा भारी हो गया।

“हाँ, खिलाने नहीं आता है लेकिन इसका मत्बल ये भी नहीं है कि पूरे समाज को मनमानी करने के लिए छोड़ दिया जाये। ऐसे तो जंगल राज हो जायेगा। कोई किसी दूसरे की परवाह ही नहीं करेगा। तो काहे का याराना और काहे का प्यार।“ चचा चकल्लस भी चौबे जी कि ज़ुबान में ही कहने लगे।

“ये जो सरकार एहतियात बरतने को कह रही है वो इसी लिए कह रही है मियां चौबे, क्यूँकि सब लोग तुम्हरी तरह समझदार नहीं होते।“ चचा चकल्लस माहौल की गंभीरता को कम करते हुये बोले, “चार दिन्नन में सभाई लोगन को आदत पड़ जईयहे कि कौन तरीके से रहे का है फिर रहेओ आपन तरीके से कौनों कुछ न कही। काहे के तब यहू सलीका नार्मल हुई जाई; समझेओ।“ चचा चकल्लस की इस अदा पे सब लोग मुस्कुरा दिये।

“अमा मियाँ चौबे के चक्कर में पाजी की खड़ताल तो आज खड़क ही नहीं पाई…“ चचा चकल्लस सिरा पकड़ाते हुये बोले।

उनका इशारा समझते हुये बाबू भाई ने लगाम थाम ली और पाजी की तरफ घोड़े दौड़ा दिये। “हाँ पाजी, बहुत दिनों से आपकी कोई झकझकी नहीं हुई है तो आज तो बनता है।“ बाबू भाई के सुर में सबने अपने सुर मिलाते हुये पाजी को घेर लिया और अब पाजी के पास कोई और रास्ता नहीं था सिवाये इसके कि वो उन सबकी फरमाइश पूरी करते तो पाजी भी गला साफ करने लगे।

 

अभी जारी है …

पसंद आया तो कीजिए लाइक और शेयर!

आप इसे भी पढ़ना पसंद करेंगे

होनी : समीर रावल की लिखी

Sameer Rawal

उम्मीद की किरण : डिम्पल अनमोल रस्तोगी की लिखी

Dimple Anmol Rastogi

मीठी फ़रवरी : चैताली थानवी की लिखी

Chaitali Thanvi

इज़्ज़त की सीख : समीर रावल की लिखी

Sameer Rawal

अविनाश दास remembers इरफ़ान ख़ान

Avinash Das

लव इन ऑनलाइन मोड

SatyaaDeep Trivedi