टीपू सुल्तान की सातवीं पीढ़ी दूसरे विश्वयुद्ध में अंग्रेजों की जासूस थी!
हाल ही अमेजोन प्राइम पर आई फिल्म ‘ए कॉल टू स्पाय’ दूसरे विश्वयुद्ध की सत्य घटनाओं पर आधारित है, इसमें भारतीय अभिनेत्री राधिका आप्टे भी ब्रिटेन में पहली मुस्लिम जासूस नूर इनायत खान के किरदार में है..
अमेरिकन फिल्म ‘ए कॉल टू स्पाय’ तीन नायिकाओं की कहानी है- वर्जिनिया हाल, वेरा एटकिंस और नूर इनायत खान। फ्रांस जब नाजी जर्मनी के शिकंजे में आता जा रहा था, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री चर्चिल की गुप्तसेना में इन तीनों ने जांबाज कारनामे अंजाम दिए थे। बचपन में एक हादसे में अपनी एक टांग गंवा चुकी वर्जिनिया ने एक असली और एक लकड़ी की टांग के सहारे ही लियोन में हैक्टर नैटवर्क क्रिएट किया, नाजियों के छक्के छुड़ाए, नाजियों को उसका चेहरा और कारनामे पता चल गए, गेस्टापो ने उसे सबसे खतरनाक जासूस डिक्लेयर करते हुए पर्चे भी बंटवा-छपवा दिए पर वह उनके हाथ नहीं आई और मिशन पूरा करके दुर्गम पहाड़ी इलाके लांघकर वापिस आने में कामयाब रही। वर्जिनिया इस विश्वयुद्ध के बाद, सीआईए द्वारा शामिल शुरूआती महिलाओं में से एक बनीं। फ्रांस ने उन्हें अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘लीजियों द ऑनर’ से सम्मानित किया।
लीडिया डीन पिल्चर इस फिल्म की निर्देशिका है। सारा मेगन थॉमस ने फिल्म लिखी भी है, प्रोड्यूस भी की है और तीन में से पहली नायिका की भूमिका भी निभाई है। स्टाना कैटिक और राधिका आप्टे ने अन्य दो नायिकाओं के किरदार निभाए हैं।
ब्रिटिश सेना की पहली महिला जासूस नूर इनायत तो वायरलैस में काम करते हुए गेस्टापो द्वारा पकड़ ली गई और उसे मार डाला गया, तब उसकी उम्र केवल तीस साल थी। नूर के पिता पश्चिम में इनायती नामक सूफी स्कूल के संस्थापक थे। उनकी वंशावली पीछे जाकर सात पीढ़ी पहले टीपू सुल्तान से जुड़ती है। पहली नजर में यह अजीब लग सकता है कि हैदर अली और टीपू अंग्रेजों से लड़े, टीपू ठीक उस वक्त जब वह फ्रांस के नेपोलियन का समर्थन हासिल करने की चिट्ठी लिख चुका था, कमांडर कर्नल ऑर्थर वैलेजली के हाथों चौथे एंग्लो-मैसूर युद्ध में श्रीरंगपट्टनम की लड़ाई (1799 ईस्वी) में मारा गया, उसी की सातवीं पीढ़ी की वारिस अंग्रेजों की ओर से नाजी सेना की जासूसी कर रही थी। पर यह आधा सच है, टीपू ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ लड़ रहा था, और दूसरे विश्वयुद्ध में इंग्लैंड की निर्वाचित चर्चिल सरकार मित्र राष्ट्रों के साथ नाजी एलांयस के खिलाफ लड़ रही थी और नूर इनायत खान उस देश की नागरिक थी।
लंदन निवासी शर्बानी बसु ने भी नूर इनायत खान पर किताब लिखी है जिस पर भी अलग से फिल्म बनाने की तैयारियां चल रही हैं। शर्बानी ने महारानी विक्टोरिया और उन्हें उर्दू सिखाने वाले खानसामे अब्दुल की दास्तान भी लिखी है। इस किताब पर आधारित स्टीफन फीअर्स निर्देशित अली फजल की मुख्य भूमिका वाली फिल्म ‘विक्टोरिया एंड अब्दुल‘ आ चुकी है और कई श्रेणियों में ऑस्कर के लिए नामांकित भी हुई थी। शर्बानी लगातार ऐसी कहानियों पर उपन्यासात्मक लेखन कर रही हैं जो लोकरुचि के हो सकते हैं। कुछ साल पहले जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल यानी जेएलएफ में राइटर्स लाउंज में सहभागी लेखक के रूप में उनके साथ लंबी बातचीत हुई थी, तब वे फेस्टिवल में विक्टोरिया और अब्दुल वाली किताब पर एक सेशन के लिए ही आई थीं। उस बातचीत से इतिहास से जुड़े विषयों पर कथा लेखन के जॉनर पर उनकी नजर और नजरिया भी मुझ तक आ गए जो मेरे जैसे कतिपय नए लेखक और पुराने इतिहासप्रेमी के लिए प्रेरक और बहुत सीखने लायक थे।
बहरहाल, इतिहास से जुड़े ऐसे स्त्री किरदारों को कागज ही नहीं, पर्दे पर लाना पिछले कुछ समय से ज्यादा हो रहा है, इसे एक ठीक फैशन मानता हूं। जैसे समरू की बेगम पर तिग्मांशु धूलिया फिल्म बनाने की कोशिश कई साल से कर रहे हैं। समरू की बेगम भी बेहद दिलचस्प किरदार है। एक विदेशी मूल की गणिका के भारत की एक रियासत की नवाब बन जाने का सफर बेहद रोमांचक है। वैसे समरू की बेगम पर मैंने बेहतरीन शोधपरक किताब महेंद्र नारायण शर्मा की ‘द लाइफ एंड टाइम्स ऑफ समरू ऑफ सरधना’ मेरी नजरों से गुजरी है, जो उस इलाके के इतिहास पर काम करने वाले सबसे संजीदा इतिहासकारों में गिने जाते रहे हैं। और मेरी राय में तिग्मांशु या जो भी बेगम समरू पर फिल्म बनाने के इच्छुक हों, उनके इतिहासकार पुत्र डॉ राकेश शर्मा और इस किताब दोनों का सदुपयोग करना चाहिए।
एक तिलिस्म इन किरदारों में है, साधारण से असाधारण हो जाने का स्लमडॉग मिलेनियर एलीमेंट भी है। खास तौर पर ऐसे स्त्री किरदार जिनकी भूमिका किसी नायक पुरुष की प्रेमिका भर हो जाना नहीं है, का जादू कथा या फिल्म को बेहद दिलचस्प बना देता है। साधारण पाठक या दर्शक उस पात्र की इस कल्पनातीत और अविश्वसनीय यात्रा को अपने सपनों और फेंटेसी से जोड़कर आनंदित होता है, और यही विचार मेरी नजर में ऐसे कथानकों को प्रासंगिक और ऑल टाइम सेलेबल बनाता है।
जासूसी की दुनिया के स्त्री किरदारों के लिए भी यह जेहनी भूख काम करती है कि उन्होंने कैसे पुरुषों की दुनिया में सेंध लगाई होगी। क्या वह स्त्री सुलभ भावनाओं में बह कर नाकामयाब हुई होगी या उन भावनाओं का चतुर इस्तेमाल करते हुए असाधारण और पुरुषों से बेहतर काम कर गुजरा होगा। इसी तिलिस्म और जिज्ञासा का पुल बनाकर ‘ए कॉल टू स्पाय’ दर्शकों को बांधे रखती है। नूर इनायत के किरदार में राधिका आप्टे को देखना बहुत सुकून देता है। एक अभिनेत्री के रूप में उनकी व्यापक रेंज अपनी समकालीन अनेक ज्यादातर भारतीय अभिनेत्रियों से उन्हें कहीं आगे खड़ा कर देती है। वर्जिनिया की भूमिका निभाने वाली मुख्य नायिका सारा मेगन थॉमस ने इस फिल्म को लिखा भी है, क्या खूब लिखा है, फिल्म के दृश्य और संवाद कथा को विजुअल प्लेजर और ट्रीट में बदल देते हैं तो यह उनका ही करिश्मा है।
इस तरह से तीन स्त्रियों की कहानी एक स्त्री ने लिखी और प्रोड्यूस की, एक स्त्री ने डायरेक्ट की, यह पुरुषों की दुनिया में जरूरी, मुकम्मल और खूबसूरत हस्तक्षेप है, इसके उदाहरण बढ़ने चाहिए, इतने कि इम इसे सामान्य मान लें। यह इसलिए भी जरूरी है, जो बात नाईजीरियाई लेखक चिनुआ अचीबी कहते थे कि जब तक शेरों का इतिहास लिखने के लिए उनके अपने इतिहासकार नहीं होगे, तब तक शिकार के इतिहास में शिकारी ही महान माने जाते रहेंगे।