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“वाह-वाह, वाह-वाह । छा गये गुरु !!“ पीछे से आई इस आवाज़ को सुन के सब लोग आश्चर्यचकित हो कर घूम के उस ओर देखने लगे ॥
ये आवाज़ पाजी की थी , सब लोग उन्हे पाजी पाजी ही कहते थे । पाजी का पूरा नाम सिर्फ चचा चकल्लस को ही पता था; आखिर वो दोनों बाल सखा जो थे। चौधरी पृथ्वी पाल सिंह चौहान उर्फ पाजी को सारी दुनिया भले पाजी कहती हो मगर चचा उनको चौधरी ही कहते थे और अगर बहुत खुश हुए तो चौधरी साब कहते थे। चचा चककल्स और पाजी लंगोटिया यार थे और होते भी क्यूँ न! भई, सुना है दोनों सरकारी स्कूल से साथ-साथ मैट्रिक करके निकले थे। और तब से लेकर अब तक उन दोनों का साथ बना हुआ था। उनकी दाँत काटी रोटी की तरह दोस्ती थी या यूं कह लीजिये याराना था। पूरे शहर में उनकी दोस्ती की मिसाल दी जाती थी।
“लो पाजी भी आ गये,” चोबे जी यह कह के तपाक से उनकी तरफ लपके। मगर वो पाजी तक पहुँच पाते उसके पहले ही चचा ने चौधरी साब को बीच में ही कैच कर लिया। चचा चकल्लस और चौधरी साब ने एक-दूसरे को गले लगा के हाथ थाम लिये और लोगों ने दिल; क्यूँ की उन्हें पता था कि अब दोनों तरफ से गोले दगेंगे, तीर चलेंगे और सुरसुरिया छोड़ी जाएगी।
“हाँ तो बच्चों के चचा, क्या चोंच से नोंच रहे हो ; सानूँ दसो, असी हुड़े आया।“ पाजी भी अपना बल्ला मैदान में आते ही भाँजने लगे। इस बार चोबे जी ने पाजी को स्लिप में ही थाम लिया और बिना किसी को कोई मौका दिये हुये शुरू हो गये “सर जी चचा अभी करोना गाथा गा रहे थे। कह रहे थे कि,
‘जब करोना नहीं था तब रोना नहीं था । देखते थे ख़्वाब सब बस सोना नहीं था ।।
रोशनी थी जग मग तब इन उजालों की । आंधेरों के वास्ते कोई कोना नहीं था ।।
जब करोना नहीं था तब रोना नहीं था…’
चोबे जी ने एक ही साँस में पूरी राम कहानी सुना दी।
इतना सुनना था कि पाजी भी चचा की फिरकी लेने लगे। “हाँ! हाँ! याद है अभी कुछ दिन पहले ही बच्चों के चचा ‘ई बोला , ऊ बोला और ओहूं बोला, सुनाते थे और अब ज़रूर; ये करो ना, वो करो ना, हाँ करो ना, ना करो ना’ की माला जपना शुरू हो गया होगा।“
“अरे चौधरी तुम हल्के में ना लो, ये करोन्वा उन सभी का बाप है, जो पहले आ के निकल लिये हैं, समझेओ।“ चचा चकल्लस चमक के बोले। चचा ने यह बात कुछ इस तरह कही कि सुन के सभी लोगों के चेहरे पे चिन्ता की लकीर उभर आई थी और सभी लोग एक-दूसरे का मुँह ताकने लगे।
अभी जारी है …