शकुंतला देवी हमारी गणितीय विरासत का विस्तार है। भारत जीरो देने वाले आर्यभट्ट का देश है, हम संख्याओं के माध्यम से ब्रह्मांड को समझने का दर्शन, सांख्य दर्शन, देने वाले कपिल के वंशज हैं। हम जिस आबोहवा में सांस लेते हैं, वह अल्बर्ट आईंसटीन के साथ काम करने वाले और नोबेल के नोमिनेटेड गणितज्ञ भौतिकविद सत्येंद्रनाथ बोस और अल्पायु में कैम्ब्रिज के गणितज्ञों को अपनी खोजों से हैरान कर देने वाले रामानुजन की भी है…
ग्लोबलाइजेशन की आंधी ने हमारी पढ़ाई की व्यवस्था और जीवन में पहला बड़ा बदलाव यह किया कि बेसिक सांईसेज और गणित को हमारे समाज ने लगभग भुला दिया; किसी बच्चे के संस्कारों में वैज्ञानिक या गणितज्ञ बनने का सपना शामिल नहीं करते हम। नया यूनिवर्सल सपना है, बड़ा पैकेज और उसी के मुताबिक पढ़ाई, चाहे उसका खामियाजा हमें या हमारी पूरी मानव सभ्यता को क्यों ना उठाना पड़े। गणित या विज्ञान में उच्च शिक्षा प्राय: वही लेते हैं जिनका इंजीनियरिंग या मैडिकल में दाखिला नहीं मिलता, जिनके मैनेजमेंट या अन्य फैशनेबल आकर्षक अवसर खत्म हो चुके हों, या मोटा डोनेशन या फीस देने की हैसियत ना हो। जरा सोचिए कि आप किसी के घर जाते हैं, तो आखिरी बार कब सुना होगा कि होस्ट के बच्चे से पूछें – ‘बड़े होकर क्या बनना चाहते हो’ और जवाब ‘वैज्ञानिक या मैथमैटिशियन’ मिला हो। ये तो हम जानते ही हैं कि बाल मन में परोक्ष रूप से सपना तो हम बड़े ही यानी माता-पिता या आसपास के लोग ही बोते हैं। अफसोस की बात यही है कि हमने वो सपना बोना छोड़ दिया है, इस सपने का विकल्प तक बोना स्थगित कर दिया। किसी का बच्चा अगर विज्ञान में शोधार्थी हो तो क्या हम तारीफ की निगाह से देखते हैं? और सोचिए कि इसका सीधा-सीधा असर सौ साल बाद की वैज्ञानिक उपलब्धियों पर पड़ेगा जिसका अंदाजा हम अभी लगा ही नहीं पा रहे हैं।
यह प्रीची सी लगने वाली बोरिंग बात कहने का अवसर हमने इसलिए लिया है कि अमेजोन पर ‘मानव कम्प्यूटर’ कही जाने वाली गणित की जादूगर शकुंतला देवी के जीवन पर बनी बायोपिक आई है। निर्देशन अनु मेनन ने किया है; उनका निर्देशन मुझे वेबसीरिज ‘फोर मोर शॉट्स प्लीज’ में भी पसंद आया था। हालांकि शकुंतला देवी नामक यह फिल्म बायोपिक से ज्यादा मां-बेटी की कहानी हो जाती है। मुझे यह कहानी इसलिए भी ठीक लगती है कि किसी कर्मक्षेत्र में उल्लेखनीय व्यक्ति के जीवन की कहानी इमोशनल ताने-बाने के साथ कही जाए तो ज्यादा मन को छूती है, लार्जर दैन लाइफ न होकर जीवन की खुरदरी सच्चाइयों के आसपास लगती है। मैं उस पीढ़ी का हूं जिसे बचपन में कम्प्यूटर और गूगल नहीं मिला था, हमारे लिए सामान्य ज्ञान यानी जनरल नॉलेज अर्जित करना मुश्किल था तो चैलेजिंग और मजेदार भी।
तो जीके के सवाल के रूप में फास्टेस्ट कैलकूलेशन करने का वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाने वाली शकुंतला देवी का नाम रटना पड़ा था। यकीन मानिए कि बहुत बड़ी हैरानी हुई थी – सुखद हैरानी कि कोई ऐसा भी हो सकता है, और मनुष्य का मस्तिष्क अनंत संभावनाओं का रहस्यमयी आगार तो है ही। फिल्म में शकुंतला देवी की भूमिका में मुझे विद्या बालन ‘मोर दैन परफेक्ट’ लगी हैं, ‘बेगम जान’ के अपने अभिनय को वे इस फिल्म से अगले पायदान पर ले गई हैं, तो उनके पति के रूप में जीशू सेनगुप्ता को देखना एक ट्रीट ही है।
हमें याद रहना चाहिए कि शकुंतला देवी हमारी गणितीय विरासत का विस्तार है। भारत जीरो देने वाले आर्यभट्ट का देश है, हम संख्याओं के माध्यम से ब्रह्मांड को समझने का दर्शन, सांख्य दर्शन, देने वाले कपिल के वंशज हैं। हम जिस आबोहवा में सांस लेते हैं, वह अल्बर्ट आईंसटीन के साथ काम करने वाले और नोबेल के नोमिनेटेड गणितज्ञ भौतिकविद सत्येंद्रनाथ बोस की है और अल्पायु में कैम्ब्रिज के गणितज्ञों को अपनी खोजों से हैरान कर देने वाले रामानुजन की भी है, जिस पर हमारे यहां हिंदी में फिल्म नहीं बनी, पर राजशेखरण के निर्देशन में तमिल और अंग्रेजी में एक साथ 2014 में फिल्म बनी, और वर्ल्ड वाइड रिलीज हुई थी।
इत्तेफाक है कि इसी साल एक और गणितज्ञ एलन ट्यूरिंग पर भी अमेरिकन फिल्म आई –‘द इमीटेशन गेम’, जिसे देखने का संयोग भी अमेजोन पर ही पिछले दिनों हुआ। यह हिस्टॉरिकन ड्रामा फिल्म दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान एक गणितज्ञ द्वारा नाजी जर्मनी के गुप्त कोड को ब्रेक करके ब्रिटिश फौजियों को बचाने की रोमांचक दास्तान है, और इस मानवीय त्रासदी का आख्यान भी कि महान गणितज्ञ को समलिंगी यौनिक व्यवहार के कारण इस स्तर पर मुश्किलों का सामना करना पड़ा कि इतने बड़े काम का श्रेय अपने जीते जी देख नहीं पाए। इत्तेफाक यह भी देखिए कि शकुंतला देवी का विवाह विच्छेद इसलिए हुआ कि उनके पति उभयलिंगी या समलिंगी यौनिक व्यवहार वाले थे, और एलन ट्यूरिंग तथा शकुंतला देवी दोनों के जीवन इस यौनिकता से प्रभावित हुए।
अगले साल यानी 2015 में श्रीनिवास रामानुजन पर मैथ्यू ब्राउन निर्देशित ब्रिटिश फिल्म भी रिलीज हुई जिसका नाम था- ‘द मैन हू न्यू इन्फीनिटी’, जो इसी नाम के उपन्यास पर आधारित थी। इस फिल्म में रामानुजन की भूमिका पहले माधवन निभाने वाले थे, बाद में अंतर्राष्ट्रीय कलाकार के रूप में सोचते हुए देव पटेल को लिया गया।
श्रीनिवास रामानुजन आयंगर के व्यक्तित्व की खास बात शकुंतला देवी की तरह यह थी कि गणित में लगभग नगण्य औपचारिक शिक्षा ली थी, यानी वे जन्मजात मैथ्स जीनियस थे। कैम्ब्रिज के गणितज्ञ जीएच हार्डी के साथ पत्र व्यवहार से उनकी कीर्ति यात्रा का प्रारंभ हुआ था कि उन्होंने नए गणितीय सिद्धांत देकर प्रोफेसर हार्डी को चकित कर दिया कि उन्हें कहना पड़ा कि रामानुजन ने मुझे डिफीट कर दिया है। गणित की दुनिया की कई अनसुलझी गुत्थियों को सुलझाकर हमारे ‘सैल्फ टॉट मैथमैटिकल जीनियस’ रामानुजन केवल बत्तीस साल की उम्र में इस संसार से चले गए थे। यानी वे गणित के गुरूदत्त, शैली, कीट्स, बायरन या शिव कुमार बटालवी थे। यह एक दिलचस्प विरोधाभास है कि बीसवीं सदी के महान गणितज्ञ रामानुजन अपने धार्मिक विश्वासों में हिंदू धर्म में गहरी आस्था रखते थे, अपनी असाधारण गणितीय प्रतिभा और उपलब्धियों का श्रेय अपनी इष्ट कुलदेवी नामगिरी थायर को देते थे।
बीसवीं सदी के भारत से ही सत्येंद्र नाथ बोस वह महान गणितज्ञ और भौतिकविद व्यक्ति हैं जिनके दिए सिद्धांतों को आगे बढ़ाने वाले सात व्यक्तियों को नोबेल मिला पर छ: बार नॉमिनेशन के बाद भी उन्हें नहीं मिला। मैं उनको इसलिए भी खास तौर पर याद करता हूं कि रवींद्रनाथ टैगोर ने जब विज्ञान पर अपनी अकेली किताब ‘विश्व परिचय’ लिखी तो उसे सत्येंद्रनाथ बोस को समर्पित किया। और शायद, मेरी जानकारी में उनके जीवन पर फिल्म अभी कहीं नहीं बनी है (उनको नोबेल न मिल पाने की ही तरह) जिसके वे हकदार हैं।
हो सकता है, आपको याद हो कि कुछ साल पहले असाधारण प्रतिभा के धनी जीनियस गणितज्ञ जॉन नैश पर एक कमाल की फिल्म ‘ए ब्यूटीफुल माइंड’ आई थी, निर्देशन किया था रॉन हॉवर्ड ने। फिल्म इसी नाम की सिल्विया नासर की किताब से प्रेरित थी। शकुंतला देवी के संदर्भ में इस फिल्म की चर्चा भी जरूरी है। उन्हें अर्थशास्त्र में नोबेल पुरस्कार दिया गया था। पैरानॉइड सिजोफ्रेनिया से जूझते जीनियस को देखना रोंगटे खड़े कर देता है।
स्टीफन हॉकिंग मूलत: गणितज्ञ थे, उनकी ख्याति ब्रह्मांड को सर्वाधिक जानने वाले भौतिक विज्ञानी और मनुष्य के रूप में हुई, उनके जीवन पर बनी फिल्म –‘द थ्योरी ऑफ एवरीथिंग’ का ज्यादा न सही, थोड़ा सा जिक्र तो बनता है। फिल्म उनके जीवन से जुड़े संस्मरणों पर आधारित किताब (जेन हॉकिंग लिखित) का एडाप्शन थी। जेम्स मार्श के निर्देशन में बनी यह फिल्म महान जीनियस की मनुष्योचित संघर्षो की गाथा के रूप में भावनात्मक अंतरंगताओं और शारिरिक व्याधि के बीच झूलते, जीते, जीतते व्यक्ति की दास्तान बन जाती है।
2015 में विवेक वाघ के निर्देशन में मराठी फिल्म ‘सिद्धांत’ आई थी, जिसे देखने का अवसर मामी फिल्म फेस्टिवल ने दिया था, विक्रम गोखले की मुख्य भूमिका वाली इस फिल्म की कहानी गणित के लोकप्रिय अध्यापक के रिटायर्ड जीवन के इर्दगिर्द है, जिसका पोता गणित में कमजोर है। यह जीवन का गणित या पहेली है, कुदरत अपनी तरह से चक्र पूरा करती है, संतुलन करती है। जीवन का गणित जिसे समझ आ जाए उसके लिए आसान बहुत है, ना आए तो मुश्किल बहुत। बचपन में मेरे अध्यापक पिता कहते थे कि पहाड़े (टेबल) याद होंगे तो जीवन का पहाड़ भी आसानी से चढ़ जाओगे।
तो मेरी विनम्र राय है कि शकुंतला देवी अगर थिएटर में रिलीज होती तो शायद कहीं ज्यादा भारतीयों को गणित और बेसिक साईंसेज के प्रति फिर से जागरूक कर पाती। इस जागरुकता की जरूरत तो भारत और प्रकारांतर से पूरी दुनिया को बेहद है, इसे परोक्ष रूप से फिल्म रेखांकित तो कर ही रही है, यह फिल्म की बड़ी सार्थकता मुझे नजर आती है।
गणित में मेधावी लोग भौतिक विज्ञान और अर्थशास्त्र को बेहतर बनाते आए हैं, यह भी बारंबार सिद्ध हुआ है, और ये दोनों विषय हम सबके सामूहिक बेहतर जीवन, बेहतर भविष्य का मार्ग खोलते हैं, अस्तु! गणित जीवन का गणित सुधारने वाला विज्ञान है, फिल्म शकुंतला देवी इसे गणितीय थ्योरम की तरह ‘सॉल्व करके’ हमारे सामने रख देती है।